यदि दयानन्द जी की अविद्या रूपी गांठ ही नहीं कट पायी थी और वह परमेश्वर के सामीप्य से वंचित ही रहकर चल बसे थे तो वह परमेश्वर की वाणी `वेद´ को भी सही ढंग से न समझ पाये होंगे? उदाहरणार्थ, दयानन्दजी एक वेदमन्त्र का अर्थ समझाते हुए कहते हैं-
`इसीलिए ईश्वर ने नक्षत्रलोकों के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया।´ (ऋग्वेदादि0, पृष्ठ 107)
(17) परमेश्वर ने चन्द्रमा को पृथ्वी के पास और नक्षत्रलोकों से बहुत दूर स्थापित किया है, यह बात परमेश्वर भी जानता है और आधुनिक मनुष्य भी। फिर परमेश्वर वेद में ऐसी सत्यविरूद्ध बात क्यों कहेगा?
इससे यह सिद्ध होता है कि या तो वेद ईश्वरीय वचन नहीं है या फिर इस वेदमन्त्र का अर्थ कुछ और रहा होगा और स्वामीजी ने अपनी कल्पना के अनुसार इसका यह अर्थ निकाल लिया । इसकी पुष्टि एक दूसरे प्रमाण से भी होती है, जहाँ दयानन्दजी ने यह तक कल्पना कर डाली कि सूर्य, चन्द्र और नक्षत्रादि सब पर मनुष्यदि गुज़र बसर कर रहे हैं और वहाँ भी वेदों का पठन-पाठन और यज्ञ हवन, सब कुछ किया जा रहा है और अपनी कल्पना की पुष्टि में ऋग्वेद (मं0 10, सू0 190) का प्रमाण भी दिया है-
`जब पृथिवी के समान सूर्य, चन्द्र और नक्षत्र वसु हैं पश्चात उनमें इसी प्रकार प्रजा के होने में क्या सन्देह? और जैसे परमेश्वर का यह छोटा सा लोक मनुश्यादि सृष्टि से भरा हुआ है तो क्या ये सब लोक शून्य होंगे? (सत्यार्थ., अश्टम. पृ. 156)
(18) क्या यह मानना सही है कि ईश्वरोक्त वेद व सब विद्याओं को यथावत जानने वाले ऋषि द्वारा रचित साहित्य के अनुसार सूर्य व चन्द्रमा आदि पर मनुष्य आबाद हैं और वो घर-दुकान और खेत खलिहान में अपने-अपने काम धंधे अंजाम दे रहे हैं?
समीक्षा : अब हमारे जनाब अनवर जमाल साहब कुरान के इल्म से बाहर निकले तो कुछ ज्ञान विज्ञानं को समझे पर क्या करे अल्लाह मिया ने क़ुरान में ऐसा ज्ञान नाज़िल किया की जमाल साहब उसे पढ़कर ही खुद आलिम हो गए। देखिये जमाल साहब ऋषि ने क्या कहा और उसका अर्थ क्या निकलता है :
ऋषि ने लिखा :
`इसीलिए ईश्वर ने नक्षत्रलोकों के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया।´ (ऋग्वेदादि0, पृष्ठ 107)
अब इसका फलसफा और विज्ञानं देखो – ऋषि को वेदो से जो ज्ञान और विज्ञानं मिला वो इन जमाल साहब को नजर नहीं आएगा –
आकाश में तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणतः यह चन्द्रमा के पथ से जुडे हैं, पर वास्तव में किसी भी तारा-समूह को नक्षत्र कहना उचित है।
