ये पूछना चाहते हैं कि मैं उपासना के मार्ग पर चलकर परमपिता को प्राप्त करूँ या फिर भारत वर्ष के इतिहास तथा ज्ञान-गौरव की रक्षा के लिए राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार और कुरीतियों को समाप्त करने के लिये क्राँति का मार्ग अपनाऊँ? उत्तर हैः-
स जिस समय हमारा देश परतंत्र था, पराधीन था, और महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, चंद्रशेखर आजाद, सुभाष चंद्र बोस, ये सब लोग देश रक्षा के लिए चले। इन्होंने त्याग किया, बलिदान किया। उस समय देश में ब्राह्मण, संन्यासी, उपदेशक, वेद को पढ़ाने वाले भी थे और धोबी, नाई और मिठाई बनाने वाले हलवाई भी थे।
क्या उस परतन्त्रता के समय में धोबियों, नाइयों, हलवाइयों ने अपने-अपने कार्य छोड़ दिए थे? क्या वे सब स्वतन्त्रता की लड़ाई में कूद पड़े थे? नहीं न ! तो जब धोबी, नाई, हलवाई आदि अपना काम नहीं छोड़ते, तो ब्राह्मण अपना काम क्यों छोड़ें ? यदि ब्राह्मण अपना काम छोड़कर क्षत्रिय का काम शुरु कर देता है, तो यह बु(िमत्ता नहीं है। यह ब्राह्मण की उन्नाति नहीं, पतन है।
स शहीद भगत सिंह आदि लोग यदि वैराग्य के रास्ते पर चलते, तो हमें स्वतंत्रता नहीं मिलती। ये बात सत्य है। परंतु यदि महर्षि दयानंद जैसे ब्राह्मण संन्यासी न होते, तब भी स्वतंत्रता नहीं मिलती। इसलिए ब्राह्मण और क्षत्रिय आदि सभी लोग चाहिए।
स भगत सिंह आदि ब्राह्मण व संन्यासी क्यों नहीं बन पाए? उनके पूर्व जन्मों के इतने वैराग्य, विद्या आदि के संस्कार नहीं थे। क्षत्रियत्व के संस्कार तो थे। इसलिए क्षत्रिय बनकर उन्होंने देश की रक्षा की। अपनी योग्यता और संस्कारों के अनुसार उन्होंने बहुत अच्छा काम किया।
स यह मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं है। अंतिम लक्ष्य तो मोक्ष (सब दुःखों से छूटना एवं आनंद की प्राप्ति( है। इसलिए वही प्राप्त करना चाहिए। क्षत्रिय बनकर देश की रक्षा करना, इसमें बाधक नहीं है, बल्कि एक मध्यगत स्तर है।
स वास्तव में समाज को सबकी जरूरत है। ब्राह्मण भी चाहिए, क्षत्रिय भी चाहिए, वैश्य भी चाहिए। आपको अपनी क्षमता (कैपेसिटी( और अपनी योग्यता देखनी है कि, आप इनमें से क्या बन सकते हैं ?
(1( पहली प्राथमिकता है – ब्राह्मण बनने की। आज सच्चा ब्राह्मण नहीं मिलता। आज जितने ब्राह्मण हैं, एकाध को छोड़ दो, बाकी लगभग सब के सब व्यापारी बन गये हैं। सब दुकान खोलकर पैसे कमाने में लगे हैं। आज अच्छे ब्राह्मण नहीं मिलते, इसलिए यह देश और दुनिया बिगड़ गयी।
स देश को बचाने के लिए जितनी राजाओं, क्षत्रियों, वीरों की आवश्यकता है, उससे कहीं ज्यादा आवश्यकता सच्चे ब्राह्मणों की है। जो सच्चे देशभक्त, ईमानदार, सच्चे ब्राह्मण और ईश्वर भक्त हों, पहला नंबर उनका है। वो देश को बचा सकते हैं।
स आप अपनी क्षमता को देखें। अगर आप ब्राह्मण बन सकते हैं तो प्रथम वरीयता (फर्स्ट प्रिफरेन्स( है- ब्राह्मण बनिए।
(2( अगर इतनी क्षमता, इतनी सामर्थ्य नहीं है, बु(ि नहीं चलती, इतनी मेहनत नहीं कर सकते, विद्या नहीं पढ़ सकते, तो द्वितीय विकल्प है- अच्छे क्षत्रिय बनिए। फिर वीरों का मार्ग अपनाओ। सेनाओं में जाओ और देश की रक्षा करो।
(3( यदि उतनी भी क्षमता नहीं है तो फिर वैश्य बनिए। पैसे कमाइए और दान दीजिए। अब लोग पैसे तो कमाते हैं, मगर दान नहीं देते। फिर भला देश की रक्षा कैसे होगी?
स मैं जब कहता हूँ कि, ‘अपरिग्रह’ का पालन करो, बहुत पैसे मत कमाओ।” तो फिर लोग कहते हैं – ”जी देखो, वेद में लिखा है कि ‘शतहस्त समाहर’ यानी खूब कमाओ, सौ हाथों से कमाओ।” मैं कहता हूँ – ”हाँ, बिल्कुल लिखा है, पर इसके आगे क्या लिखा है, वो भी तो पढ़ो।” वेद में ‘शतहस्त समाहर’ के आगे लिखा है कि- “सहस्रहस्त संकिर” यानी सौ हाथों से कमाओ और हजार हाथों में बाँटो। लोग आधा पढ़ लेते हैं कि, चारों ओर से कमाओ और अगला पढ़ते नहीं। फिर ऐसे थोड़े ही देश चलता है। ऐसे देश की रक्षा नहीं होती।
स मोक्ष केवल ब्राह्मण को और संन्यासी को मिलेगा। अगर मोक्ष में जाना है, तो ब्राह्मण बनना पड़ेगा। यही एक ही रास्ता है। “नान्यः पन्था विद्यतेऽयनाय” अर्थात् मोक्ष प्राप्ति के लिए दूसरा कोई रास्ता नहीं है। इसलिए अपनी-अपनी योग्यता बढ़ाओ, तपस्या करो, विद्या पढ़ो, ब्राह्मण बनो और विद्या का प्रचार-प्रसार करो। फिर वैराग्य बढ़ाओ, फिर संन्यासी बनो, तब कहीं मोक्ष का रास्ता खुलेगा। ऐसे नहीं खुलेगा, यह ध्यान रखना।
स पहले बता रहा हूँ। घर छोड़े बिना किसी का मोक्ष होने वाला नहीं। अनेक पंडित लोग जनता को खुश करने के लिए बोलते हैं कि- ”साहब, घर में बैठे-बैठे भी गृहस्थ आश्रम से सीधा मोक्ष हो सकता है।”
वे बिल्कुल झूठ बोलते हैं। ऐसा कहीं नहीं लिखा।
”मोक्ष केवल अति उग्र तपश्चरण करने वाले संन्यासियों का ही होता है, अन्यों का नहीं। ”आपको मोक्ष में जाना है, तो संन्यासी बनना पड़ेगा। घर में बैठे-बैठे मोक्ष हो जाता, तो मैं ही घर क्यों छोड़ता ? और भूतकाल में लाखों संन्यासी घर क्यों छोड़ते?