यह निर्विवाद है कि श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों क्षत्रिय थे। दोनों ने महाभारत यु( किया और करवाया जिसमें सैकड़ों, हजारों लोग मरे।
स ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ के पाँचवे समुल्लास में महर्षि दयानंद जी लिखते हैं कि – ”मोक्ष केवल संन्यासी का होता है, और किसी का नहीं होता। और संन्यास लेने का अधिकार मुख्य रूप से ब्राह्मण को है।” तो दो बातें हो गईं, मोक्ष के लिए संन्यास जरूरी है और संन्यास के लिए ब्राह्मण बनना जरूरी है।
स अब यह बताइए कि श्रीकृष्ण जी ब्राह्मण थे, या क्षत्रिय थे? क्षत्रिय थे। फिर वो बाद में संन्यासी बने या नहीं बने? नहीं बने।
स रही बात श्रीराम और श्रीकृष्ण जी को योगी क्यों कहा गया है? इसका उत्तर है, कि वे गृहस्थ होते हुए भी योगाभ्यास (ईश्वर का ध्यान( करते थे।
स श्री कृष्ण को योगेश्वर कहते हैं। योगेश्वर का मतलब योगाभ्यास करते थे, योग-विद्या जानते थे, अभ्यास (प्रैक्टिकल( करते थे, सत्तर-अस्सी प्रतिशत तक पहुँचे, अभी बीस प्रतिशत बाकी था, सौ प्रतिशत तक नहीं पहुँचे। जो व्यक्ति गणित (मैथ्स( में एम.एस.सी कर लें, क्या उसको गणितज्ञ (मैथेमेटिशियन( नहीं कहेंगे? गणितज्ञ तो कहेंगे, पर अभी उसने मैथ्स में पी.एच.डी. नहीं की। वो थोड़ी बाकी है।
स श्रीकृष्ण जी ने सत्तर-अस्सी प्रतिशत योग्यता बनाई, दस-बीस प्रतिशत बाकी थी। इसलिये उस जन्म में तो उनकी मुक्ति नहीं हुई। वो योग्यता अगले जन्म में, या और एक दो जन्म के बाद, उन्होंने पूरी कर ली होगी। जब पूरी कर ली तो उसके बाद मोक्ष हो सकता है।
स वीरगति का क्या अर्थ है? वीरगति का अर्थ-अच्छे जन्म की प्राप्ति। अगले जन्म में अच्छा उत्तम फल प्राप्त करना, यह वीरगति है।
जो क्षत्रिय अपने कर्तव्य का पालन करते हुए अर्थात् न्याय की रक्षा के लिए लड़ते हुये यु( में जाकर के शहीद हो जाता है, फिर चाहे हारे या जीते, उससे कोई मतलब नहीं है। उसने अपना कर्तव्य पूरा किया, वो वीरगति को प्राप्त होगा। उसको आगे अच्छा फल मिलेगा। उसने कर्तव्य का पूरा पालन किया। कोई पाप नहीं किया, बुरा काम नहीं किया, यह तो हमने बिल्कुल स्वीकार किया।
स मोक्ष की योग्यता पूरी हो जाना, यह एक अलग बात है। उसके लिए ब्राह्मण के बाद फिर संन्यासी बनना अनिवार्य है। ब्राह्मणत्व और संन्यास जब तक हम धारण नहीं करते, तब तक मोक्ष नहीं होगा। इससे पहले मोक्ष नहीं होने वाला। यह सब करने का उद्देश्य पाँच क्लेशों का नाश करना है। संन्यासी बनने के बाद समाधि लगाकर के अविद्या आदि पाँच क्लेश पूरे नष्ट होने चाहिए। यह योगदर्शनकार महर्षि पतंजलि का कहना है। जब तक पाँच क्लेश पूरे नष्ट नहीं होंगे, किसी का मोक्ष होने वाला नहीं है।
स यूँ तो सारे सम्प्रदाय वाले भ्राँति में हैं। वो सारे यह समझते हैं कि हमारा मोक्ष हो जाएगा, लेकिन हो थोड़ी जाएगा।
श्रीकृष्ण ने अच्छे काम किए, कर्तव्य का पालन किया, धर्म की रक्षा की, अन्याय का विरोध किया, तो इनको अगला जन्म बहुत अच्छा मिला, यहाँ तक तो कोई आपत्ति नहीं है। यहाँ तक हमें स्वीकार है। आगे एक-दो जन्म और जोर लगाया होगा और फिर मोक्ष हो गया होगा। इसको मानने में आपत्ति नहीं है।
