कर्म का फल भोगने के बाद संस्कार नष्ट हो जाते हैं या बने रहते हैं?

संस्कार बने रहते हैं। फल तो भोग लिया, संस्कार बने रहेंगे। जैसे- एक व्यक्ति ने चोरी कर ली। चोरी करना कर्म है। अशुभ कर्म अर्थात् चोरी कर ली। पुलिस ने खोजबीन की। चोर मिल गया। चोरी का सामान भी बरामद हो गया। कोर्ट में केस हुआ। जज साहब ने कहा- छह महिने की जेल दी जायेगी। छह माह की जेल हो गई। यह उसका फल हो गया। छह माह बाद वो जेल से छूटकर बाहर आया। चोरी-कर्म का दंड (फल( क्या था? छह महिना जेल में रहना। फल भोग लिया। लेकिन जेल से छूटने के बाद जो चोरी करने का संस्कार है, वो अभी खत्म नहीं हुआ है। जो बिल्कुल पेशेवर (व्यावसायिक( चोर हैं, जिनका धंधा ही चोरी करने का है, वो जेल से छूटते ही चोरी करेंगे। उनको और कोई काम आता ही नहीं, कुछ सीखा ही नहीं, वे मेहनत करना जानते ही नहीं। बस, चोरी करना जानते हैं। तो वो बार-बार चोरी करते हैं। उससे उनको चोरी करने की जो आदत पड़ जाती है, इसका नाम है- संस्कार। तो यह संस्कार नहीं छूटा। चोरी कर ली, उसका दंड भी भोग लिया। छह मास जेल में भी रहा। पर अभी संस्कार नहीं छूटा। वो अभी बाकी है। बाहर जेल से आते ही फिर चोरी करेगा। इस गलत संस्कार को मिटाने के लिये अलग से मेहनत करनी पड़ेगी। उसके लिये संकल्प करना पड़ेगा, कि ‘अब बस, बहुत चोरी कर ली। अब नहीं करूँगा।’ ऐसा संकल्प करो। कुछ कष्ट उठाओ, थोड़ी तपस्या करो, तो वो संस्कार छूट जाएगा। वरना ऐसे नहीं छूटेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *