किसी को मारना जीव-हत्या कहलाती है। कीड़े, मच्छर, मक्खियाँ जानबूझकर या अनजाने में मारे जाते हैं, तो क्या ये भी जीव-हत्या कही जाएगी?

हाँ, बिल्कुल कही जायेगी, क्यों नहीं कही जाएगी। आप मक्खी, मच्छर मारेंगे, तो फिर हत्या तो कही ही जायेगी। ध्यान में बैठते हैं, एक मक्खी आ गई। कान में गुनगुनाती है, तो आप हटा देते हैं। फिर बैठते हैं, तो वो फिर आती है। मक्खी में इतनी बु(ि थोड़ी है, कि आप हटाना चाहते हैं, तो वो हट जाए। वो तो बार-बार आती है। फिर व्यक्ति को गुस्सा आता है, तो वो फिर क्या करता है? सोचता है- अच्छा देखता हूँ कि वो फिर कैसे आती है। अब मक्खी आई, यूं मारेगा। मच्छर आया, यूँ मारेगा। वो हिंसा है, पाप है। चाहे जानबूझकर मारे, चाहे अनजाने में मारे, पाप तो पाप ही है। अनजाने में किए गए पाप का दंड थोड़ा कम होता है। जानबूझकर करेंगे, तो दंड अधिक मिलेगा। अरे, मक्खी परेशान करती है, तो हटा दो। आप कमरे में मक्खी-मच्छर को क्यों आने देते हैं। कमरे मे जाली लगाओ। दरवाजे बंद रखो। खिडकी में जाली लगाओ। मच्छरदानी लगाओ, मच्छर नहीं आने दो। उसका उपाय करो। मारेंगे तो हिंसा होगी, पाप लगेगा।
अगर बिना मारे काम चलता है, तो क्यों मारें। हमारी आदत खराब हो जाएगी। जानबूझकर मारेंगे, क्रोधपूर्वक मारेंगे, तो निःसंदेह हिंसा के भागी बनेंगे। दुष्ट को दंड देने का विधान जरूर है, पर यदि आपने क्रोधपूर्वक दंड दिया, तो आप हिंसक हो जाऐंगे। न्यायाधीश जो दंड देता है, वो क्रोध करके नहीं देता। दुष्ट को दंड देता है, पर बिना क्रोध किए। ऐसे ही आप मक्खी को हटा दें। बिना क्रोध किए। मच्छर को हटा दें। और कभी बहुत समझाने के बाद भी मच्छर नहीं मानता। बार-बार समझा दिया, मच्छर हटता ही नहीं। मक्खी को समझा दिया, लेकिन वो हटती ही नहीं। अब उसको दंड देना है। मान लो, चलो मारना ही है, तो बिना क्रोध किए मारो, तब तो ठीक है। जब आप क्रोध में आ के मारते हैं, तो हिंसा हो जाती है। अपने स्वभाव को बिगड़ने नहीं देना। क्रोध मत करना। क्रोध पूर्वक नहीं मारना। अब ऐसा करने में आपको कई साल लग जायेंगे। करो परिश्रम, क्रोध को जीतने के लिये।

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