किस मन्त्र से मूर्तिपूजा का विधान है

(पं० रामलाल शास्त्री से बम्बई में शास्त्रार्थ२७ मार्च, १८७६)

जब स्वामी जी बम्बई से पूर्व की ओर जाने को उघत हुए उस समय

यहां के पण्डितों ने स्वयं दूर रहकर रामलाल जी को जो नदियां शान्ति के

विद्वान् थे, शास्त्रार्थ क्षेत्र में आने के लिए उघत किया । उसने एक हूकाभाई

जीवन जी के घर में बहुत झगड़े के पश्चात् चैत सुदि संवत् १९३३ सोमवार

के दिन शास्त्रार्थ आरम्भ किया। बहुत से भद्रपुरुष उस शास्त्रार्थ के समय

उपस्थित थे । दोनों पक्षों की सम्मति से पण्डित बहुजाऊ जी शास्त्री घारीपुरी

निवासी सभापति निश्चित हुए ।

स्वामी जीवेद के किस मन्त्र से मूर्तिपूजा का विधान है सो बतलाइये?

पण्डित रामलाल जी पुराण और स्मृतियों के श्लोक बोलने लगे ।

स्वामी जीये ग्रन्थ मानने के योग्य नहीं हैं । वेद का यदि कोई मन्त्र

स्मरण हो तो कहिए

पण्डित जी ने मनुस्मृति के वे श्लोक जिनमें प्रतिमा, देव शब्द थे, बोले।

स्वामी जी ने सब श्लोकों के यथार्थ प्रमाण सहित अर्थ कर दिये कि

इनका मूर्तिपूजा से कोई सम्बन्ध नहीं था ।

पण्डित जी फिर और स्मृतियों और पुराणों के श्लोक बोलने लगे परन्तु

अन्त तक वेद का कोई मन्त्र न बोले (तब मध्यस्थ जी बोले) ।

मध्यस्थ पण्डित बहुजाऊ जी शास्त्री बोले कि रामलाल जी ! स्वामी जी

प्रश्न कुछ और करते हैं और आप उत्तर कुछ और ही देते हैं । यह सभा और

पण्डित का नियम नहीं है जैसे किसी ने किसी से द्वारिका का मार्ग पूछा और

बतलाने वाले ने कलकत्ते का मार्ग बतलाया । इसी प्रकार का यह आपका शास्त्रार्थ

है। ऐसा कहने पर भी रामलाल ने कोई वेद का प्रमाण नहीं दिया। तब सब की

सम्मति से सभा विसर्जित हुई और सभापति ने सब से स्पष्ट कह दिया कि ट्टट्टआज

पण्डित रामलाल पाषाण—पूजन वेदोक्त सिद्ध न कर सके ।’’

इस प्रकार सत्य कह देने पर इस सत्यवक्ता शास्त्री को कितने ही स्वार्थी

पण्डितों ने सताने में कोई कमी न रखी ।

फिर चैत संवत् १९४० में इन्हीं पण्डित महोदय की मैनेजर वेदभाष्य

तथा वैदिक यन्त्रालय प्रयाग से भेंट हुई और वह सारी की सारी ट्टट्टदेशहितैषी’’

पत्रिका चैत मास उक्त संवत् में प्रकाशित हो गई जो रोचकता से रहित नहीं

है

मैनेजर आपने संस्कृत विघा का बहुत दिन तक अध्ययन किया है

और आप इस भाषा के विद्वान् हैं और धर्म्मशास्त्र के ग्रन्थ देखे होंगे और

आपके अतिरिक्त काशी आदि स्थानों में और भी बहुत विद्वान् हैं और स्वामी

दयानन्द सरस्वती भी बड़े विद्वान् हैं सो आप सब लोग जानते होंगे । फिर

क्या कारण है कि आप लोगों और स्वामी जी की धर्म—सम्बन्धी विषयों में

बातें नहीं मिलती हैं । स्वामी जी चारों वेदों को प्रामाणिक मानते हैं तब उनमें

लिखी बातों को क्या आप लोग सिद्ध नहीं कर सकते ? जो स्वामी जी सत्य

कहते हैं तो आप लोगों को उनका कहना मानना और जो असत्य कहते हैं

तो उनकी बातों का सभा करके खण्डन करना चाहिए । सो आप लोग दोनों

बातों में से एक भी नहीं करते इसका क्या कारण है ?

पण्डित रामलाल जीस्वामी जी संन्यासी हैं, उन को किसी की पर्वाह

नहीं । उन्होंने वेदादि शास्त्रों का अध्ययन बहुत दिनों तक किया है । वे समर्थ

हैं उनकी बुद्धि बड़ी प्रबल है । वे कहते सो शास्त्रानुसार सत्य ही कहते हैं

परन्तु हमारी शक्ति नहीं कि उनका सामना कर सकें क्योंकि हम लोग गृहस्थी

हैं, हमें अनेक बातों की अपेक्षा बनी रहती है फिर हम स्वामी जी की सी

बातें कैसे कह सकते हैं ? संसार में और भी चर्चा फैली हुई है जो उसके

विरुद्ध कहें तो हमारे कहने से भी कुछ न हो और लोग विमुख हो जावें,

फिर आजीविका ही जाती रहे, तब निर्वाह कैसे होय ?

मैनेजरइससे सिद्ध हुआ कि आप अधर्म की जीविका करते हैं क्योंकि

आप जानते हैं कि यह बात मिथ्या है फिर उससे द्रव्योपार्जन करना अधर्म

है। देखो ! स्वामी जी ने असत्य को छोड़कर सत्य ग्रहण किया तो थोड़े काल

में उनका कितना मान हुआ है । इसी प्रकार जो आप लोग भी सत्य को स्वीकार

करें तो वैसा ही सम्मान और नाम आप लोगों का क्यों न हो ?

पण्डित जीक्या करें, सर्व संसार में ऐसी ही प्रवृत्ति हो रही है,

उससे विरुद्ध हम लोग कहें तो कोई नहीं मानता । इस प्रकार तो स्वामी जी

का ही निर्वाह हो सकता है, हम गृहस्थियों का नहीं । (पृष्ठ ८—९)

(लेखराम पृष्ठ २७२ से २७३)