ऋषि का अर्थ है क्योंकि चन्द्रमा नक्षत्रो के पथ से जुड़ा है इसलिए अलंकार रूप में वहां लिखा है की नक्षत्रलोको के समीप चन्द्रमा को स्थापित किया –
अब इसका वैज्ञानिक प्रभाव देखो :
तारे हमारे सौर जगत् के भीतर नहीं है। ये सूर्य से बहुत दूर हैं और सूर्य की परिक्रमा न करने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं—अर्थात् एक तारा दूसरे तारे से जिस ओर और जितनी दूर आज देखा जायगा उसी ओर और उतनी ही दूर पर सदा देखा जायगा। इस प्रकार ऐसे दो चार पास-पास रहनेवाले तारों की परस्पर स्थिति का ध्यान एक बार कर लेने से हम उन सबको दूसरी बार देखने से पहचान सकते हैं। पहचान के लिये यदि हम उन सब तारों के मिलने से जो आकार बने उसे निर्दिष्ट करके समूचे तारकपुंज का कोई नाम रख लें तो और भी सुभीता होगा। नक्षत्रों का विभाग इसीलिये और इसी प्रकार किया गया है।
चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूम आता है। खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गया हुआ जान पड़ता है। इसी पथ में पड़नेवाले तारों के अलग अलग दल बाँधकर एक एक तारकपुंज का नाम नक्षत्र रखा गया है। इस रीति से सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर ‘नक्षत्र चक्र’ कहलाता है। नीचे तारों की संख्या और आकृति सहित २७ नक्षत्रों के नाम दिए जाते हैं।
इन्हीं नक्षत्रों के नाम पर महीनों के नाम रखे गए हैं। महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र पर रहेगा उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के अनुसार होगा, जैसे कार्तिक की पूर्णिमा को चंद्रमा कृत्तिका वा रोहिणी नक्षत्र पर रहेगा, अग्रहायण की पूर्णिमा को मृगशिरा वा आर्दा पर; इसी प्रकार और समझिए।
ये ज्ञान और विज्ञानं वेदो में ही दिखता है क़ुरान में नहीं जमाल साहब।
क़ुरान का विज्ञानं हम दिखाते हैं जरा गौर से देखिये :
1. अल्लाह मियां तो क़ुरान में चाँद को टेढ़ी टहनी ही बनाना जानता है :
और रहा चन्द्रमा, तो उसकी नियति हमने मंज़िलों के क्रम में रखी, यहाँ तक कि वह फिर खजूर की पूरानी टेढ़ी टहनी के सदृश हो जाता है
(क़ुरआन सूरह या-सीन ३६ आयत ३९)
क्या चाँद कभी अपने गोलाकार स्वरुप को छोड़ता है ? क्या अल्लाह मियां नहीं जानते की ये केवल परिक्रमा के कारण होता है ?
2. सूरज चाँद के मुकाबले तारे अधिक नजदीक हैं :
और (चाँद सूरज तारे के) तुलूउ व (गुरूब) के मक़ामात का भी मालिक है हम ही ने नीचे वाले आसमान को तारों की आरइश (जगमगाहट) से आरास्ता किया।
(सूरह अस्साफ़्फ़ात ३७ आयत ६)
क्या अल्लाह मिया भूल गए की सूरज से लाखो करोडो प्रकाश वर्ष की दूरी पर तारे स्थित हैं ?
