आपने कहा, ईश्वर निराकार है। परछाई (प्रतिबिंब( का आकार दिखता तो है, लेकिन परछाई, (प्रतिबिंब( पकड़ नहीं सकते? फिर हम निराकार ईश्वर को कैसे पकड़ेंगे?

ईश्वर के प्रतिबिंब को पकड़ नहीं सकते। यह तो अलग बात है। परछाई को पकड़ने की बात तो बाद में। पहले बने तो परछाई। परछाई बनती है साकार वस्तु की। ईश्वर है ही निराकार, तो परछाई बनेगी ही नहीं। अगर परछाई बनेगी ही नहीं, तो उसका प्रतिबिंब सि( ही नहीं होता, तो उसे पकड़ने का प्रश्न ही नहीं है। इसलिए न तो ईश्वर की परछाई है, न ही उसकी परछाई पकड़नी है। निराकार त्र (साक्षात्कार करना( है। और वह होगा, अष्टांग योग से। उसे करें। ईश्वर को पकड़ना। जीव अलग है, ईश्वर अलग है। ईश्वर निराकार है और जीव भी निराकार है।

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