देखिये, द्वेष के पर्यायवाची कई हो सकते हैं और इनके स्वरूप भी छोटे-बड़े हो सकते हैं। द्वेष का मोटा सा अर्थ है, अच्छा न लगना। जब हमारे मन में दूसरे व्यक्ति के प्रति क्रोध आता है, जलन होती है, उसका नाम भी द्वेष है। किसी ने हमारी थोड़ी सी बेइज्जती कर दी और हमारे मन में इच्छा हो गई कि- ”अब इससे बदला लेंगे, इसका भी दिमाग दुरूस्त कर देंगे, यह अपने आपको क्या समझता है, मेरा भी अवसर आने दो, इसको दिन के तारे दिखा दूँगा।” व्यक्ति मन में ऐसा सोचता है और जलता-भुनता रहता है। इसका नाम नैमित्तिक द्वेष है। मन में अगर जलन होती है, गुस्सा आता है, बदला लेने की भावना आती है, मार डालने की इच्छा होती है तो यह नैमित्तिक द्वेष है। यह तो अभ्यास से हट जायेगा।
एक द्वेष का बहुत सूक्ष्म स्वरूप भी है ‘कोई चीज पसंद न आना’ वो स्वाभाविक है, वो हटेगा नहीं। यह तो जीवात्मा में सदा ही रहेगा। यह जीवात्मा का नित्य गुण है। हम अल्पज्ञ हैं, अल्प शक्तिमान हैं और हमारी रुचि हर वस्तु में हो भी नहीं सकती। कोई जरूरी थोड़े ही है कि हर चीज हमको अच्छी लगे। आपको खाने में हर आइटम पसंद नहीं आती हर सब्जी आप रुचिपूर्वक नहीं खाते। कोई खाते हैं, कोई नहीं खाते। यह तो स्वाभाविक बात है।