हम जिस कार्य का अधिक अभ्यास करते हैं, वो कार्य हमारे लिये सरल हो जाता है। आपने देखा होगा कि कुछ लोग शारीरिक कार्य करते हैं, कोई पैकिंग का कार्य करता है। फटाफट वस्तु उठाई, डिब्बे में डाली। डिब्बे में पैक की और भेज दी। मातायें स्वेटर बुनती हैं, उनको अभ्यास हो जाता है तो फटाफट स्वेटर बुनती हैं, जल्दी-जल्दी सलाई चलती है। तात्पर्य है- जिस कार्य को हम अभ्यास में ले आते हैं, वो कार्य तीव्रता और सरलता से होता है। और जिस कार्य का अभ्यास नहीं होता, वो कार्य मंद गति से होता है और कठिन लगता है। जब कहा जाता है कि- मन में मंत्रोच्चारण करो, वेद मंत्रों को याद करो, ईश्वर की उपासना करो। आपने इसका अभ्यास बहुत कम किया है, इसलिये आपको यह कठिन लगता है। और मन में दिनभर उल्टे- सीधे विचार करते रहते हैं, उसका अभ्यास सारे दिन किया है। बहुत किया है, इसलिये वो सरल लगता है। तो चाहे अच्छी बात हो, या बुरी बात हो, मन में खूब तेजी से होती रहती है। सांसारिक बातें खूब चलती रहती हैं, इसलिए वो सरल लगती हैं। उसका लम्बे समय तक अभ्यास किया गया। और ईश्वर उपासना का, मंत्रोच्चारण का, उनके अर्थों को याद करने का अभ्यास नहीं किया, इसलिये वो कठिन जान पड़ता है। यह अंतर है दोनों में। यदि ईश्वर उपासना के मंत्रों का आप बार-बार अभ्यास करें, तो कुछ समय के बाद वो भी आपको सरल लगेंगे। फिर कठिनाई नहीं आयेगी, अभ्यास की बात है, और दूसरी बात है, वैराग्य की। संसार में राग-द्वेष बहुत अधिक है। वैराग्य है या नहीं। ईश्वर में रुचि है या बहुत कम है। इसलिये इश्वरोपासना करना कठिन लगता है। संसार में राग-द्वेष अधिक होने के कारण सांसारिक विचार उठाना सरल लगता है।