आत्मा हर समय सुविचारों को ही क्यों नहीं उठाता, क्योंकि आत्मा को पवित्र बताया गया है? मन में अशु( विचार जैसे – चोरी-व्यभिचार, हिंसा, असत्य आदि अनुचित विचार क्यों आते हैं?

यहाँ प्रश्न पूछा है कि आत्मा मन के द्वारा अपने विचारों को प्रकट करता है। सुना है कि आत्मा नित्य है, शु( है, बु( है, इसलिए मन में अच्छे ही विचार आने चाहिए। आत्मा अपने स्वरूप से शु( व पवित्र है तो हमारे मन में बुरे विचार क्यों आते हैं? इसके बहुत सारे कारण हैंः-
स अपनी इच्छा से जीवात्मा खराब काम नहीं करना चाहता, गलती नहीं करना चाहता। स्वयं तो वो अच्छी बात ही चाहता है, सुख ही चाहता है, अच्छे काम ही करना चाहता है।
स ‘अविद्या’ नाम का एक दोष है, जो जीवात्मा के साथ जुड़ जाता है। आत्मा यद्यपि स्वरूप से शु( है। शु( होते हुए भी, आत्मा के पास जो ज्ञान है, वह कुछ शु( है, कुछ अशु( है। यानी आत्मा में कुछ तो विद्या है और कुछ उसमें अविद्या भी है। अविद्या (उल्टे ज्ञान) के कारण वो मलीन हो जाता है।
स यह दोनों विद्या-अविद्या नैमित्तिक हैं यानि कि यह बाहर से जीवात्मा में आती हैं। कहीं वह अड़ोस-पड़ोस के लोगों से कुछ बुरी बातें सीख लेता है। उसके कारण बुरे विचार करता है। कुछ टेलीवीजन से, कुछ कंप्यूटर से, कुछ मोबाईल से, कुछ इंटरनेट से, कुछ पढ़ाई-लिखाई के सिलेबस से, कुछ मित्र-मण्डली से, कुछ सरकार के कानूनों से, ऐसे-ऐसे बहुत सारे कारण हैं, जिनसे व्यक्ति बुरे विचार भी कर लेता है। प्राकृतिक रजोगुण, तमोगुण की वजह से भी जीवात्मा में यह अविद्या, राग-द्वेष आदि दोष उत्पन्ना हो जाते हैं। इस गड़बड़ी के कारण कभी-कभी वो बुरे विचार उठा लेता है, बुरे काम भी कर लेता है, गलत भाषा भी बोल देता है।
स जब यह अविद्या ऊपर से चिपक जाती है, तो उस अविद्या के कारण, उन संस्कारों के कारण जीवात्मा बुरे विचार यानी गड़बड़ विचार (उल्टी सोच) करता है। इसी अविद्या के दोष के कारण वो अच्छे विचार भी उठा लेता है और बुरे विचार भी उठा लेता है। अविद्या के कारण उसमें राग और द्वेष उत्पन्ना हो जाते हैं। इस प्रकार कुछ विद्या भी है और कुछ अविद्या भी है।
स अविद्या के प्रभाव से प्रेरित होकर जीवात्मा झूठ बोलता है, चोरी करता है, व्यभिचार करता है, अन्याय करता है, शोषण करता है, छल-कपट करता है, हिंसा करता है, निंदा- चुगली करता है। अविद्या जीवात्मा को लपेट लेती है, क्योंकि जीवात्मा अल्पज्ञ है। जीवात्मा बेचारा कमजोर है, इसलिए अविद्या उसको आकर दबा लेती है, वो बेचारा पिट जाता है। अविद्या के नीचे दबकर जीवात्मा उल्टे-सीधे काम करता है।
स ईश्वर सर्वज्ञ है, उसको अविद्या नहीं लपेट सकती, उसको अविद्या नहीं दबा सकती। उसमें ज्ञान की पराकाष्ठा होने से अविद्या उसे नहीं सताती।
स अनेक जन्मों से अविद्या हमारे अंदर चली आ रही है। जब व्यक्ति अविद्या को दूर कर लेता है तो हर समय सुविचार ही उठाता है।
स कोशिश करनी चाहिए कि बुरे विचारों से बचें, बुरे विचारों को रोकें, अच्छे विचार करें, अच्छी भाषा बोलें, अच्छे कर्म करें। ऐसा हमको पूरा प्रयत्न करना चाहिए। इसका उपाय है-वेदों का अध्ययन, ईश्वर का ध्यान और निष्काम-सेवा करना।

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