आपने कहा कि मोक्ष से लौटने पर पहला जन्म शूद्र का होता है, परंतु मोक्ष फल तो अति उत्तम कर्मों से मिलता है। और ऐसी आत्माएं यदि फिर जन्म लें, तो उच्च कोटि के मनुष्य के रूप में ही होनी चाहिए?

मान लीजिए, एक गरीब आदमी दिल्ली में झुग्गी-झोपड़ी में रहता है। उसने अच्छा पुरुषार्थ किया, कुछ रुपया कमा लिया, जिसका फल मिला- एक सप्ताह तक मुम्बई की सैर। वह एक सप्ताह तक मुंबई घूमा। खूब खाया-पीया, अच्छी तरह होटल में भी रहा। एक सप्ताह पूरा हो गया, तो वापस दिल्ली आ गया।
यहाँ सवाल ये उठता है कि अब दिल्ली लौट आया, तो क्या दिल्ली के फाइव स्टार होटल में जाएगा, या वापस अपनी झुग्गी- झोपड़ी में जायेगा? वापस तो वहीं जाना पड़ेगा न। जिस कर्म से उसको एक सप्ताह की मौज-मस्ती मुंबई में मिली थी, अब उसके आधार पर उसको दिल्ली के फाइव स्टार होटल में जगह नहीं मिलेगी। अब तो वापस वहीं रहना है, जहाँ से चले थे। इसी प्रकार से, जो व्यक्ति मोक्ष में जाता है, उसने जिन कर्मों का फल मोक्ष में भोग लिया, वह खत्म हो गया। अब जब मोक्ष से वापस लौटेगा, तो फिर वापस सामान्य जन्म में जाएगा। क्योंकि यहाँ से जब चला था, तब भी झुग्गी-झोपड़ी से ही चला था, जीरो से ही चला था।
कोई भी यात्रा जीरो किलोमीटर से स्टार्ट होती है। जीरो पर खड़ा हुआ व्यक्ति प्लस (वैश्य परिवार, क्षत्रिय परिवार, ब्राह्मण परिवार) की ओर भी चल सकता है और माइनस (पशु-पक्षी योनि में जन्म) की ओर भी चल सकता है।
मोक्ष से जो लौटेगा – जन्म लेगा, वो सकाम कर्मों का फल है। और मोक्ष में जो आनंद भोगा, वो निष्काम कर्मों का फल था। वो तो भोग लिया, खत्म हो गया।
अब दोबारा आपको मोक्ष में जाना है, तो दोबारा नए सिरे से निष्काम कर्म करो, फिर वेद पढ़ो, अपना ज्ञान ठीक करो, समाधि लगाओ,
सेवा करो, परोपकार करो और फिर दोबारा मोक्ष में जाओ। पर वापस लौटने के समय पहला जन्म तो वो ही झुग्गी-झोपड़ी में जाना पड़ेगा अर्थात् शूद्र परिवार में जन्म मिलेगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *