चिंतन का मतलब होता है किसी बात की गहराई में जाना। उसको कई प्रकार से सोचना। जैसे मान लीजिये, आपने प्रवचन में सुना अथवा किसी पुस्तक से पढ़ा कि- ‘एक ईश्वर है।’ ईश्वर कितने हैं?ं एक है। सभी लोग कहते हैं। आप बातचीत में किसी से भी पूछो, कि भगवान एक हैं या अनेक ? तो क्या उत्तर देगा -एक। फिर दूसरा सवाल पूछो वो एक भगवान एक जगह रहता है, या सब जगह। सब जगह ? सभी लोग यही कहेंगे- सब जगह। जब दो बात तो उन्होंने ठीक बोल दी, भगवान एक है और वह सब जगह रहता है। और जब तीसरा सवाल पूछेंगे, तो झगड़ा शुरू हो जायेगा। तीसरा सवाल यह है कि जो वस्तु सब जगह रहती है, क्या उसकी शक्ल होनी चाहिये या नहीं होनी चाहिये? नहीं होनी चाहिये। अब पूछो, आपके घर में शक्ल वाला भगवान रखा है या नहीं रखा है? रखा है। बस यही गड़बड़ है। जब ऐसी गड़बड़ सामने आये, तब चिन्तन की जरूरत है, तब सोचने की जरूरत है। इसकी गहराई में उतरो, अगर भगवान शक्ल वाला है तो वह सब जगह नहीं रह सकता । और अगर वह सब जगह रहता है, तो शक्ल वाला नहीं हो सकता। ऐसे बैठ करके विचार करना।
स दो पक्ष बनाकर के तर्क-वितर्क उठाना। फिर प्रश्न उठाना, फिर उसका उत्तर ढूंढना, फिर प्रश्न उठाना, फिर उत्तर ढूंढना। इसका नाम है ”चिन्तन”। इस चिन्तन के लिये पहली चीज है, अच्छी प्रकार ध्यान से प्रवचन सुनना। किसी वक्ता का प्रवचन पूरे ध्यान से सुनना। मन लगाकर सुनना, कि उसने क्या बोला। क्या-क्या शब्द बोले? क्या कहना चाहता है? उसके अभिप्राय को ठीक से समझना, पहली बात। और दूसरी बात-उसको थोड़ा दोहराना (रिवाइज( करना। सोचना, उसने क्या बोला था। उसके वचनों का अर्थ क्या था? और फिर तीसरी बात, ऐसे पक्ष-विपक्ष बनाकर के प्रश्न-उत्तर करना, और उस बात की गहराई में उतरना। और अंत में एक निर्णय पर पहुँचना। सारे प्रश्न-उत्तर करके अंत में सार क्या निकला। ईश्वर को शक्ल वाला मानें या नहीं। अगर वो एक है, यह हमने स्वीकार कर लिया। और यह भी स्वीकार कर लिया, कि वो सब जगह रहता है। तो फिर तीसरी बात अपने आप साफ है, जो चीज सब जगह रहती है, उसकी कोई शक्ल नहीं हो सकती। या तो कोई प्रमाण लाओ, कि अमुक वस्तु सब जगह रहती है, और उसकी शक्ल भी है। यदि कोई ऐसी वस्तु मिल जाये, कि वो सब जगह रहती है और उसकी भी फोटो (शक्ल( है। तब तो हम ईश्वर की फोटो (शक्ल( मान लेंगे। वो भी सब जगह रहता है, उसकी भी फोटो शक्ल है । यदि आप ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं ढूंढ पाये, कोई्र उदाहरण नहीं ढूंढ पाये, कि कोई वस्तु सब जगह है और शक्ल भी है। यदि नहीं ढूंढ पाये, तो इसका मतलब साफ है, कि ईश्वर सब जगह रहता है, इसलिए उसकी कोई शक्ल नहीं हो सकती। इसका नाम है- ‘चिन्तन’। इस तरह से करना चहिये। और जो अंत में सार निकले उसको स्वीकार करना चहिये। जब यह प्रमाण से सि( हो गया कि ईश्वर सब जगह रहता है, और उसकी कोई शक्ल, आकृति नहीं है। तो फिर उसको स्वीकार करो। आज के बाद शक्ल वाले की, फोटो वाले की पूजा नहीं करना। वो तो महापुरूषों की फोटो है। रखो घर में, कोई आपत्ति थोड़े ही है। फोटो रखना कोई बुरी बात थोड़े ही है। देखो हमने कितनी फोटो लगा रखी है यहाँ पर। अपने महापुरूषों की, दादा-परदादा की, बड़े-बुजुर्गों की फोटो लगानी चाहिये। देश के वीर पुरूषों की, महारानी लक्ष्मीबाई, महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी, चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, सुभाषचन्द्र बोस ऐसे-ऐसे वीर पुरूषों की फोटो लगानी चाहिये। अच्छे-अच्छे संत महात्मा, महर्षि दयानंद, महर्षि कणाद, महर्षि गौतम, महर्षि कपिल ऐसे-ऐसे साधु, संतों, )षियों के फोटो लगाने चाहिये। फोटो लगाने मं् कोई आपत्ति नहीं है। उनकी पूजा नहीं करनी, उन की आरती नहीं करनी, उनको खिलाना-पिलाना नहीं है। यह गड़बड़ है। बोलो, अग्नि सब जगह रहती है न। जब वो सब जगह रहती है तो उसकी आकार, आकृति कौन सी है। जो अग्नि लपटों के रूप में दिख रही है। वो सब जगह नहीं रहती। और जो सब जगह रहती है, वो दिखती नहीं। बताईये, आकार कहाँ हुआ? इसलिये दोनों में अंतर है। यह है चिन्तन का स्वरूप।