एक कसाई गाय को ले जा रहा है। गाय दौड़ गई और एक साधक ने देख लिया। अब गाय की जान बचानी है, तो साधक सच बोले या झूठ बोले?

इस स्थिति में साधक को क्या करना चाहिए, इसके तीन-चार उत्तर हैं।
पहला उत्तर यह है, कि मौन रहेगा, तो भी कसाई गाय को नहीं छोड़ेगा। चौराहे पर जो साधक बैठा है। मान लीजिये वह ब्राह्मण है, और उसने देख लिया है कि- गाय इस तरफ गई है, और उसके पीछे कसाई आ रहा है। वह ब्राह्मण आने वाले कसाई को उपदेश दे। उसको यह समझाए, कि गाय को मत मारो, गाय को मारना अच्छा नहीं है। गाय जिएगी, तो तुम भी जिओगे। कसाई से वह पूछे, कि- तुम्हें दूध, घी, मक्खन, मलाई, पनीर, बर्फी, खोवा खाने को चाहिए, कि नहीं चाहिए? कसाई कहेगा- चाहिए। अरे भाई! तुमको ये सब चाहिए। और अगर गाय मर जाएगी, तो तुमको ये सब कहाँ से मिलेंगे? इसलिये गाय को मत मारो। यह किसका उत्तर है? ब्राह्मण का।
दूसरा उत्तर- मान लीजिए, चौराहे पर बैठा हुआ व्यक्ति क्षत्रिय है। कसाई ने पूछा- बोलो गाय कहाँ गई? तो क्षत्रिय कहेगा- आओ सामने अखाड़े में, तुम गाय को मारोगे? पहले हमसे दो-दो हाथ करो। मेरे होते हुए तुम गाय को हाथ लगाओगे! जहाँ से आए हो, वहीं चले जाओ, नहीं तो तुम्हारी खैर नहीं। क्षत्रिय है, तो ऐसा बोलना चाहिए। झूठ क्यों बोलेगा?
तीसरा उत्तर- मान लीजिए वैश्य है, लड़ भी नहीं सकता, इतनी बु(ि भी नहीं है, समझा भी नहीं सकता। तो वो कहेगा- देखो भाई तुम गाय को मारते हो, गाय को मारने से तुमको क्या मिलेगा? कसाई कहेगा- हजार रुपया मिलेगा। वैश्य कहेगा- ये हजार रुपये ले लो, गाय हमारी हो गई। गाय हमने खरीद ली, तुमको हजार रुपये मिल गए। अब गाय को मत मारो, जाओ।
अगर गाय की रक्षा करनी हो, तो थोड़ी सी ताकत लगानी पड़ेगी। झूठ नहीं बोलना है।
चौथा उत्तर- मान लीजिए, चौराहे पर बैठा हुआ व्यक्ति शूद्र है। न तो वो ब्राह्मण है, न वो क्षत्रिय है, न वैश्य है। न वो उपदेश दे सकता है, न लड़ सकता है, न पैसा दे सकता है। यदि कसाई आता है, तो वह वहाँ से उठकर भाग जाये। क्षत्रियों के मोहल्ले में जाकर सूचना दे, कि- देखो-देखो कसाई आ रहा है, गाय को मार डालेगा, उसकी रक्षा करो। क्या शूद्र इतना भी नहीं कर सकता?
स हम बचपन से अपने पाठ्यक्रम में पढ़ते आ रहे हैं, कि- ”भारत की सीमा पर चीन के सैनिक घुस आए। गाँव के बच्चे जो बॉर्डर पर रहते थे, उन्होंने चीन के पाँच-सात सैनिक घुसते देखे। बच्चों ने भागे-भागे जाकर भारतीय सेना की चौकी पर सूचना दी, कि फलाने बॉर्डर से विदेशी सैनिक घुस आए, जाओ देश की रक्षा करो।”
इतने छोटे-छोटे बच्चे, पाँच साल के आठ साल के बच्चे दौड़कर सैनिकों को इतनी सूचना दे सकते हैं। तो एक चालीस साल का शूद्र क्या इतना निकम्मा है, कि वह यह भी नहीं कर सकता, कि जाये और क्षत्रिय को सूचना दे, कि गाय खतरे में है।
स कभी भी झूठ नहीं बोलने का, सच बोलो। हिम्मत से मुकाबला करना। वेद में कहीं नहीं लिखा है, झूठ बोलने को। ”हन्ति रक्षो हन्ति असद् वदन्तम्।” ये अथर्ववेद का मन्त्र है। ‘हन्ति असद् वदन्तम्’ जो झूठ बोलता है, भगवान उसको दण्ड देता है। ”सत्यम वक्ष्यामि नानृतम्” यह भी अथर्ववेद का मंत्र है। इस मंत्र का अर्थ है कि ‘सच बोलूँगा, झूठ नहीं बोलूँगा।’ झूठ बोलने का विधान कहीं नहीं है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *