ईश्वर निराकार है, तो निराकार स्वरूप में ही ईश्वर का साक्षात्कार होता है। अगर लाल टोपी होगी, तो किस रंग की दिखाई देगी? लाल दिखेगी। इसी तरह से जो वस्तु जैसी होगी, ठीक वैसी वो साक्षात्कार के समय दिखती है। ईश्वर निराकार है, तो निराकार दिखाई देगा। आनंद स्वरूप है, तो आनंद स्वरूप दिखाई देगा, अर्थात् उसकी वैसी अनुभूति होगी। उसकी आकृति- (शेप( दिखाई नहीं देगी। ईश्वर की आकृति तो है ही नहीं। बिना आकृति के ही, उसकी अनुभूति ही, उसका साक्षात्कार है। साक्षात्कार का नियम यह है, कि- जिस-जिस द्रव्य में, जो-जो गुण होते हैं, उन्हीं-उन्हीं गुणों के माध्यम से, उस-उस द्रव्य का साक्षात्कार होता है। नीला वस्त्र नीले रंग का और पीला वस्त्र पीले रंग का दिखाई देगा। यही उसका साक्षात्कार है। अब प्रारंभिक स्तर पर योगी भी आंख खोलकर ईश्वर साक्षात्कार नहीं कर सकता। पहले-पहले योगी को भी आंख बंद करके ही अभ्यास करना पड़ता है। और फिर लंबे-काल तक अभ्यास कर करके वो इतना कुशल हो जाता है, कि आंख खोलकर भी वह सर्वव्यापक ईश्वर का अनुभव कर सकता है। आंख खुली रहेगी, आंख से उसको बाहर का दृश्य दिखाई नहीं देगा। वो ईश्वर को देखेगा। कभी-कभी सामान्य व्यक्ति भी ऐसा अनुभव करता है। जैसे कि- एक व्यक्ति आँख खोलकर बैठा था। उसके सामने से एक दूसरा व्यक्ति निकल गया। लोग पूछते हैं- ‘यह कौन कौन गया’? वह बोला- पता नहीं साहब। अरे! आप तो आंख खोलकर बैठे थे, आपको पता नहीं चला? उसने कहा, बिल्कुल पता नहीं चला। आँखे भले खुली थी। मैं आंख के साथ नहीं था, मैं कहीं और था। सोच कुछ और रहा था। इसलिए कौन सामने से निकल गया, मुझे पता ही नहीं चला। तो ऐसे ही कुशल योगी व्यक्ति, आँख भले खोलकर रखे, पर वो आंख से देखता नहीं। अर्थात् ईश्वर का अनुभव करता है।