अन्यायपूर्वक मिले दुःख या हानि की ईश्वर क्षतिपूर्ति करता है। जैसे सेठ के यहाँ चोर ने चोरी की, इस अन्याय की क्षतिपूर्ति ईश्वर सेठ को किस प्रकार करेगा?

भगवान कैसे पूर्ति करेगा, कहाँ करेगा, कब करेगा, वो हम नहीं जानते। यह बात हमारी समझ में नहीं आई।
स कर्मफल तो इतना विचित्र है कि इसको कोई भी मनुष्य पूरा-पूरा नहीं जान सकता। व्यक्ति उसे बहुत मोटा-मोटा ही जान सकता है।
ईश्वर की कर्म-फल व्यवस्था, ‘न्याय-व्यवस्था’ बड़ा विस्तृत और जटिल विषय है, सूक्ष्म विषय है। बड़े-बड़े )षि-मुनियों ने इस विषय पर बहुत चिन्तन किया, बहुत मनन किया और कुछ बातें जो उनको समझ में आई, वो उन्होंने बताई। फिर आगे चलकर के उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिये कि- ”भई अपने बस का नहीं है, यह बहुत कठिन है। इसको कोई भी नहीं समझ सकता।”
स इतना जरूर निश्चित है कि जो भी क्षति हुई, जो भी नुकसान हुआ, उसकी पूर्ति तो मिलेगी, इसमें कोई शंका नहीं है। इस बात को एक उदाहरण से समझेंगेः-
एक सेठ के यहाँ चोरी हुई। पुलिस पीछे लग गई। चोर पकड़ा गया और चोरी में जो सामान गया था, वह सामान भी मिल गया। अब न्याय करना है, तो दो पात्र हैं हमारे सामने, एक तो सेठ और एक चोर। सेठ के यहाँ चोरी हुई, चोर ने चोरी की। अब दोनों के साथ न्यायाधीश कुछ न कुछ व्यवहार करेगा। चोर को तो न्यायाधीश जेल में डाल देगा। और जो चोरी का माल बरामद हुआ था, वो माल सेठ साहब को वापस मिलेगा। तभी तो इसे न्याय कहेंगे। यह जिम्मेदारी सरकार की और न्यायाधीश की है। अगर चोरी का माल सरकारी खजाने में चला जाए, तो सेठ कहेगा- ”साहब, मेरे साथ तो न्याय नहीं हुआ। मेरी तो संपत्ति व्यर्थ में चली गई।”
स भगवान तो पूर्ण न्यायकारी है। आप भी ईश्वर को न्यायकारी मानते हैं न। तो आपकी जो क्षति हुई, वो ईश्वर पूरी नहीं करेगा क्या? न्याय का नियम है कि जो क्षति हुई, उसकी पूर्ति तो मिलनी ही चाहिए। तभी तो न्याय होगा। नहीं तो फिर, अंधेर नगरी चौपट राजा। न्याय तो तभी होता है कि जो सामान चुराया गया है, वह वापस मिले। ईश्वर भी न्यायकारी है, जिसका जो भी नुकसान हुआ, ईश्वर उसकी पूर्ति करेगा। कब करेगा, कहाँ करेगा, कैसे करेगा, यह वही जाने, यह हम नहीं जानते।

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