3. क़ुरान के मुताबिक सात ग्रह :
ख़ुदा ही तो है जिसने सात आसमान पैदा किए और उन्हीं के बराबर ज़मीन को भी उनमें ख़ुदा का हुक्म नाज़िल होता रहता है – ताकि तुम लोग जान लो कि ख़ुदा हर चीज़ पर कादिर है और बेशक ख़ुदा अपने इल्म से हर चीज़ पर हावी है।
(सूरह अत तलाक़ ६५ आयत १२)
क्या सात आसमान और उन्ही के बराबर सात ही ग्रह हैं ? क्या खुदा को अस्ट्रोनॉमर जितना ज्ञान भी नहीं की आठ ग्रह और पांच ड्वार्फ प्लेनेट होते हैं।
4. शैतान को मारने के लिए तारो को शूटिंग मिसाइल बनाना भी अल्लाह मिया की ही करामात है।
और हमने नीचे वाले (पहले) आसमान को (तारों के) चिराग़ों से ज़ीनत दी है और हमने उनको शैतानों के मारने का आला बनाया और हमने उनके लिए दहकती हुई आग का अज़ाब तैयार कर रखा है।
(सूरह अल-मुल्क ६७ आयत ५)
मगर जो (शैतान शाज़ व नादिर फरिश्तों की) कोई बात उचक ले भागता है तो आग का दहकता हुआ तीर उसका पीछा करता है
(सूरह सूरह अस्साफ़्फ़ात ३७ आयत १०)
क्या अल्लाह को तारो और उल्का पिंडो में अंतर नहीं पता जो तारो को शूटिंग मिसाइल बना दिया ताकि शैतान मारे जावे ? और उल्का पिंड जो है वो धरती के वायुमंडल में घुसने वाली कोई भी वस्तु को घर्षण से ध्वस्त कर देती है जो जल्दी हुई गिरती है ये सामान्य व्यक्ति भी जानते हैं इसको शैतान को मारने वाले मिसाइल बनाने का विज्ञानं खुद अल्लाह मियां तक ही सीमित रहा गया।
रही बात सूर्यादि ग्रह पर प्रजा की बात तो आज विज्ञानं स्वयं सिद्ध करता है की सूर्य पर भी फायर बेस्ड लाइफ मौजूद है। ज्यादा जानकारी के लिए लिंक देखिये :
http://www.theonion.com/article/scientists-theorize-sun-could-support-fire-based-l-34559
अब किसको ज्ञान ज्यादा रहा जमाल साहब ?
आपके क़ुरान नाज़िल करने वाले अल्लाह मिया को ?
या वेद को पढ़कर पूर्ण ज्ञानी ऋषि की उपाधि प्राप्त करने वाले महर्षि दयानंद को।
लिखने को तो और भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है मगर आपकी इस शंका पर इतने से ही पाठकगण समझ जाएंगे इसलिए अपनी लेखनी को विराम देता हु – बाकी और भी जो आक्षेप आपकी पुस्तक में ऋषि और सत्यार्थ प्रकाश पर उठाये हैं यथासंभव जवाब देने की कोशिश रहेगी
खुद पढ़े आगे बढे
लौटो वेदो की और
नमस्ते
Wah wah kya gyan hai. Are mahoday anwar sahab ka uttar derahe ho ya mazak kar rahe ho?
Ji sahi kah rahe hain aap miya akil ansari sahab.
gyan vigyan aur rishiyo ki baate to quran ke ilm ke aage majak hi lagengi aapko, dekhiye kitna qurani ilm is post me darshaya gaya hai hamne to apni buddhi ke hisab se jawab de diya, ab aap thodi koshish kare quran ki in aayto ka khulasa karne ki.
aap jamal sahab ko kahe ek “qurani ilham” wali pustak likh kar bataye ki in quranic aayto ka vigyan aakhir kahan tak aur kis had tak vegyanik drishtikon se siddh hota hai.
tab tak ke liye namaste
jamal anwar ki book per maine itne sawal puche sab mullo me delete kar diye ….akil miya bata kya is duniya me sirf ek jins se paida hua hain sab kuch hote tum mante nahi …..aaj k time me science bhi shidh kar chuka hain sab manusay samuday kam se kam 6 ya 7 jins se paida hua hain ..to aadam hawuwa ki story jhuthi h na …..injil k anusar manusay bus dharti per 10000 hazar varsh se hain jab ki science bhi lakho varsh se manta hain …. bedhangi kitabe le kar behas karte ho yaar saram kiya
Namaste G
surya par pirja ke bare m khul ke batane ka kast kare
अनवर जमाल के चीथड़े उड़ा दिये बंसल जी वाह वाह!और कुरान का विज्ञान दिखा सकता हूं झूठ पर ईमान लाने वालों.दिखाऊं क्या?
