ईश्वर ने मनुष्यों और अन्य प्राणियों को सुख- दुःख भोगने के लिए जन्म दिया है। ऐसा क्यों है?

इसका समाधान है किः-
स सुख-दुःख भोगने के लिए मनुष्यों को संसार में ईश्वर ने जन्म दिया है। जन्म हमारे सकाम कर्मों का फल है। हम पर भगवान ने कुछ थोपा नहीं है। पुण्य कर्म किए हैं तो सुख भोगो। पाप कर्म किए हैं तो दुःख भोगो। निष्काम कर्म किए हैं, तो मोक्ष में जाओ।
स भगवान कब कहता है, कि आप संसार में पड़े रहो। भगवान कहता है – निष्काम कर्म करो, मोक्ष में जाओ। क्यों बार-बार संसार में जन्म लो?
स संसार में नहीं, मोक्ष में रहना ‘बु(िमत्ता’ है। क्योंकि मोक्ष में सुख मिलता है। यहाँ संसार में दुःख मिलता है। इसलिए जितना जल्दी हो सके, मोक्ष में जाओ। योगी समाधि में थोड़ी देर के लिए सुख भोगते हैं। लेकिन इस शरीर से पीछा छुड़ाना चाहते हैं, इसलिए बैठकर समाधि लगाते हैं।
स यहाँ एक व्यक्ति ने पूछा – संसार मे रहना अच्छा है। संसार में तो हम काम करते हैं। मोक्ष में निकम्मे बैठकर क्या करेंगे? तो मैंने कहा- मोक्ष में काम नहीं करना है। वहाँ मौज-मस्ती करनी है। इसे निकम्मापन नहीं कह सकते। मोक्ष वास्तव में छुट्टियाँ मनाने का अवसर है।
संसार में रहते हुए, पता नहीं कितने जन्म हो गए। यहाँ रहते-रहते इतने लाखों-करोड़ों साल हो गए। थक गए, बोर हो गए। इसलिए अब इससे मुक्ति चाहिए। इसे इस तरह समझिए-
आप पाँच दिन काम करते हैं, तो दो दिन छुट्टी क्यों मनाते हैं? उसे आप निकम्मापन कहते हैं क्या? विदेशों में फाइव डेज वीक होता है। अपने यहाँ छह दिन काम करते हैं, एक दिन छुट्टी मनाते हैं। तो क्या छुट्टी को निकम्मापन कहेंगे? नहीं, वो निकम्मापन नहीं है। वो फ्रेश होने के लिए जरूरी है। आप सातवें दिन, आठवें दिन काम नहीं कर सकते। छह दिन आदमी काम कर-करके थक जाता है। एक दिन छुट्टी मनाने को चाहिए। मौज मस्ती करो, फ्रेश हो जाओ, आठवें दिन काम करेंगे।

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