क्या अपनी योगशक्ति के द्वारा योगी शक्तिपात का प्रयोग कर वेदार्थ संबंधी ज्ञान संक्रमित कर सकता है?

शक्तिपात के द्वारा वेदार्थ का ज्ञान कराने की बात मेरी दृष्टि में ठीक नहीं है।
वेदार्थ ज्ञान करने के लिए महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने दो विकल्प ‘)ग्वेदादिभाष्य- भूमिका’ के पठनपाठन-विषय के अन्त में बताए हैंः-
1. व्याकरण अष्टाध्यायी धातुपाठ उणादिगण – चार ब्राह्मण इन सब ग्रन्थों को क्रम से पढ़ के।
2. अथवा जिन्होंने उन सम्पूर्ण ग्रन्थों को पढ़ के जो सत्य-सत्य वेद व्याख्यान किए हों, उनको देख के वेद का अर्थ यथावत् जान लेवें।
यहाँ शक्तिपात से वेदार्थ ज्ञान का उल्लेख कहीं भी नहीं है।

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