आपने कहा चंद्रमा नक्षतेरों के याने तारा मंडलो के पथ पर है यह भी कल्पना वास्तविकता यही की कोई भी तारा अगर हमारे सोर मंडल मे या इसके ग्रुत्विय पथ पर होता तो हमारे चंद्रमा का हाल शनि के चांदो के समान होता..विज्ञान शायद आपको पढने की जरुरत अटकले लगाना आर्यो की फितरत मगर हम वैज्ञानिको के लीए आर्यो की ये थ्योरियां महज मुर्खता है..
जनाब अभी तो अनवर जमाल ने ही आपके पनीसे छुडवा दिए कतार मे अभी विज्ञान के दीवाने और भी है! मै तो आर्यो के सभी सवालों पर विज्ञान से किताबे लिख डालता मगर रोजाना ३ घंटे ही फ्री वक्त मिलने के कारण रफ्तार धीमी है..सात आसमान अंग जुडने से लेकर हर एक का जवाब मै भी भीजवाऊँगा उसका भी जवाब देना अपनी मुर्ख थ्योरीयों से ..मै नास्तिक से आस्थिक आर्यों के वेद भाष्यों को पडकर तो नही हुआ मगर भला हो अहमद दीदात का जिनसे मुझे कुरान के बारे मे जानकारी मीली और अकसर जो तरजुमे आयतों के आर्य करते है वे फसीह अरेबी के खिलाफ और गलत होते है..सेकडो सवालो लेखराम चमुपति सहीत मुताले के बाद यह मेरा अनुभव है..बजाय धोका देमे के सही तरीके से मैदान मे उतरो कुछ भी उल झलुल बकने को जवाब नही कहते..
आपने कहा चंद्रमा नक्षतेरों के याने तारा मंडलो के पथ पर है यह भी कल्पना वास्तविकता यही की कोई भी तारा अगर हमारे सोर मंडल मे या इसके ग्रुत्विय पथ पर होता तो हमारे चंद्रमा का हाल शनि के चांदो के समान होता..विज्ञान शायद आपको पढने की जरुरत अटकले लगाना आर्यो की फितरत मगर हम वैज्ञानिको के लीए आर्यो की ये थ्योरियां महज मुर्खता है..
समीक्षा : मेरे प्रिय दोस्त नासिर मियां, यदि पोस्ट को ध्यानपूर्वक पढ़ा होता तो आपको अच्छे से समझ आ सकता था, इस पोस्ट में कहीं भी ये नहीं लिखा की तारा या नक्षत्र हमारे सौरमंडल में है, न ही गुरुत्वीय पथ या आकर्षण की बात ही की, असल बात ये है, की इस पोस्ट को आपने पूर्वाग्रही मानसिकता से पढ़ा, क्योंकि पोस्ट में ऊपर लिखा है :
“तारे हमारे सौर जगत् के भीतर नहीं है। ये सूर्य से बहुत दूर हैं और सूर्य की परिक्रमा न करने के कारण स्थिर जान पड़ते हैं—अर्थात् एक तारा दूसरे तारे से जिस ओर और जितनी दूर आज देखा जायगा उसी ओर और उतनी ही दूर पर सदा देखा जायगा। इस प्रकार ऐसे दो चार पास-पास रहनेवाले तारों की परस्पर स्थिति का ध्यान एक बार कर लेने से हम उन सबको दूसरी बार देखने से पहचान सकते हैं। पहचान के लिये यदि हम उन सब तारों के मिलने से जो आकार बने उसे निर्दिष्ट करके समूचे तारकपुंज का कोई नाम रख लें तो और भी सुभीता होगा। नक्षत्रों का विभाग इसीलिये और इसी प्रकार किया गया है।
