अगस्त, सन् १८८१ के पहले सप्ताह में एक दिन एक साधु कबीरपन्थी
·इस शास्त्रार्थ का लेखरामलिखित विस्तृत विवरण पृ० २४२ पर भी है ।
ब्यावर से स्वामी जी के पास मसूदा में आया और परस्पर धर्मचर्चा होने लगी।
स्वामी जीआपके मत के कितने ग्रन्थ हैं ?
साधु जीहमारे २४ करोड़ पुस्तक हैं ।
स्वामी जीयह बात मिथ्या है क्योंकि इतने ग्रन्थों की संख्या और रखने
को कितना स्थान चाहिए ? (इस पर साधु जी कुछ भी न बोले) ।
तब स्वामी जी ने फिर कहा कि तुम्हारे कबीर कौन थे और जब तुम
कबीरमत में होते हो तब उन की प्रशादी और गुरु का उच्छिष्ट भी खाते हो कि
नहीं ?
साधु जी उच्छिष्ट खाते हैं । कबीर का जन्म नहीं है, अजन्म है ।
उस के मां बाप भी नहीं ।
स्वामी जीकबीर जी काशी में कुकर्म से उत्पन्न हुए थे । इस कारण
उस की मां ने उसे बाहर फेंक दिया था । उसी समय वहां पर (जहां पर
कबीर पड़ा था) एक मुसलमान जुलाहा आ निकला । वह कबीर को उठाकर
घर ले गया और अपना पुत्र सा जान उस को पाला और बड़ा किया । अब
देखिये कि उस का जन्म भी हुआ और मां बाप भी ठहरे ।
साधु जी इस बात को सुनकर चुप रहे और कुछ उत्तर न दिया फिर
और विषय पर बातें होती रहीं ।
(ट्टट्टदेश—हितैषी’’ खण्ड १, संख्या ८, पृष्ठ ६, ७) (लेखराम पृष्ठ ५४६)