कठोर शब्द अर्थात् जो सुनने में बुरा लगे, सुनने में अच्छा न लगे। जैसे एक व्यक्ति कुछ देर से आया। तो उसको हम कोमल शब्द कहेंगे। प्रेम से यूं बोलेंगे कि- ‘जी, आप देर से आये, थोड़ा जल्दी आते, तो अच्छा लगता।’ ऐसी भाषा बोलेंगे, तो यह ‘कोमल’ भाषा है। इसी को हम कठोर भाषा में बोलेंगे। ‘आपको समझ नहीं आती क्या। यहाँ पर कितनी बार बतायें, अब तक समझ में नहीं आई! लेट आते हो आप, क्या मजाक बनाा रखा है!’ ऐसे बोलेंगे, तो यह कठोर भाषा है। यह उसको अच्छी नहीं लगेगी। तो फिर कैसे बोलना चाहिये-
‘भाई, आपको जल्दी आना चाहिए, समय का पालन करना चाहिये, आप देर से आते हैं तो सबका नुकसान होता है।’ ऐसे प्रेम से भाषा बोलनी चाहिए।
किसी बच्चे को हमने प्रेमपूर्वक कुछ कार्य बतलाया, उसने नहीं सुना। फिर दो बार, तीन बार प्रेमपूर्वक कहा लेकिन उसने बात नहीं मानी। तब हमने जोर से कह दिया, अब तो मान गया। यह कठोर शब्द तो है, पर यह दण्ड-व्यवस्था है। अब यह सामान्य नियम नहीं है। सामान्य नियम यह है कि- पहली बार में आप ऐसा कठोर बोलते हैं, वो ठीक नहीं है। चार बार प्रेम से समझाने के बाद भी नहीं मानता, तो अब दण्ड दे सकते हैं। उससे कठोर बोल सकते हैं। और अगर दो बार कठोर भाषा बोली, तब भी नहीं सुधरा, तो दो थप्पड़ भी लगाओ, यह दण्ड हैं। दण्ड व्यवस्था अलग है, सामान्य व्यवहार अलग है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, उन्हें प्रेम की भाषा समझ में आती ही नहीं। जोर से बोल दो, तो तुरंत सुन लेते हैं। तो चाहे एक महीने तक प्रेमपूर्वक कहते रहो, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। हाँ, तो जो
सीधी-भाषा नहीं समझता। उसे कड़क भाषा बोलो, वो वही भाषा समझता है, इसलिए उससे वो ही भाषा बोलनी पड़ेगी।