भई ये पूरे-पूरे तो मुझे भी समझ में नहीं आये, तो मैं कैसे बताऊँ आपको कि कौन से कर्म करेंगे तो स्त्री बनेंगे, और कौन से कर्म करेंगे तो पुरूष बनेंगे। मुझे इतना समझ में आया कि बस अच्छे से अच्छा कर्म करो। अब भगवान बना देगा, जो बना देगा।
स कई लोगों के दिमाग में यह बात बैठी हुई है, कि स्त्री जन्म अच्छा है। कई लोगों के दिमाग में यह बात बैठी है, कि पुरूष जन्म अच्छा है। जो सत्य है, वो सत्य है। सत्य को जानना चाहिये, समझना चाहिये और सत्य को खुलकर स्वीकार करना चाहिये, उससे हमारी उन्नति होती है।
सवैसे तो स्त्री और पुरूष दोनों एक ही योनि में हैं, मनुष्य योनि में। मनुष्य योनि की दृष्टि से दोनों बराबर हैं। इसमें कोई ऊँचा-नीचा नहीं है। क्या स्त्रियों का बस में, रेल में आधा टिकिट लगता है और पुरूषों का पूरा लगता है? इस हिसाब से दोनों भारत के समान नागरिक हैं। सबको समान अधिकार है, वोट देने का अधिकार बराबर है। पाकिस्तान में स्त्रियों का आधा वोट है, वो मुझे पता है। वो गलत बात है। यह वेद के अनुसार अन्याय है। वेद में स्त्री और पुरूष दोनों को बराबर बताया है।
स हाँ, किसी व्यावहारिक दृष्टि से किसी-किसी क्षेत्र में स्त्रियाँ ऊपर हैं, पुरूष छोटे हैं। किसी क्षेत्र में पुरूष बड़े हैं तो स्त्रियाँ छोटी हैं। वो अलग-अलग क्षेत्र हैं। कौन सा क्षेत्र है इसमें? वेद कहता है- जब बालक के साथ माता-पिता का संबंध हो, तो माता बड़ी और पिता छोटा। माता का नंबर पहला, माता सबसे पहला गुरू है। अगर पहला गुरू बु(िमान हो, तो बच्चा बु(िमान बनेगा। और पहला गुरू ही मूर्ख हो तो बच्चा मूर्ख बनेगा। तो पहला गुरू माता है, तो माता का नंबर पहला। यहाँ पुरूष छोटा और स्त्री बड़ी। यह एक क्षेत्र है।
स और दूसरा क्षेत्र है, पति-पत्नी का। जब पति-पत्नी का आपस में संबंध हो, तो वहाँ पति बड़ा और पत्नी छोटी, वहाँ यह नियम है। अब बताइये क्या चाहिये आपको, एक तरफ ये (पुरूष( बड़े हैं, एक तरफ ये (स्त्रियाँ( बड़े हैं, दोनों बराबर हो गये, बात खत्म। झगड़ा-वगड़ा कुछ नहीं।
स हाँ, यह ठीक है। कहीं व्यावहारिक दृष्टि से कुछ समस्यायें पुरूषों के साथ कम हैं, और स्त्रियों के साथ कुछ अधिक हैं। कुछ हमारी जिम्मेदारियाँ रहती हैं व्यवहार की। तो उसमें स्त्रियों पर बंधन अधिक रहते हैं, पुरूषों पर उतने नहीं होते हैं। पुरूष तो अकेला घूम लेगा, खा लेगा, कहीं रात को दो बजे प्लेटफार्म पर सो जायेगा, कोई पूछने वाला नहीं। वो तो अकेला ही पूरे देशभर में घूम आयेगा। पर स्त्रियों को इतनी सुविधा नहीं है। उस दृष्टि से हमको स्वीकार करना पड़ता है। बाकी तो मनुष्यता की दृष्टि से दोनों बराबर हैं। इसमें कोई ज्यादा हीन भावना (इंफीरियरिटी कॉम्पलेक्स( की जरूरत नहीं है।
स स्त्रियाँ बेशक पढ़ सकती हैं। वेद में लिखा है, ‘सत्यार्थ-प्रकाश’ में लिखा है, महर्षि दयानंद जी ने लिखा- अगर ईश्वर का प्रयोजन स्त्रियों को पढ़ाने में न होता, तो इनके शरीर में आँख और कान क्यों रखता। वे भी वेद पढ़ सकती हैं, वे भी वैराग्य प्राप्त कर सकती हैं, वे भी संन्यास ले सकती हैं। पर वे संन्यास लेती नहीं, झगड़े करती हैं, संन्यास नहीं लेती, तो हम क्या करें। ये प्रायः झगड़ा ज्यादा करती हैं, राग-द्वेष ज्यादा करती हैं, पढ़ाई करती नहीं हैं, दोष इनका है। बाकी इनका चाँस पूरा है। छूट पूरी है, ये भी पढ़ें, वेद पढ़ें। ब्रह्मचर्येण कन्या युवानं विन्दते पतिम् अर्थात् अथर्ववेद में लिखा है कि- ”कन्या को भी ब्रह्म्चर्य का पालन करके, वेद पढ़ने का पूरा अधिकार है। और विद्या पढ़कर फिर विवाह करना चाहिये।” तो छूट सबको है सारी। बाकी कोई करें या न करें, वो उसकी मर्जी।