कर्मों की दृष्टि से चारों वर्ण ठीक हैं और लोकव्यवहार से ठीक
नहीं हैं अर्थात् जो जैसा कर्म करे वैसा ही उसका वर्ण है । उदाहरणार्थ जो
ब्रह्मविघा जाने वह ब्राह्मण, जो युद्ध करे वह क्षत्रिय, लेन—देन हिसाब—किताब
करे वह वैश्य, जो सेवा करे वह शूद्र है। यदि ब्राह्मण क्षत्रिय या शूद्र का
काम करे तो ब्राह्मण नहीं, सारांश यह कि वर्ण कर्मों से होता है, जन्म से
नहीं । जन्म से चारों वर्ण (वर्तमान अवस्था में) लगभग बारह सौ वर्ष से
बने हैं । जिसने बनाये उसका नाम इस समय स्मरण नहीं परन्तु महाभारतादि
से पीछे बने हैं ।