ईश्वर ने मनुष्य रूप धारण करके वेदों का ज्ञान नहीं दिया। ईश्वर सर्वव्यापक है। सर्वव्यापक ईश्वर हमारे अन्दर है। वह चार )षियों के अंदर भी था। अन्दर ही अंदर ईश्वर ने उनको सारा पाठ पढ़ा दिया। जैसे आप अभी भी आंख बंद करके बैठ सकते हैं। मन में अन्दर ही अन्दर सोचते रहिए,आपको बोलने की जरूरत नहीं, जुबान हिलाने की आवश्यकता नहीं। आप अंदर ही अंदर सारी बातें करते रहें। घंटो तक बैठें रहिए, चिंतन-मनन करते रहिए। ऐसे ही ईश्वर ने चार )षियों के अंदर ही अंदर सारी पिक्चर दिखा दी। और चारों वेद पढ़ा दिये।
जैसे- )ग्वेद का यह सबसे पहला मन्त्र है-
ओ३म् अग्निमीउे पुरोहिंत यज्ञस्य देवमृत्विजम्। होतारं रत्नधारतमम्।।
ईश्वर ने यह मन्त्र भी पढ़ा (सिखा( दिया। इसका अर्थ- (शब्दानुसार( भी सिखा दिया। इसका पिक्चर- (चित्र( भी दिखा दिया। क्योंकि बिना पिक्चर दिखाए व्यक्ति को अर्थ समझ में नहीं आता। आप छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाइए स्कूल में। ए फॉर एपल, बी फॉर बॉल। सी फॉर कैट, डी फॅार डॉल। न तो कैट दिखाइयेगा, न तो डॉल दिखाइयेगा। क्या उनकी समझ में आ जाएगा, कि एप्पल क्या होता है? आपको चार्ट दिखाना पड़ेगा, या प्रेक्टिकली एपल लाना होगा। ‘ए’ फॉर एपल होता है, वो तब समझ में आएगा। उसका फोटो भी बताना पड़ता है। उसे शब्द भी सिखाना पडता है। ईश्वर ने ‘अग्निमीडे पुरोहितम्’ शब्द भी सिखा दिए, और आँख बंद करने पर पूरी फिल्म दिखा दी। अग्नि इसको बोलते है, स्तुति ऐसे की जाती है। इसी प्रकार से वेद के अन्य मन्त्रों के अर्थ भी चित्र सहित समझाये जैसे- देखो, खेती ऐसी की जाती है, ऐसे हल चलाया जाता है। इस तरह की पूरी फिल्म दिखा दी। उसको बोलते हैं- वेद का ज्ञान। ईश्वर अंदर ही वेद का ज्ञान दे देता है, मनुष्य रूप धारण नहीं करता।