क्या कभी चर-अचर जीव जब मनुष्य योनि में थे, एक से अधिक बार मोक्ष भोग चुके हैं?

सभी जीवात्माएं चाहे चर-अचर जिस भी योनि में रहें, वो चाहे वृक्ष आदि में हो, चाहे मनुष्य आदि में हों, किसी में भी हों, वो एक से अधिक बार मोक्ष भोग चुके हैं। वेद, उपनिषद्, दर्शन से यह पता चल जाता है।
स यह बताइए- जीवात्मा अनादि है या किसी काल-विशेष में उत्पन्ना हुआ था? उत्तर है – जीवात्मा अनादि है।
स यह सृष्टि भी अनादि है या किसी दिन पहली बार बनी थी? उत्तर है – सृष्टि अनादि है। यह सृष्टि खत्म होने वाली नहीं है। सांख्य-दर्शन में कपिल मुनि जी ने एक सूत्र बनाया – ‘इदानीमिव सर्वत्र नात्यंतोच्छेदः’ अर्थात जैसे इस समय सृष्टि चल रही है, ऐसे ही हमेशा चलती रहती है। यह कभी भी पूरी तरह बंद नहीं होती।
स अनादि में तो इनफाइनाइट (अनन्त( टाइम है। कोई प्रारंभ ही नहीं, कितना लंबा समय है। इतने लंबे समय में कितनी ही बार जा चुके मोक्ष में, एक बार क्यों? आगे भविष्य में कितने ही बार जायेंगे, आगे भी अनंतकाल है। टाइम की कोई सीमा नहीं है, न भूतकाल में, न भविष्य में। भूतकाल में कितनी ही बार हम मोक्ष में जा चुके हैं और कितनी ही बार भविष्य में फिर जाएंगे।
स सभी जीवात्मा एक जैसे हैं। सबका स्वरूप मूल रूप से समान है। जिस काम को एक जीवात्मा कर सकता है, उस काम को दूसरा भी कर सकता है। अगर एक आत्मा ‘महर्षि दयानंद’ बन सकता है तो आप भी बन सकते हैं। मैं भी बन सकता हूँ। बारी-बारी से सब बन जाएंगे। एक व्यक्ति एम.ए. कर सकता है तो दूसरा क्यों नहीं कर सकता है? दूसरा भी कर सकता है, तीसरा भी कर सकता है। जो पुरुषार्थ करेगा, वह एम.ए. कर लेगा, पी.एच.डी कर लेगा, एम.एस.सी. कर लेगा, एम.टेक हो जाएगा, एम.बी.ए हो जाएगा, डॉक्टर भी बन सकता है, मोक्ष में भी जा सकता है। बारी-बारी से सब मोक्ष में जाएंगे।
स इतना मूर्ख कोई जीवात्मा नहीं है कि वो अनंतकाल तक मार खाता ही रहे और कभी भी उसको अक्ल नहीं आए। कितनी मार खाएगा, उसकी भी लिमिट रहती है। बहुत मार खाएगा, फिर खा-खा के थक जाएगा। फिर उसको अक्ल आ जाएगी कि- भई, मैं दुनिया में अब थक गया हूँ। अब और जन्म नहीं चाहिए। हर एक को अक्ल आ जाएगी, तो बारी-बारी से सब मोक्ष में जाएंगे।
स हमारी बु(ि भी बढ़ती-घटती है, धीरे-धीरे बु(ि का विकास होता है। आज से दस वर्ष पहले क्या आपका ज्ञान इतना ही था जितना कि आज है? बढ़ गया न, और अगले दस साल में और कितना बढ़ जाएगा। ऐसे पुरुषार्थ करने से, अनुभव से, ज्ञान का स्तर बढ़ता है। आप में पुरुषार्थ की और थोड़ी ज्ञान-विज्ञान की कमी भी है। ज्ञान बढ़ेगा और व्यक्ति पुरुषार्थ करेगा तो आगे बढ़ जाएगा। और फिर ऐसा भी होता है कि ज्ञान बढ़ने के बाद भी व्यक्ति आलसी-प्रमादी हो सकता है। लेकिन अंत में पुरुषार्थ तो उसे करना पड़ेगा।
स ऐसा भी होता है कि व्यक्ति ने कुछ पुरुषार्थ किया, उसकी गति कम है। उसको थोड़ा ज्ञान हुआ, कुछ-कुछ समझ में आया फिर आगे पुरुषार्थ नहीं किया। एक व्यक्ति पुरुषार्थ तो बहुत करता है, पर बु(िपूर्वक नहीं करता, बु(ि भी साथ में चाहिए। कितने ही लोग खूब मेहनत करते 1हैं। पर धंधे में बु(ि से काम नहीं करते, इसलिए बहुत नहीं कमा पाते। कई लोग बु(ि से काम लेते हैं, मेहनत कम करते हैं, वो बहुत कमा लेते हैं। इसलिए बु(ि और पुरूषार्थ दोनों चाहिए। ऐसे दोनों को मिलाकर साथ चलेंगे तो फिर जल्दी विकास होगा।
‘जड़ बु(ि’ का मतलब जिसकी बु(ि तीव्र (ैींतच( नहीं है यानी कम बु(ि वाला है, उसका पिछला संस्कार कमजोर है, इच्छा होने पर भी वह विशेष प्रगति नहीं कर पाता तो वह कम प्रगति (प्रोग्रेस( करेगा। उसे अधिक समय लगेगा, पर सीख तो जाएगा। सीखने में रोक-टोक नहीं है। सब सीख सकते हैं।

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