क्या कुरान खुदा की बनाई हुयी है ?
जो परमेश्वर ही मनुष्यादि प्राणियों को खिलाता-पिलाता है तो किसी को रोग होना न चाहिये और सबको तुल्य भोजन देना चाहिये। पक्षपात से एक को उत्तम और दूसरे को निकृष्ट जैसा कि राजा और कंगले को श्रेष्ठ-निकृष्ट भोजन मिलता है,न होना चाहिये। जब परमेश्वर ही खिलाने-पिलाने और पथ्य कराने वाला है तो रोग ही न होना चाहिये। परन्तु मुसलमान आदि को भी रोग होते हैं। यदि खुदा ही रोग छुड़ाकर आराम करनेवाला है तो मुसलमानों के शरीरों में रोग न रहना चाहिये। यदि रहता है तो खुदा पूरा वैद्य नहीं है। यदि पूरा वैद्य है तो मुसलमानों के शरीर में रोग क्यों रहते हैं?यदि वही मारता और जिलाता है तो उसी खुदा को पाप-पुण्य लगता होगा। यदि जन्म-जमान्तर के कर्मानुसार व्यवस्था करता है तो उसको कुछ भी अपराध नहीं।यदि वह पाप क्षमा और न्याय क़यामत की रात में करता है तो खुदा पाप बढ़ानेवाला होकर पाप युक्त होगा। यदि क्षमा नहीं करता तो यह कुरान की बात झूठी होने से बच नहीं सकती है।
-नहीं तू परन्तु आदमी मानिन्द हमारी, बस ले आ कुछ निशानी जो हैतू सच्चों से।। कहा यह ऊंटनी है वास्ते उसके पानी पाना है एक बार।। मं0 5। सि019। सू0 26। आ0 154। 155
समी0 – यह खुदा को शंका और अभिमान क्यों हुआ कि तू हमारे तुल्य नहीं है और’व् भला इस बात को कोई मान सकता है कि पत्थर से ऊंटनी निकले! वे लोग जंगली थे कि जिन्होंने इस बात को मान लिया और ऊंटनी की निशानी देनी केवल जंगली व्यवहार है, ईश्वरकृत नहीं! यदि यह किताब ईश्वरकृत होती तो ऐसी व्यर्थ बातें इसमें न होतीं।
-ऐ मूसा बात यह है कि निश्चय मैं अल्लाह हूं ग़ालिब।। और डाल देअसा अपना, बस जब कि देखा उसको हिलता था मानो कि वह सांप है,…ऐ मूसा मत डर, निश्चय नहीं डरते समीप मेरे पैग़म्बर।। अल्लाह नहीं कोई माबूद परन्तु वह मालिक अर्श बड़े का।। यह कि मत सरकशी करो ऊपर मेरे और चले आओ मेरे पास मुसलमान होकर।। मं0 5। सि0 19। सू0 27। आ0 9। 10। 26।31
समी0 -और भी देखिये अपने मुख आप अल्लाह बड़ा ज़बरदस्त बनता है।अपने मुख से अपनी प्रशंसा करना श्रेष्ठ पुरुष का भी काम नहीं, खुदा का क्यों कर हो सकता है? तभी तो इन्द्रजाल का लटका दिखला जंगली मनुष्यों को वश करआप जंगलस्थ खुदा बन बैठा। ऐसी बात ईश्वर के पुस्तक में कभी नहीं हो सकती। यदि वह बड़े अर्श अर्थात् सातवें आसमान का मालिक है तो वह एकदेशी होने से ईश्वर नहीं हो सकता है। यदि सरकशी करना बुरा है तो खुदा और मुहम्मद साहेब ने अपनी स्तुति से पुस्तक क्यों भर दिये? मुहम्मद साहेब ने अनेकों को मारे इससे सरकशी हुई वा नहीं? यह कुरान पुनरुक्त और पूर्वापर विरुद्ध बातों से भराहुआ है।
-और देखेगा तू पहाड़ों को अनुमान करता है तू उनको जमे हुए औरवे चले जाते हैं मानिन्द चलने बादलों की, कारीगरी अल्लाह की जिसने दृढ़ किया हर वस्तु को, निश्चय वह खबरदार है उस वस्तु के कि करते हो।। मं05। सि0 20।मू0 27। आ0 881
समी0 –बद्दलोंके समान पहाड़ का चलना कुरान बनानेवालोंके देश में होताहोगा, अन्यत्र नहीं। और खुदा की खबरदारी, शैतान बागी को न पकड़ने और न दंड देने से ही विदित होती है कि जिसने एक बाग़ी को भी अब तक न पकड़ पाया, न दंड दिया। इससे अधिक असावधानी क्या होगी ?