स श्रीराम जी का भी वही उत्तर है। श्रीराम जी भी क्षत्रिय थे, वो भी ब्राह्मण पूरे नहीं बने। उन्होंने अयोध्या में तीस वर्ष तक राज्य किया और उसके बाद उन्होंने वानप्रस्थ लिया। वानप्रस्थ श्रीराम ने भी लिया, वानप्रस्थ श्रीकृष्ण जी ने भी लिया, दोनों ने लिया। पर संन्यासी दोनों में से कोई भी नहीं बन पाया।
स कोई व्यक्ति गृहस्थ में जाकर के भी मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। पर उसको गृहस्थ के नियमों का पालन करना पड़ेगा।
स प्रश्न में यह तो लिखा है कि राम और कृष्ण गृहस्थ थे। लेकिन यह नहीं लिखा कि वो कैसे गृहस्थ थे। यह नहीं पता लोगों को। आपको पता है, रामचन्द्र जी ने शादी करने के बाद कितने वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन किया? चौदह वर्ष वनवास में रहे, पत्नी साथ में थी। बताइए, कितनी संतान उत्पन्ना की? एक भी नहीं।
चौदह वर्ष तक श्रीराम ने गृहस्थ होते हुए, पत्नी साथ रखते हुए भी ब्रह्मचर्य का पालन किया। ऐसे ही श्रीकृष्ण जी ने भी शादी के बाद बारह साल तक तपस्या की, ब्रह्मचर्य की साधना की।
स बात करते हैं कि वो गृहस्थ थे। भई! गृहस्थ थे, तो उनके जैसे गृहस्थ बनो, फिर तो ठीक है। गृहस्थ बनकर भी उन जैसे आचरण करें। ऐसे गृहस्थ आप बनना चाहें तो स्वागत है, खूब बनो। और उसके बाद फिर देश-
धर्म के लिय एक अच्छी बढ़िया संतान उत्पन्ना करो। उस संतान का अच्छी तरह पालन करें, उसको विद्वान बनायें, धार्मिक बनाएं, सदाचारी, ईश्वर भक्त, ईमानदार बनाएं।
स श्रीराम और श्रीकृष्ण दोनों राजा थे, दोनों क्षत्रिय थे। और पूरा जीवन न्याय के लिए लड़ते थे। धर्म की रक्षा की, न्याय की रक्षा की, ऐसे आदर्श गृहस्थ बनना हो तो स्वागत है, खूब बनो।
स लोग यह तो याद रखते हैं कि राम और कृष्ण गृहस्थी थे, यह भूल जाते हैं कि उन्होंने वानप्रस्थ भी लिया। आज वानप्रस्थ कोई लेता नहीं? आपको वानप्रस्थ लेना पड़ेगा, तपस्या करनी पड़ेगी, साधना करनी पड़ेगी, वैराग्य ऊँचा उठाना पड़ेगा।
स उसके बाद संन्यास लेना पड़ेगा। और संन्यास के बाद पाँच क्लेश राग-द्वेष नष्ट करने पड़ेंगे। तब जाकर मोक्ष होगा। तो यह कठिन काम है, लंबा काम है पर असंभव नहीं है। गृहस्थी बनने के बाद भी इस तरह से चलेंगे तो मोक्ष हो सकता है।
स यदि ब्रह्मचर्य से सीधे संन्यासी बनेंगे तो थोड़ा आसान पड़ेगा। गृहस्थी में से होकर जाएंगे तो थोड़ा कठिन पड़ेगा। संभव तो है, पर आज कोई इतना काम करने के लिए तैयार नहीं। ऐसा माहौल भी नहीं, ऐसा राजा भी नहीं, ऐसी प्रजा भी नहीं, ऐसा सहयोग भी नहीं, सारा ही कुछ उल्टा है। तो आज के माहौल में गृहस्थ बनकर मोक्ष प्राप्त करना बहुत कठिन है। फिर भी चलो इस बार जो हुआ, सो हुआ, अगली बार अगले जन्म के लिए तैयारी करो।
स आजकल के लोग तो यह सोचते हैं, कि गृहस्थाश्रम मौज-मस्ती के लिए है। योगाभ्यास (ईश्वर-भक्ति या ध्यान( तो बुढ़ापे में करने की चीज है। ऐसा सोचना गलत है। और कितने ही लोग तो बुढ़ापे में भी ईश्वर का ध्यान नहीं करते, जीवन का बचा-खुचा समय (बुढ़ापा( भी ताश खेलकर नष्ट कर देते हैं। इसका दण्ड तो उनको भोगना ही पड़ेगा।