यदि मक्खी, मच्छर हमें परेशान करते हैं, तो हमें इनसे अपनी रक्षा करनी चाहिये। जैसे कोई पाकिस्तानी आतंकवादी हमारे देश में घुस आये, तो क्या हम उससे अपनी रक्षा नहीं करेंगे? करेंगे न। अपनी रक्षा करने का हमको अधिकार है, तो खिड़कियाँ, दरवाजे अच्छी तरह से बन्द रखें। वहाँ जाली लगायें, ताकि मच्छर अंदर न घुसें। कीट, पतंग, मच्छर तरह-तरह की बीमारियाँं अथवा रोग न फैला सकें।
स जहाँ तक हो सके, बिना मारे काम चलता हो, तो इनको न मारें। मान लीजिये, एक मच्छर हमारे हाथ में आकर बैठ गया। तो पहली बार उसको सूचना दें, वार्निंग दें, कि जाओ-जाओ, यहाँ मत काटो। ये हमारा हाथ तुम्हारे काटने के लिये नहीं है। कंधे पर आये,कान पर आये, कहीं भी आये, बैठे और काटने लगे तो एक बार, दो बार उसको वार्निंग देनी चाहिये, कि जाओ भाई! जाओ तुम्हारे खाने के लिये बाहर कूड़ा कचरा बहुत है, जाओ वो खाओ। हमारा शरीर तुम्हारे खाने के लिये नहीं है। यदि फिर भी वह नहीं मानता, आकर बार-बार बैठता है, तो दण्ड व्यवस्था लागू होती है। अब उसको दण्ड दे सकते है। अब आके बैठता है तीसरी बार, चौंथी बार तो अब उसको हल्के से मारना। एकदम जोर से नहीं। दण्ड देते समय द्वेष नहीं आना चाहिये। अगर आपने जोर से मारा, तो इसका मतलब मन में द्वेष आया। ध्यान रहे- द्वेष नहीं करना, गुस्सा नहीं करना। उसको प्रेम से दण्ड देना, जाओ भई! तुमको तीन बार समझाया, तुम नहीं जाते। इसलिए अब दण्ड मिलेगा। अब उसको ऐसे प्रेम से मारो। जाओ छुट्टी।
स और अगर कैमिकल छिड़कने पड़ते हैं, तो वह भी मजबूरी की बात है। तो उसमें थोड़ा बहुत पाप भी लगेगा। दो, चार, पांच, दस पर्सेन्ट, तो कोई बात नहीं, भोग लेंगे।
स अगर जीना है, तो प्राणियों को कुछ तो कष्ट देना ही पड़ता है। हमारे शास्त्रों में लिखा है, कि मनुष्य दूसरे प्राणियों को दुःख दिए बिना जी नहीं सकता। कुछ न कुछ तो हमारे कारण दूसरों को दुःख होता ही है। अपनी जान बचाने के लिए, अपनी रक्षा के लिए कुछ न कुछ तो दूसरों को कष्ट देना ही पड़ता है। जो मजबूरी है, सो ठीक है। मजबूरी मानकर करेंगे, जानबूझकर नहीं, द्वेष भाव से नहीं, अपनी रक्षा की भावना से करना चाहिए।
स कीड़ों से बचाने के लिए किसान कुछ दवाइयाँ छिड़कते है। उससे बहुत से कीड़े मरते हैं, तो उसमें दोष तो लगता है। यह ठीक बात है। लेकिन उस फसल की रक्षा करने से मनुष्य आदि प्राणियों को खाने को भोजन मिलता है। इससे उनके जीवन की रक्षा भी होती है। कुछ हानि होती है, और बहुत सारा पुण्य मिलता है। इस प्रकार से इसको मिश्रित कर्म कहते है।
स इसका प्रायश्चित्त यह है कि कुछ प्राणियों को खाने को भी दो। जैसे कौवे आते हैं, कबूतर आते हैं, वे खेत में फसल खाते हैं, तो उनको खाने भी दो। उनके कोई अलग से फैक्ट्री, कारखाने, व्यापार तो है नहीं। वो बेचारे प्राणी कहाँ खाएंगे? यहीं तो खाएंगे। भगवान ने जो फसल पैदा की है, वह मनुष्य के लिए भी है और कौवों-कबूतरों के लिए भी है। उनको भी खाने दो। वे इतना नहीं खा लेंगे कि मनुष्य के लिए कुछ भी न बचे। थोड़ा वो भी खाएं, थोड़ा हम भी खाएं। पंच महायज्ञ है। उसमें जो बलि वैश्वदेव यज्ञ है, वह एक प्रकार से प्रायश्चित्त के रूप में हैं। आप उनका अनुष्ठान करें।
फिर दो-पांच पर्सेन्ट जो दण्ड मिलेगा, भोग लेंगे। क्या दण्ड होगा, पूरा-पूरा तो हम नहीं कह सकते। थोड़ा बहुत, जो भी दण्ड होगा,भोग लेंगे।