हर व्यक्ति में गुण भी होते हैं, दोष भी होते हैं। परशुराम में कुछ गुण भी थे, और दोष भी थे। और द्रोणाचार्य में गुण भी थे, और दोष भी थे। गुणों की पूजा होती है, दोषों की पूजा नहीं होती है। कोई भी व्यक्ति इसलिए परशुराम या द्रोणचार्य की पूजा नहीं करता, कि वे महाक्रोधी थे। उनकी पूजा इसलिये होती है क्योंकि उनमें योग्यता थी। वे विद्वान थे, धनुर्धारी थे, बलवान थे और बड़े वीर थे। किसी भी व्यक्ति की, उसके दोषों के कारण कभी पूजा नहीं होती। रावण के पास बहुत सारे गुण थे, इसलिये दक्षिण भारत के लोग रावण का सम्मान करते हैं। संस्कृत साहित्य में एक कहावत है- ‘गुणाः पूजा स्थानम्”। अर्थात् गुण पूजा का स्थान है, व्यक्ति नहीं। गुण जिस व्यक्ति में होते हैं, उस व्यक्ति की पूजा हो जाती है। वो पूजा वास्तव में व्यक्ति की नहीं है, गुणों की पूजा है। दोषों की कभी पूजा नहीं होती। दोषों का हमेशा अपमान ही होता है। परशुराम द्रोणाचार्य के अंदर कुछ गुण थे, इसलिए उनकी पूजा होती हैं। जो दोष थे, उनके कारण पूजा नहीं होती है।