जन्म होने के बाद चपरासी को एक करोड़ की लॉटरी लग जाए, तो उसको आधिभौतिक सुख मिलेगा।
स पहली बात-एक करोड़ की लॉटरी लगना कोई कर्म-फल नहीं था। बालक को ईश्वर ने जिस माता-पिता के यहाँ भेजा, उस दिन माता-पिता की जो स्थिति है, वहाँ तक तो उसका कर्मफल है। उसके बाद उसमें बिगाड़ भी हो सकता है, सुधार भी हो सकता है।
मान लीजिए, एक अच्छे सेठ के यहाँ एक आत्मा को ईश्वर ने भेजा। जिस समय आत्मा को सेठ के परिवार में भेजा, उस समय सेठ बहुत संपन्ना था। और उसके दो तीन दिनों बाद बेचारे का दिवाला पिट जाने से वो गरीब हो गया। जिस समय ईश्वर ने आत्मा को उस परिवार में भेजा उस समय उस बालक के कर्मफल के अनुसार भेजा। आगे को घट भी सकता है, बढ़ भी सकता है। उसकी गारंटी कुछ नहीं।
स दूसरी बात-लॉटरी खरीदना तो जुआ है। वेद में ‘जुआ खेलना’ मना किया गया है। अतः जुए से जो पैसा मिलता है, वह कोई अच्छे कर्म का फल नहीं है। जबकि लोग यह समझते हैं, कि लॉटरी लगने पर मिलने वाला धन किसी पिछले शुभ कर्म का फल है। ऐसा समझना गलत है।