-बस मुष्ट मारा उसको मूसा ने, बस पूरी की आयु उसकी।। कहा ऐ रब मेरे, निश्चय मैंने अन्याय किया जान अपनी को, बस क्षमा कर मुझको, बसक्षमा कर दिया उसको, निश्चय वह क्षमा करने वाला दयालु है।। और मालिक तेरा उत्पन्न करता है, जो कुछ चाहता है और पसन्द करता है।। मं0 5। सि0 20। सू0 28। आ0 15। 16। 682
समी0 -अब अन्य भी देखिये! मुसलमान और ईसाइयों के पैग़म्बर और खुदा कि मूसा पैग़म्बर मनुष्य की हत्या किया करे और खुदा क्षमा किया करे, ये दोनों अन्यायकारी हैं वा नहीं? क्या अपनी इच्छा ही से जैसा चाहता है वैसी उत्पत्तिकरता है ? क्या उसने अपनी इच्छा ही से एक को राजा दूसरे को कंगाल और एक को विद्वान् और दूसरे को मूर्खादि किया है ? यदि ऐसा है तो न कुरान सत्य और न अन्यायकारी होने से यह खुदा ही हो सकता है।।121।।
-और आज्ञा दी हमने मनुष्य को साथ मां-बाप के भलाई करना जो झगड़ा करें तुझसे दोनों यह कि शरीक लावे तू साथ मेरे उस वस्तु को, कि नहीं वास्ते तेरे साथ उसके ज्ञान, बस मत कहा मान उन दोनों का, तर्फ़ मेरी है।। औरअवश्य भेजा हमने नूह को तर्फ क़ौम उसके कि बस रहा बीच उनके हजार वर्ष परन्तु पचास वर्ष कम।। मं0 5। सि0 20-21। सू0 29। आ0 7। 13
समी0 -माता-पिता की सेवा करना तो अच्छा ही है जो खुदा के साथ शरीककरने के लिये कहे तो उनका कहा न मानना तो यह भी ठीक है।परन्तु,यदि मातापिता मिथ्याभाषणादि करने की आज्ञा देवें तो क्या मान लेना चाहिये ? इसलिये यह बात आधी अच्छी और आधी बुरी है। क्या नूह आदि पैग़म्बरों ही को खुदा संसार में भेजता है तो अन्य जीवों को कौन भेजता है ? यदि सब को वही भेजताहै तो सभी पैग़म्बर क्यों नहीं ? और प्रथम मनुष्यों की हजार वर्ष की आयु होती थी तो अब क्यों नहीं होती ? इसलिये यह बात ठीक नहीं |
-अल्लाह पहिली बार करता है उत्पत्ति फिर दूसरी बार करेगा उसको,फिर उसी की ओर फेरे जाओगे।। और जिस दिन बर्पा अर्थात् खड़ी होगी क़यामत निराश होंगे पापी।। बस जो लोग कि ईमान लाये और काम किये अच्छे बस वे बीच बाग़ के सिंगार किये जावेंगे।। और जो भेज दें हम एबाब बस देखें उस खेती को पीली हुई। इसी प्रकार मोहर रखता है अल्लाह पिंर दिलों उन लोगों के कि नहीं जानते।। मं0 5। सि0 21। सू0 30। आ0 11। 12।15।51।591
समी0 -यदि अल्लाह दो बार उत्पत्ति करता है,तीसरी बार नहीं,तो उत्पत्ति की आदि और दूसरी बार के अन्त में निकम्मा बैठा रहता होगा ? और एक तथा दो बार उत्पत्ति के पश्चात् उसका सामर्थ्य निकम्मा और व्यर्थ हो जायगा। यदि न्याय करने के दिन पापी लोग निराश हों तो अच्छी बात है,परन्तु इसका प्रयोजन यह तो कहीं नहीं है कि मुसलमानों के सिवाय सब पापी समझ कर निराश किये जायें क्योंकि कुरान में कई स्थानों में पापियों से औरों का ही प्रयोजन है। यदि बगीचे में रखना और “श्रृंगारपहिराना ही मुसलमानों का स्वर्ग है तो इस संसार के तुल्य हुआ और वहाँ माली और सुनार भी होंगे अथवा खुदा ही माली और सुनार आदि का काम करता होगा। यदि किसी को कम गहना मिलता होगा तो चोरी भी होती होगी और बहिश्त से चोरी करने वालों को देाज़ख में भी डालता होगा। यदि ऐसा होता होगा तो सदा बहिश्त में रहेंगे यह बात झूठ हो जायगी। जो किसानों की खेती पर भी खुदा की दृष्टि है सो यह विद्या खेती करने के अनुभव ही से होती है और यदि माना जाय कि खुदा ने अपनी विद्या से सब बात जान ली है तो ऐसा भय देनाअपना घमण्ड प्रसिद्ध करना है। यदि अल्लाह ने जीवों के दिलों पर मोहर लगा पाप कराया तो उस पाप का भागी वही होवे, जीव नहीं हो सकते। जैसे जय पराजय सेनाधीश का होता है वैसे यह सब पाप खुदा ही को प्राप्त होवें |
