इसमें स्थान और समय का कोई बन्धन नहीं है। क्या माता-पिता को याद करने में कोई स्थान, समय का बन्धन है! नहीं। ईश्वर भी तो हमारा माता-पिता है। ओ३म् भगवान का नाम है। ओ३म् का उच्चारण कहीं भी कर लो, कभी भी कर लो। भगवान को हमेशा याद रखना चाहिए। इसलिए ओ३म् का उच्चारण हमेशा कर सकते हैं। दिन में करो, रात में करो। भगवान का दरवाजा बंद होता ही नहीं है। वह चौबीस घंटे खुला रहता है।
वेद में तो एक ही देवता है। परमात्मा और ‘ओ३म्’ उसका नाम है। ईश्वर को ठीक से पहचानिये।
ईश्वर एक है, सर्वव्यापक है, निराकार है, उसकी कोई आकृति नहीं है। उसको प्राप्त करने के लिए कहीं दूर मक्का मदीना, वाराणसी और हरिद्वार में जाने की आवश्यकता नहीं है। अपने घर में बैठकर शास्त्रों का
अध्ययन, मनन, स्वाध्याय कीजिए। हाँ, शिविर में जाइए। वेद के विद्वानों के पास जाइए। वहाँ सत्संग सुनिए। शंका- समाधान कीजिए। वेदानुकूल पठन-पाठन व्यवहार कीजिए। इससे हमारा कल्याण होगा। इधर-उधर व्यर्थ भटकने से कोई लाभ नहीं।