क्या कार्य में ‘भावना’ महत्वपूर्ण होती है, इससे ‘फल’ में अंतर आता है?

जी हाँ। दो व्यक्ति आपको एक जैसी क्रिया करते हुए दिखाई देंगे, लेकिन दोनों को फल एक जैसा नहीं मिलेगा, फल अलग-अलग होगा। बाह्य-क्रिया एक जैसी होगी, पर फल में अंतर होगा क्योंकि उनकी भावना में अंतर है।
एक सैनिक ने शत्रु देश के सैनिक को मार डाला और एक नागरिक ने दूसरे नागरिक को मार डाला। हत्या दोनों ने की। बाह्य-क्रिया दोनों घटनाओं में एक जैसी है। लेकिन क्या फल दोनों को एक जैसा मिलेगा? नहीं, अलग-अलग मिलेगा। सैनिक को ईनाम मिलेगा और नागरिक को दंड मिलेगा। दोनों में भावना का अंतर है। सैनिक की भावना है-देश की रक्षा करना और नागरिक की भावना है-अपने स्वार्थ के लिए मारना।
कर्म का फल केवल आपकी क्रिया पर ही आधारित नहीं है। क्रिया के साथ ‘भावना’ भी जुड़ती है, तब फल का निर्धारण होता है।
बाह्य-क्रिया एक जैसी होने पर भी अगर भावना में अंतर है, तो फल में अंतर आ ही जाएगा। सकाम-भावना से करोगे तो भिन्ना फल होगा और निष्काम-भावना से करोगे तो भिन्ना फल होगा। अक्षरधाम में जो घटना हुई उसमें क्या हुआ? सैनिकों ने आतंकवादियों को मार डाला। शत्रुओं (आतंकवादियों) को मारना, यह देश की रक्षा का काम है। इसमें निःसंदेह सैनिकों को पुण्य मिलेगा। नियम है कि- बड़े से बड़ा काम भी अगर बुरे लक्ष्य के लिए किया जाए, तो ससांर उसे कोई महत्त्व नहीं देता है।

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