चंद्रमा २७-२८ दिनों में पृथ्वी के चारों ओर घूम आता है। खगोल में यह भ्रमणपथ इन्हीं तारों के बीच से होकर गया हुआ जान पड़ता है। इसी पथ में पड़नेवाले तारों के अलग अलग दल बाँधकर एक एक तारकपुंज का नाम नक्षत्र रखा गया है। इस रीति से सारा पथ इन २७ नक्षत्रों में विभक्त होकर ‘नक्षत्र चक्र’ कहलाता है। नीचे तारों की संख्या और आकृति सहित २७ नक्षत्रों के नाम दिए जाते हैं।”
यदि आपने नहीं पढ़ा तो दुबारा पढ़िए, सुगम है, आर्य भाषा (हिंदी) भी सामान्य स्तर की ही है ताकि पाठकगण सुगमता से समझ सके।
कृपया पूर्वाग्रह त्याग कर, सत्यान्वेषी बनकर पढ़े,
धन्यवाद
हाँ पसीने तो बहुत छुड़ाए, ये बात तो आपकी सही है, क्योंकि ऐसी कुतर्की समीक्षाएं पढ़कर किसी के भी पसीने छूट जायेंगे, और जो क़ुरान में मौजूद अवैज्ञानिकता की बाते भरी हैं, जिनका इस पोस्ट में संक्षिप्त वर्णन भी दिया है, उसपर तो सभी मुस्लिम विद्वान मौन ही हैं, असल में सच्चाई ये है की क़ुरान की अवैज्ञानिकता का पारावार ही नहीं है, इसलिए इस पर जवाब भी नहीं बन पाएंगे, तो जवाब देने से बचने का आसान और सरल तरीका है, ऋषि दयानंद पर ही आक्षेप किये जाए, मगर ये काम भी व्यर्थ जाता रहा, क्योंकि ऋषि दयानंद पर जितने आक्षेप किये जायेंगे उतना ही वेद विज्ञान सामने आएगा, और जितना वेद विज्ञानं सामने आएगा, क़ुरान की अवैज्ञानिकता का उतना ही सच भी सामने आता रहेगा, हम तो चाहेंगे इस पुस्तक के और भी आक्षेपों का जवाब जल्द से जल्द दिया जाए, इस और कार्य हो रहा है, जल्दी ही और भी पोस्ट पढ़ने को मिलेंगी, तब तक आप क़ुरान पर उठाई अवैज्ञानिक तथ्यों का जवाब दे सकते हैं।
धन्यवाद
You are right, Bansal ji…
Nasirahmad साहब भी क्या करें!जैसे अल्लाह मियाँ भुलक्कड़ वैसे ही उसके बन्देपूरी पोस्ट ध्यान से पढ़ते नहीँ और कॉमेंट्स कर बैठते हैं!
मैं कुछ आयत दें रहा हूँ कुरान से,अहमद साहब इससे आपको ये समझने में आसानी होगी की,अल्लाह कितना बड़ा भुलक्कड़ है!मै थोड़ा सँछेप में लिख रहा हूँ,आप कुरान खोल कर देख लीजियेगा!कि अल्लाह ने इंसान को कैसे कैसे बनाया!
(1)4/1:-इंसान को अल्लाह जीव से पैदा किया!
(2)6/2:-यहाँ मिट्टी से पैदा किया!
(3)7/12:-यहाँ भी मिट्टी से पैदा किया!
(4)11/61::-इंसान को अल्लाह धरती से पैदा किया!
(5)19/20:-कुंवारी लड़की से बच्चा पैदा कर दिया!
(6)23/12,13:-गील्ली मिट्टी से,एवं मिट्टी के सत पैदा किय!
(7)25/54:-पानी से पैदा किया!
(8)55/14:-ठिकरी जैसी खंखनाति हुयी मिट्टी से पैदा किया!
(9)76/2:-मिश्रित वीर्य से पैदा किया!
(10)86/5,6,7:-उछलते पानी से पैदा किया!
(11)96/2:-जमे हुये खून से पैदा किया!
कुरान को ठीक ढंग से पढ़ कर समझ लीजियेगा,और हमें ज़रूर बताइयेगा की असल में अल्लाह ने इंसान को बनाया कैसे,और वो कितना विज्ञान संगत है!