ईश्वर ने जब यह जगत् बनाया तो जिन कर्मों का फल सृष्टि के आरंभ में दिया, वो कर्म हमने इससे पिछली सृष्टि में किए थे। अब आप यह पूछेंगे कि जब पिछली सृष्टि बनाई तब कर्म कहाँ से आए? उत्तर है कि उससे पिछली सृष्टि से आए। इसी प्रकार से उसके पीछे चलते जाओ।
एक व्यक्ति ने पूछा कि जब भगवान ने पहली बार सृष्टि बनाई, तब कर्म कहाँ से आए तो मैंने कहा – पहली बार सृष्टि बनाई ही नहीं। अब यह उत्तर समझ में नहीं आया, टेढ़ा है न ! इस बात को समझना कठिन है।
पहली बार ईश्वर ने सृष्टि कभी बनाई ही नहीं। यह अनादिकाल से चल रही है। तीन वस्तुएँ अनादि हैं- ईश्वर, जीव, प्रकृति। यह सबसे पहला सि(ांत (प्रायमरी लॉ( है। अगर यह समझ में आएगा तो आगे बहुत सी बातें समझ में आ जाएंगी। अगर यह समझ में नहीं आएगा तो कुछ समझ में नहीं आएगा।
ईश्वर ने पहली बार कभी भी सृष्टि नहीं बनाई। अनादिकाल से ईश्वर सृष्टि बना रहा है और जीवात्मा अनादिकाल से कर्म कर रहा है और प्रकृति भोग दे रही है। प्रकृति हमारे कर्मों का फल हमको भुगवा रही है। तीनों अनादिकाल से चल रहे हैं।
विपक्ष को सोचने से बात जल्दी समझ में आती है। यह भी एक समझने का तरीका है। कल्पना कीजिए कि – पहली बार ईश्वर ने सृष्टि बनाई। जब पहली बार बनाई, तो ईश्वर केवल मनुष्य बनाएगा या गाय-घोड़ा भी बनाएगा? अकेला मनुष्य बनाएगा तो अकेला मनुष्य तो जी नहीं सकता। उसको गाय भी चाहिए, घोड़ा भी चाहिए, गधा भी चाहिए, गेहूँ भी चाहिए, चना भी चाहिए। मनुष्य का जीवन ठीक-ठाक चलाने के लिए ईश्वर भेड़-बकरी, गाय, गधा-घोड़ा, कुत्ता, बिल्ली, गेहूँ, चना, सब बनाएगा। ऐसी स्थिति में प्रश्न होगा कि पहली बार ईश्वर ने किसी को मनुष्य बना दिया, किसी को बिल्ली बना दिया, किसी को कुत्ता बना दिया, किसी को वृक्ष बना दिया, तो बिना कर्म के उसने फल दिया कि नहीं दिया? इससे तो यह भी मानना पड़ेगा कि ईश्वर ने पहली बार बिना कर्म के फल दिया। और यदि यह मान लिया कि पहली बार ईश्वर ने बिना कर्म के फल दिया तो यह प्रश्न होगा – क्या ईश्वर न्यायकारी हुआ कि अन्यायकारी हुआ? तब तो वह अन्यायकारी हुआ। जब पहली बार सृष्टि बनाते ही ईश्वर अन्यायकारी हो गया तो दूसरी बार क्या न्यायकारी रहेगा? फिर तीसरी बार क्या हम उस पर भरोसा करेंगे? क्या वह हमारे साथ न्याय करेगा? क्या आप लोग ईश्वर को अन्यायकारी मानने के लिए तैयार हैं। नहीं हैं न। इससे सि( हुआ कि ईश्वर ने पहली बार सृष्टि नहीं बनाई।
ईश्वर न्यायकारी तभी बना रहेगा, जब कर्म के आधार पर फल मिलें और कर्म कहाँ से आएगा? वो पीछे से आएगा और पीछे से पीछे, पीछे से पीछे सृष्टि और कर्म मानेंगे, तब तो ईश्वर न्यायकारी बना रहेगा अन्यथा अन्यायकारी मानना पड़ेगा। तो ऐसा सोचेंगे तो थोड़ा समझ में आएगा।
We all know that what we do in this life(good or sin) we get the fruits in another life.but my question is why don’t the fruits are given in this life as in next life we don’t remember what we have done in previous life and so a human does not fear of wrong doing.many don’t even(of other religion) know they will take birth in next life also.And if god has given fruits in this life then everyone would have fear and would have never commited a sin.And please give a logically straight answer nothing else is requested.
इस जन्म में जो आपकी अवस्था है वह देख के आपको अपने कर्मों का आभास होता ही है
क्योंकि वो भी किसी जन्म के कर्मों के आधार पर है
और जब इसी जन्म में किये कर्म याद नहीं रहते तो पिछले जन्मों में किये गए कर्म कैसे याद रहेंगे
इसका विश्लेषण रिशी दयानन्द ने सत्यार्थ प्रकाश में किया है या फिर आप पण्डित रामचंद्र देहलवी जी की कर्म फल के आधार पर विवेचन की पुस्तिका देख हैं
विस्तृत विवरण उसमें आपको मिल जायेगा
एक और सवाल जैसे कि मैंने कोई पाप कर्म कर दिया लेकिन वह काम करते वक्त मुझे पता नहीं था कि यह एक पाप कर्म है तो क्या उसका भी हमें सजा मिलेगा ।