अगर पशु योनि में बु(ि नहीं है, तो उनकी क्रिया जैसे कि लागणी, प्रेम, स्वरक्षण जैसे गुण कहाँ स्थित होते हैं?

हमने ऐसा तो कभी नहीं कहा कि पशु योनि में बु(ि नहीं है। मैंने यह नहीं कहा था कि केवल मनुष्यों के पास बु(ि है, पशु-पक्षियों के पास नहीं। हम तो मानते हैं कि पशुओं में बु(ि होती है।
मैंने यह कहा था कि जितनी बु(ि मनुष्य के पास है, इतनी बु(ि पशु-पक्षियों के पास नहीं है। मनुष्यों के पास जैसी बु(ि है और पढ़-लिखकर मनुष्य जितनी बु(ि का विकास कर सकते हैं, ऐसी बु(ि प्राणियों के पास नहीं है और वो इतना विकास नहीं कर सकते, जितना कि मनुष्य कर सकता है।
इसका अर्थ हुआ कि पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों में भी बु(ि है, पर कम है। इतनी कम बु(ि के आधार पर वो अपना जीवन चला लेते हैं। पशु-पक्षियों के छोटे-छोटे बच्चे होते हैं, वे उनके प्रति राग रखते हैं, उनको खिलाते-पिलाते हैं, उनकी रक्षा भी करते हैं, अपनी रक्षा भी करते हैं। इतना काम वो कर सकते हैं। इतनी बु(ि उनमें है।

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