यह बात ठीक है कि हमने जो कर्म किए हैं, उनके फल तो हमें भोगने ही पड़ेंगे। रही बात यह कि, क्या मंत्र के जाप से अथवा यज्ञ करने से कष्ट दूर हो सकते हैं? उत्तर यह है कि-
(1) हम यज्ञ करेंगे, मंत्र का जाप करेंगे, तो भगवान हमको सहनशक्ति देगा। सहनशक्ति से कष्ट हमारे लिए हल्का हो जाएगा। कष्ट भोगना तो पड़ेगा, पर वह उतना भारी नहीं रहेगा।
स्वामी दयानंद जी सत्यार्थ प्रकाश में लिखते हैं कि – ईश्वर की उपासना से इतना बल प्राप्त होगा कि पहाड़ जैसा दुःख भी राई जैसा प्रतीत होगा। जो दुःख आएगा, वो तो भोगना पड़ेगा। लेकिन वह दुःख इतना भारी नहीं लगेगा, हल्का लगेगा। आराम से निपट जाएगा।
(2) मंत्र के जाप से आगे के लिए बु(ि अच्छी हो जाएगी। फिर हम और अधिक अच्छे-अच्छे काम करेंगे। आगे अपराध करेंगे नहीं, तो आने वाले कष्ट टल जाएंगे। क्योंकि आगे अपराध ही नहीं करेंगे, तो पाप का दंड क्यों मिलेगा? इसलिए मंत्र जाप करना चाहिए, यज्ञ करना चाहिए।
60. शंका- कहा जाता है कि गायत्री मंत्र का एक लाख जाप करने वाला चोरी, ब्रह्महत्या, गुरु पत्नी के साथ व्यभिचार आदि पापकर्म से मुक्त होता है, कृपया मार्गदर्शन करें?
ख् समाधान- यह बात जिन भी ग्रंथों में आप पढ़ते-देखतें हैं, वो बात सत्य नहीं है। वेदानुकूल नहीं है, तर्क के भी विरु( है, )षियों के भी विरु( है। कारण किः-
स गायत्री मंत्र का पाठ करना एक अच्छा काम है। चोरी करना- यह बुरा काम है। अच्छे काम से बुरा काम कैंन्सिल नहीं होता।
मान लीजिए, लोग नाव में बैठकर नदी पार कर रहे थे। नाव में पानी भर जाने से नाव उलट गई। एक बड़ा अच्छा तैरने वाला था। उसने डूबने वाले बीस लोगों को बचा लिया। सरकार को सूचना मिली। सरकार ने कहा – आपको ईनाम मिलेगा।
स अब एक हफ्ते के बाद जिसने बीस लोगों की जान बचाई थी, उसी व्यक्ति ने एक आदमी को मार दिया। वो सरकार के पास गया और बोला – देखिए जी, मैने बीस लोगों की जान बचाई है, और एक को जान से मारा है। सीधे बीस में से एक को घटाकर के उन्नाीस का ईनाम दे दीजिए। तो क्या सरकार मान लेगी? नहीं मानेगी न। सरकार ने कहा – बीस की जान बचाई, उसका अलग ईनाम मिलेगा। और एक को मारा, उसका दण्ड अलग मिलेगा। बीस में से एक कैन्सिल नहीं होता है। जब सरकार कैन्सिल नहीं करती,तो भगवान क्यों करेगा?आपने एक लाख गायत्री जप किया, उसका अलग फल मिलेगा। चोरी की, उसका अलग दण्ड मिलेगा। इसलिए दोनों कर्मों का फल अलग-अलग है।