वेद ईश्वर की वाणी है। इसको इस तरह से समझना चाहिए, कि मनुष्य बिना सिखाए नहीं सीखता। बचपन से माता-पिता ने हमकों उठना-बैठना, खाना-पीना, चलना-फिरना, बोलना आदि सब बात सिखाई, तब जाकर हम सीख पाए। फिर स्कूल में गए। अनेक अध्यापकों, शिक्षकों ने हमें पढ़ाया-लिखाया, तब जाकर हमारी बु(ि का कुछ विकास हुआ।
स एक मनुष्य के बच्चे को जन्म से ही बड़े से कमरे में रख दिया जाए। जिसमें बहुत बड़ी लाइब्रेरी हो, और बहुत बड़ी-बड़ी मशीनें हों, कम्प्यूटर भी हो, सिखाने वाली सारी चीजें हों। और उसको शिक्षक, टीचर कुछ भी न दिया जाये। तो क्या वो सारी लाइब्रेरी की पुस्तकें पढ़कर विद्वान हो जायेगा? नहीं होगा न। तो इससे पता लगता है, कि जब तक शिक्षक-अध्यापक (टीचर( न मिलें, तब तक व्यक्ति का विकास नहीं होता।
स आप और हम, आज पढ़-लिखकर बु(िमान हो गये। हमें बु(िमान बनाया, हमारे अध्यापकों ने। हमारे अध्यापकों को बु(िमान बनाया उनके अध्यापकों ने। और उनको-उनके अध्यापकों ने। तो पीछे-पीछे चलते जाइये। सबसे पहले जो मनुष्य पैदा हुये, इनको बु(िमान किसने बनाया? उनको भी कोई अध्यापक-शिक्षक चाहिए। उनकी किसने विद्वान बनाया? ईश्वर ने। तो ईश्वर ने जो पहली पीढ़ी (फर्स्ट जनरेशन( को जो पढ़ा-लिखा कर विद्वान बनाया, वो ही चारों वेद थे। उन चार वेदों के माध्यम से ईश्वर ने पहले-पहले मनुष्य को पढ़ा करके बु(िमान बनाया।
स और फिर ईश्वर ने उनको पढ़ा कर, उनकी ड्यूटी लगा दी कि मैंने आपको पढ़ा दिया अब आप आगे वाली पीढ़ी को पढ़ाओ। फिर वो आगे-आगे गुरू-शिष्य परंपरा से पढ़ना-पढ़ाना चलता रहा, और आज तक हम पढ़ते चले आ रहे हैं। जब तक लोग ऐसे पढ़ते जायेंगे, तब तक लोग बु(िमान बनते जायेंगे। और जब पढ़ना-पढ़ाना छोड़ देंगे, फिर जंगलियों की तरह हो जायेंगे, पशुओं की तरह बन जायेंगे। तो ईश्वर ने सबसे पहले चार वेदों का उपदेश दिया। फिर उन्हीं चार वेदों से सब लोग बारी-बारी से पढ़कर बु(िमान हुए।
स अब प्रश्न यह रह जाता है, कि ईश्वर ने यह चार वेदों का उपदेश कैसे दिया। उसकी प(ति क्या है? इसको समझाते हैं। प्रश्न है – ईश्वर एक है या अनेक? उत्तर है-एक । अगला प्रश्न है, वह एक ईश्वर एक जगह पर रहता है, या सब जगह पर ? उत्तर है- सब जगह पर। अगर ईश्वर सब जगह रहता है तो हमारे अंदर भी है, बाहर भी है। तो शुरु-शुरु में जो हजारों मनुष्य पैदा हुए थे। उनमें जो बहुत अच्छे सबसे अधिक बु(िमान थे, सुपर जीनियस क्लास में चार व्यक्ति धरती पर भगवान ने सिलेक्ट कर लिये (चुन लिये( । उनको हम ‘)षि’ नाम से कहते हैं । )षि-सबसे अधिक बु(िमान व्यक्ति। वो इतने बु(िमान कहां से हो गये थे। वो पिछली सृष्टि के कर्म-फल के अनुसार बु(िमान थे, उनके ऐसे अच्छे कर्म थे। तब उन चार व्यक्तियों के मन में एक-एक वेद का उपदेश दिया। इस तरह से ईश्वर ने चार व्यक्तियों को चार वेदों का उपदेश उनके मन में दिया। क्योंकि ईश्वर उनके अंदर भी था और बाहर भी था।
स जब अंदर ही अंदर आपको बोलना हो, अपने मन में ही कोई बातचीत करनी हो, योजना बनानी हो, प्लानिंग करनी हो, तो बिना जबान हिलाये, आप मन-मन में खूब योजना बना सकते हैं। और जब ध्यान में बैठते हैं, तो बिना हिलाये चलाये, बिना जबान चलाये मन्त्रपाठ, अर्थ का विचार कर सकते हैं। तो ईश्वर भी उन चार व्यक्तियों के मन में था। और उनके अंदर बैठे भगवान ने चारों वेदों का उपदेश दे दिया और सारी बात अंदर ही अंदर सिखा दी। उसको न जबान की जरुरत पड़ी, न मुंह की जरुरत पड़ी, न होठ की जरुरत पड़ी। उन )षियों के नाम अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा थे। अग्नि को )ग्वेद का ज्ञान दिया। वायु को यजुर्वेद का, आदित्य को सामवेद का और अंगिरा को अथर्ववेद का। इस तरह ईश्वर ने सृष्टि के आरंभ में वेद का ज्ञान दिया।