आत्मा ही मन में विचार उठाती है और जीवात्मा शु(-स्वरूप होती है, तो फिर मन में चोरी-व्यभिचार, हिंसा, असत्य आदि अनुचित अशु( विचार क्यों आते हैं?

प्रश्न का भाव है कि आत्मा मन के द्वारा अपने विचारों को प्रकट करता है। आत्मा शु( है, बु( है, तो मन में अच्छे ही विचार आने चाहिये। तो हमारे मन में बुरे विचार क्यों आते हैं? यदि विचार आत्मा से उठते हैं तो यह हर समय सुविचारों को ही क्यों नहीं उठाता, क्योंकि आत्मा को पवित्र बताया गया है?
स इसके बहुत सारे कारण हैं। बुरे विचार क्यों आते हैं, इसका एक मुख्य कारण हैं, हमारे अपने संस्कार। आत्मा यद्यपि स्वरूप से शु( व पवित्र है। शु( होते हुये भी, उसे जो ज्ञान है, वह कुछ शु( है, कुछ अशु( है। यानी कुछ तो विद्या है और कुछ उसमें अविद्या (उलटा ज्ञान( भी है। अनेक जन्मों की अविद्या हमारे अंदर चली आ रही है। अविद्या नाम का एक दोष है, जो जीवात्मा के साथ जुड़ जाता है। अविद्या (उल्टे ज्ञान( के कारण वो मलीन हो जाता है। अपनी इच्छा से वो खराब काम नहीं करना चाहता, गलती नहीं करना चाहता। स्वयं तो वो अच्छी बात ही चाहता है, सुख ही चाहता है, अच्छे काम ही करना चाहता है। लेकिन जब यह अविद्या ऊपर से चिपक जाती है, तो उसके कारण यह जीवात्मा गड़बड़ विचार (उल्टी सोच( करता है। इसी अविद्या के दोष के कारण वो अच्छे विचार भी उठा लेता है और बुरे विचार भी उठा लेता है। अविद्या के कारण उसमें राग और द्वेष उत्पन्न हो जाते हैं।
स अविद्या के प्रभाव से प्रेरित होकर जीवात्मा झूठ बोलता है, चोरी करता है, व्यभिचार करता है, अन्याय करता है, शोषण करता है, छल-कपट करता है, हिंसा करता है, निंदा- चुगली करता है।
अविद्या जीवात्मा को लपेट लेती है, क्योंकि जीवात्मा अल्पज्ञ है।
स ईश्वर सर्वज्ञ है, उसको अविद्या नहीं लपेट सकती, उसको अविद्या नहीं दबा सकती। वो इतना मजबूत है, कि अविद्या उसे नहीं सताती। जीवात्मा बेचारा कमजोर है, इसलिए अविद्या उसको आकर दबा लेती है, वो बेचारा पिट जाता है। इस प्रकार अविद्या के नीचे दबकर जीवात्मा उलटे-सीधे काम करता है। उस अविद्या के कारण, उन संस्कारों के कारण जीवात्मा बुरे विचार भी करता है।
स इस प्रकार कुछ विद्या भी है और कुछ अविद्या भी है। यह दोनों नैमित्तिक हैं यानि यह बाहर से आती हैं। कहीं अड़ोस-पड़ोस के लोगों से कुछ बुरी बातें सीख लेता है। उसके कारण बुरे विचार करता है। कुछ टेलीवीजन से, कुछ कंप्यूटर से, कुछ टेलीफोन-मोबाईल से, कुछ इंटरनेट से, कुछ पढ़ाई लिखाई के सिलेबस से, कुछ मित्र-मण्डली से, कुछ सरकार के कानूनों से, ऐसे बहुत सारे कारण हैं, जिनसे व्यक्ति बुरे विचार भी कर लेता है।
स प्राकृतिक रजोगुण, तमोगुण की वजह से जीवात्मा में यह अविद्या, राग-द्वेष आदि दोष उत्पन्न हो जाते हैं। इस गड़बड़ी के कारण कभी-कभी वो बुरे विचार भी उठा लेता है, बुरे काम भी कर लेता है, गलत भाषा भी बोल देता है।
स जब व्यक्ति अविद्या को दूर कर लेता है तो हर समय सुविचार ही उठाता है। इसलिए कोशिश करनी चाहिये, कि उन बुरे विचारों से बचें। उन बुरे विचारों को रोकें। अच्छे विचार करें, अच्छी भाषा बोलें, अच्छे कर्म करें। ऐसा हमको पूरा प्रयत्न करना चाहिये। इसका उपाय है-वेदों का अध्ययन, ईश्वर का ध्यान और निष्काम सेवा करना।

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