आत्मा’ और ‘शरीर’ बुरी तरह एक दूसरे में घुले-मिले हैं, इनको अलग-अलग कैसे मानें?

आत्मा’ और ‘शरीर’ को अलग-अलग मानने के लिए कुछ मोटी-मोटी बातें अवश्य समझ लें। सवाल उठता है कि – क्या ‘आत्मा’ उत्पन्ना होती है? जवाब है, नहीं। क्या ‘शरीर’ उत्पन्ना होता है? जवाब है, हाँ। ‘आत्मा’ न उत्पन्ना होती है, न मरती है, जबकि ‘शरीर’ उत्पन्ना होता है और मरता है। इसी तरह आत्मा बूढ़ी नहीं होती, शरीर बूढ़ा होता है। आत्मा आँख से दिखती नहीं, शरीर आँख से दिखता है। इस तरह हो गए न, दोनों अलग-अलग।

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