आदिकाल से सृष्टि की उत्पत्ति और प्रलय होता चला आ रहा है, तो क्या इससे यह मान सकते हैं कि उत्पत्ति व प्रलय का जो क्रम है, कभी उसकी शुरूआत हुई होगी, और इसका अन्त भी आएगा, क्योंकि हर कार्य की शुरूआत और अन्त होता है?

वर्तमान सृष्टि उत्पन्न हुई, वर्तमान सृष्टि का अन्त होगा। इससे पहले एक सृष्टि थी, उसके पहले भी एक सृष्टि थी, उससे पहले भी थी। जितना पीछे-पीछे चलते जाएँगे, पीछे-पीछे, उतनी सृष्टियाँ पाते जायेंगे। सृष्टि और प्रलय का यह जो क्रम है, इसका कोई प्रारंभ नहीं है। ‘पहली सृष्टि’ नाम की कोई चीज नहीं थी। जब भगवान ने ‘पहली बार’ सृष्टि बनाई हो, ऐसी कोई सृष्टि नहीं है। यह अनादिकाल से सृष्टि बन रही है, इस बार भी बनी है। ‘प्रथम सृष्टि’ कोई नहीं है। यह बात बु(ि में बड़ी मुश्किल से बैठती है, कम बैठती है। अच्छा एक सिरे की बात समझ में नहीं आई, दूसरे सिरे की बात करेंगे, तो शायद समझ में आ जाये। वर्तमान में यह सृष्टि चल रही है, इसका विनाश हो जाएगा, यानि प्रलय हो जाएगा। उस प्रलय के बाद फिर यह सृष्टि बनेगी। और फिर अगली दूसरी सृष्टि का प्रलय होगा। फिर तीसरी बनेगी, उसका प्रलय होगा। इस प्रकार भविष्य में नई सृष्टियाँ बनती रहेंगी, प्रलय होते रहेंगे। क्या भविष्य में यह बनने-बिगड़ने का क्रम समाप्त हो जाएगा? नहीं होगा। भविष्य में कभी इसका अन्त नहीं होगा। बनती रहेगी, बिगड़ती रहेगी। इसका क्रम कभी समाप्त नहीं होगा। अब नियम क्या कहता है, ‘जिस वस्तु का आरम्भ होता है, उस वस्तु का अन्त होता है।’ अब इस बात को उलटकर बोलिए। ‘जिसका आरंभ नहीं होता, उसका अंत भी नहीं होता।’ इस आधार पर आपने स्वीकार किया, कि सृष्टि-प्रलय का भविष्य में अन्त नहीं होगा। इस तरह दूसरी बात अपने आप सि( हो गई, ‘जब अन्त नहीं है, तो आरंभ भी नहीं है।’ अगर भविष्य में इस सृष्टि-प्रलय का क्रम कभी समाप्त नहीं होगा, तो भूतकाल में भी इसका आरंभ नहीं हुआ होगा। इसलिए बनने-बिगड़ने का क्रम न कभी आरम्भ हुआ, और न कभी समाप्त होगा। थोड़ा गहराई से बैठकर मनन करेंगे, तो अच्छी तरह स्पष्ट हो जाएगा।

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