आत्मा’ अणु के बराबर होती है जबकि चेतना हमारे सारे शरीर में व्याप्त है?

आत्मा ‘अणु-स्वरूप’ मतलब बहुत सूक्ष्म होती है। जीवात्मा बहुत छोटा है।
चेतना तो सारे शरीर में व्याप्त है। सिर से पाँव तक हमें सब जगह अनुभूति होती है। अनुभूति सारे शरीर में होती है, ईश्वर ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है। आत्मा एक ही स्थान पर रहता है, और नस-नाड़ियों के माध्यम से और तंत्रिका-तंत्र के माध्यम से शरीर में अनुभूतियों की व्यवस्था कर रखी है। जैसे- एक फैक्ट्री का मालिक अपने कार्यालय में- (एक जगह( बैठा रहता है। और उसने फैक्ट्री के अलग-अलग दो कमरों में वीडियो कैमरे लगा रखे हैं। उन कैमरों की सहायता से वह एक जगह बैठकर फैक्ट्री के अनेक कमरों की जानकारी करता रहता है। इसी प्रकार से मन है, बु(ि है, इंद्रियाँ हैं, इन सारे उपकरणों के माध्यम से जीवात्मा को एक ही स्थान पर रहते हुए भी पूरे शरीर की बहुत सारी मोटी-मोटी अनुभूतियाँ हो जाती है, लेकिन सारी नहीं। आपको पेट में क्या रोग हो रहा है? आपको पता नहीं है। जब वो काफी बढ़ जाता है, दर्द होने लगता है, तो जाते हैं, डॉक्टर साहब के पास। फिर वो चेकअप करते हैं, और बताते हैं कि साहब, ये बीमारी तो तीन साल से चल रही है। आपने चेकअप ही नहीं कराया, इसलिए तीन साल बाद पता चला। इस तरह आत्मा को सब बातों का पता नहीं चलता, मोटी-मोटी अनुभूतियाँ अवश्य हो जाती हैं। कहीं पेट दुख रहा है, पाँव दुख रहा है, सर दुख रहा है, जो भी हो रहा है, वह मोटा-मोटा पता चलता है। वो ईश्वर की व्यवस्था है।

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