-ये आयतें हैं किताब हिक्मत वाले की। उत्पन्न किया आसमानों को विना सुतून अर्थात् खम्भे के देखते हो तुम उसको और डाले बीच पृथिवी के पहाड़ ऐसा न हो कि हिल जावे।। क्या नहीं देखा तूने यह कि अल्लाह प्रवेश कराता है रात को बीच दिन के और प्रवेश कराता है दिन को बीच रात के।। क्या नहीं देखाकि किश्तियां चलती हैं बीच दर्या के साथ निआमतों अल्लाह के, तो किदिखलावे तुमको निशानियां अपनी।। मं0 5। सि0 21। सू0 31। आ0 2। 10। 29।311
समी0 -वाह जी वाह! हिक्मतवाली किताब! कि जिसमें सर्वथा विद्या से विरुद्ध आकाश की उत्पत्ति और उसमें खम्भे लगाने की शंका और पृथिवी को स्थिररखने के लिये पहाड़ रखना ! थोड़ी सी विद्या वाला भी ऐसा लेख कभी नहीं करता और न मानता और हिक्मत देखो कि जहाँ दिन है वहाँ रात नहीं और जहाँ रात हैवहाँ दिन नहीं, उसको एक दूसरे में प्रवेश कराना लिखता है। यह बड़े अविद्वानोंकी बात है, इसलिये यह कुरान विद्या की पुस्तक नहीं हो सकती। क्या यह विद्या विरुद्ध बात नहीं है कि नौका, मनुष्य और क्रिया कौशलादि से चलती हैं वा खुदा की कृपा से ? यदि लोहे वा पत्थरों की नौका बनाकर समुद्र में चलावें तो खुदा की निशानी डूब जायवा नहीं? इसलिये यह पुस्तक न विद्वान् और न ईश्वरका बनाया हुआ हो सकता है |
हिन्दु गर्व के साथ कहते है कि हमारी गीता मे लिखा है कि ईश्वर कण कण मे विध्मान है ।सब चीजे मे है इसलिए हम पत्थरो को पूजते है और भी बहुत सारी चीजो को पूजते है etc. लेकिन मै कहूगा इनकी ये सोच बिल्कुल गलत है क्योकि अगर कण कण मे भगवान है तो क्या गू गोबर मे भी है आपका भगवान। जबकि भगवान या खुदा तो पाक साफ है तो कण कण मे कहा से विध्मान हुआ भगवान। इसलिए मै आपसे कहना चाहता हू भगवान हर चीज मै नही है बल्कि हर चीज उसकी है और वो एक है इसलिए पूजा पाठ मूर्ति चित्र सब गलत है कुरान अल्लाह की किताब है इसके बताये गये रास्ते पर चलो। सबूत भी है क्योकि कुरान की आयते पढकर हम भूत प्रेत बुरी आत्माओ राक्षसो से छुटकारा पाते है।हमारी मस्जिद मे बहुत हिन्दु आते है ईलाज करवाने के लिए । और मौलवी कुरान की आयते पढकर ही सभी को ठीक करते है । इसलिए कुरान अल्लाह की किताब है । जबकि आप वेदो मंत्रो से दसरो को नुकसान पहुचा सकते है अच्छाई नही कर सकते किसी की और सभी भगत पंडित जादू टोना टोटके के अलावा करते ही क्या है। जबकि कुरान से अच्छाई के अलावा आप किसी के साथ बुरा कर ही नही सकते। इसलिए गैर मुस्लिमो कुरान पर ईमान लाओ।
वेद तो कहता है ” न तस्य प्रतिमा अस्ति ” इसलिए मूर्ति पूज्य गलत है
जो करते हैं तो सही रस्ते पर नहीं हैं
लेकिन मुसलमान तो मूर्ति पूजा करते हैं
काबा को चूमना और क्या है मूर्ति पूजा ही तो है
अल्लाह के साथ साथ कलमा में मुहम्मद साहब को भी शरीक करते हैं
इसलाम दुनिया का सबसे मूर्ख पन्थ में से एक है।