ईसाई भाई बाइबिल को ईश्वर का पवित्र ग्रन्थ मानते हैं और हिन्दू भाइयो का धर्मांतरण इस बाइबिल के आधार पर करवाते हैं यह कहकर कि बाइबिल ईश्वर की वाणी है – और जो ईसा पर विश्वास ले आवे वो ही मुक्ति पायेगा क्योंकि ईश्वर की “पवित्र पुस्तक” बाइबिल ऐसा निर्देश करती है –
यदि ये बात सही है – तो बाइबिल जैसी पवित्र पुस्तक में कोई भी दोष न होना चाहिए और यदि दोष नहीं होगा तो परस्पर विरुद्ध बाते भी न होनी चाहिए क्योंकि ईश्वर सर्वज्ञ है – और ईश्वर अपनी एक बात से विपरीत बात कभी भी किसी पुस्तक में नहीं देता –
क्योंकि अपनी बात जो पहले बताई उससे विपरीत बात बोलना एक सामान्य मनुष्य का कार्य तो हो सकता है क्योंकि मनुष्य स्वार्थी है – कोई एक बात बोलकर बाद में विपरीत बात बोल सकता है – यदि ईश्वर भी ऐसा विपरीत बर्ताव करने लगे तो उसे ईश्वर नहीं एक सामान्य मनुष्य ही जानना चाहिए।
आइये एक नजर बाइबिल की विपरीत शिक्षाओ पर डालते हैं जिससे सिद्ध होगा की बाइबिल ईश्वर की पुस्तक नहीं महज एक मनुष्य की बनाई है जिसमे इतना विरोधाभास है की आप गिन नहीं सकते –
देखिये –
1. ईश्वर अपने कार्य से संतुष्ट हुआ (उत्पत्ति 1.31)
ईश्वर अपने कार्य से बहुत असंतुष्ट हुआ (उत्पत्ति 6.6)
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2. ईश्वर अपने द्वारा चुने मंदिर में बसता (रहता) है। (2 इतिहास 7.12, 16)
ईश्वर किसी मंदिर में नहीं बसता (रहता) है। (प्रेरितों के काम – 7.48)
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3. ईश्वर प्रकाश में बसता है। (1 तीमुथियुस 6.16)
ईश्वर अन्धकार में बसता है। (1 राजा 8.12) (भजन संहिता 18.11) (भजन संहिता 97.2)
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4. ईश्वर को देखा और आवाज़ सुनी।
(निर्गमन 33.11, 33.23) (निर्गमन 24.9,10, 11) (उत्पत्ति 3.9-10) (उत्पत्ति 32.30) (यशायाह 6.1)
ईश्वर को देखना और ईश्वर की आवाज़ सुनना असम्भव है
(यूहन्ना 1.18) (यूहन्ना 5.37) (निर्गमन 33.20) (1 तीमुथियुस 6.16)
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5. ईश्वर थक जाता है और विश्राम करता है।
(निर्गमन 31.17) (यिर्मयाह 15.6)
ईश्वर कभी नहीं थकता और न ही कभी विश्राम करता है।
(यशायाह 40.28)
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6. ईश्वर सर्वत्र उपस्थित है – सब कुछ सुनता और जानता है
(नीतिवचन 15.3) (भजन संहिता 139.7-10) (अय्यूब 34.21-22)
ईश्वर सर्वत्र उपस्थित नहीं है – न ही सब कुछ सुनता और न ही सब कुछ जानता है –
(उत्पत्ति 11.5) (उत्पत्ति 18.20-21) (उत्पत्ति 3.8) (प्रेरितों के काम – 1.24) (भजन संहिता 139.2-3)
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7. ईश्वर सब मनुष्यो के दिलो की बात और राज़ जानता है –
(प्रेरितों के काम – 1.24) (भजन संहिता 139.2-3)
ईश्वर मनुष्यो के दिलो की बात और राज़ जानने का प्रयास करता है –
(व्यवस्थाविवरण 13.3) (व्यवस्थाविवरण 8.2) (उत्पत्ति 22.12)
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8. ईश्वर सर्वशक्तिमान है –
(यिर्मयाह 32.27) (मत्ती 19.26)
ईश्वर सर्वशक्तिमान नहीं है –
(न्यायियों 1.19)
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9. ईश्वर और उसके वचन कभी नहीं पलटते (अपरिवर्तनीय) हैं –
(यहोशू 1.17) (मलाकी 3.6) (यहेजकेल 24-14) (गिनती 23.19)
ईश्वर और उसके वचन पलटते (परिवर्तनीय) हैं –
(उत्पत्ति 6.6) (योना 3.10) (1 शमूएल 2.30-31) (2 राजा 20.1,4,5,6) (निर्गमन 33.1,3,17,14)
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10. ईश्वर निष्पक्ष और न्यायकारी है
(भजन संहिता 92.15) (उत्पत्ति 18.25) (व्यवस्थाविवरण 32.4) (रोमियो 2.11) (यहेजकेल 18.25)
ईश्वर पक्षपाती और अन्यायकारी है –
(उत्पत्ति 9.25) (निर्गमन 20.5) (रोमियो 9.11,12,13) (मत्ती 13.12)
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ये तो मात्र कुछ झलकियाँ हैं – पूरी बाइबिल एक कथन से सर्वथा विपरीत कथनो एवं शिक्षाओ से परिपूर्ण है – यदि ये ईश्वर की पुस्तक होती तो इसमें विरोधाभासी बाते लेशमात्र भी न होती –
इससे सिद्ध है बाइबिल ईश्वरीय ज्ञान नहीं –
कृपया सत्य को जानिए – वेद की और लौटिए – क्योंकि एकमात्र वेद ही – पक्षपात, वैरभाव, विरोधाभासी शिक्षाओ से रहित ईश्वरीय ज्ञान है –
नमस्ते
Plz.aap Quran ke bare me bhi jankari de,bible me to sirf aur sirf ek khandan ki charcha hai,aur kuchh nahi.
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acha ye batao kya aapke hindu jhuthe bhagwaan raam ,shiv ye sb galti nahi karte the???? ham kare to bhul or kare to galti wahi haal he apka,
Vibhasnshu JI,
Pratham to aapki shanka ka samadhan kar dun ki SHri Ram aur Shri Krishan Bhagwaan naheen the wo Mahapurush the
Dwiteey kaheen unhone aisa aacharan kiya jaisa aap kah rahe hein kiya hee naheen
pls revert back on this
viprit kuch nahi bas ye sb uski marji se hua jo chahta wo hota he uski marji har kaam me chalti he yahi wajah he ki bible me bohat jagah viprit baate he esa sirf paristhiti ki wajah se he jay masiha ki