डा . शिवपूजन सिंह जी आर्य समाज के एक उत्क्रष्ट विद्वान् थे तथा अच्छे वैदिक सिद्धांत मंडन कर्ता थे | उन्होंने अम्बेडकर जी की दो किताब शुद्रो की खोज ओर अच्छुत कौन ओर केसे की कुछ वेद विरुद्ध विचारधारा का उन्होंने खंडन किया था | ये उन्होंने अम्बेडकर जी के देह्वास के ५ साल पूर्व भ्रान्ति निवारण एक १६ पृष्ठीय आलेख के रूप में प्रकाशित किया ओर अम्बेडकर साहब को भी इसकी एक प्रति भेजी थी | हम यहा उसके कुछ अंश प्रस्तुत करते है –
डा. अम्बेडकर – आर्य लोग निर्विवाद से दो संस्कृति ओर दो हिस्सों में बटे थे जिनमे एक ऋग्वेद आर्य ओर दुसरे यजुर्वेद आर्य थे ,जिनके बीच बहुत बड़ी सांस्कृतिक खाई थी | ऋग्वेदीय आर्य यज्ञो में विश्वास करते थे ओर अर्थ्व्वेदीय जादू टोनो में |
प. शिव पूजन सिंह जी – दो आर्यों की कल्पना आपके ओर आप जेसे कुछ मष्तिस्क की उपज है ,ये केवल कपोल कल्पना ओर कल्पना विलास है केवल | इसके पीछे कोई एतिहासिक प्रमाण नही है | कोई एतिहासिक विद्वान् भी इसका समर्थन नही करता है | अर्थववेद में किसी प्रकार का जादू टोना नही है |
डा. अम्बेडकर – ऋग्वेद में आर्य देवता इंद्र का सामना उसके शत्रु अहि वृत्र (सर्प देवता ) से होता है ,जो कालान्तर में नाग देवता के नाम से प्रसिद्ध हुआ |
प.शिव पूजन सिंह जी – वैदिक संस्कृत ओर लौकिक संस्कृत में रात दिन का अंतर है | यहा इंद्र का अर्थ सूर्य ओर वृत्र का अर्थ मेघ है यह संघर्स आर्य देवता ओर नाग देवता का न हो कर सूर्य ओर मेघ का है | वैदिक शब्दों के पीछे नेरुक्तिको का ही मत मान्य होता है नेरुक्तिक प्रक्रिया से अनभिज्ञ होने के कारण आपको यह भ्रम हुआ |
डा. अम्बेडकर – महोपाध्याय डा. काणे का यह मत है कि – ” गाय की पवित्रता के कारण ही वाजसेनी संहिता में गौ मॉस भक्षण की प्रथा थी |
प.शिवपूजन सिंह जी – काणे जी ने कोई प्रमाण नही दिया है ओर न ही आपने यजुर्वेद पढने का कष्ट उठाया | जब आप यजुर्वेद का स्वाध्याय करेंगे तो स्पष्ट आपको गौ वध निषेध के प्रमाण मिलेंगे |
डा. अम्बेडकर – ऋग्वेद से ही स्पष्ट है कि तत्कालीन आर्य गौ वध करते थे ओर गौ मॉस भक्षण करते थे |
प. शिवपूजन सिंह जी – कुछ प्राच्य एवम पश्चमी विद्वान् आर्यों पर गौ मॉस भक्षण का दोषारोपण करते है किन्तु कुछ विद्वान् इस मत का खंडन भी करते है | वेद में गौ मॉस भक्षण का विरोध करने वाले २२ विद्वानों का मेरे पास स सन्धर्भ प्रमाण है | ऋग्वेद में आप जो गौ मॉस भक्षण का विधान आप कह रहे है वो लौकिक संस्कृत ओर वैदिक संस्कृत से अनभिज्ञ होने के कारण कह रहे है | जेसे वेद में उक्ष बल वर्धक औषधि का नाम है भले ही लौकिक अर्थ उसका बैल ही क्यूँ न हो |
डा. अम्बेडकर – बिना मॉस के मधु पर्क नही हो सकता है | मधुपर्क में मॉस और विशेष रूप से गौ मॉस एक आवश्यक अंश होता है |
प.शिवपूजन सिंह जी – आपका यह विधान वेद पर नही अपितु गृहसूत्रों पर आधारित है | गृहसूत्रों के वचन वेद विरोध होने से मान्य नही है | वेद को स्वत: प्रमाण मानने वाले मह्रिषी दयानद के अनुसार – दही में घी या शहद मिलाना मधुपर्क कहलाता है | उसका परिमाण १२ तौले दही में ४ तौले शहद या घी मिलाना है |
डा. अम्बेडकर – अतिथि के लिए गौ हत्या की बात इतनी समान्य हो गयी थी कि अतिथि का नाम ही गौघन पड़ गया था अर्थात गौ की हत्या करने वाला |
प. शिवपूजन सिंह जी – ” गौघ्न”का अर्थ गौ की हत्या करने वाले नही है | यह शब्द गौ और हन दो के योग से बना है | गौ के अनेक अर्थ है – वाणी,जल ,सुखविशेष ,नेत्र आदि | धातुपाठ में मह्रिषी पाणिनि हन का अर्थ गति ओर हिंसा बतलाते है | गति के अर्थ है – ज्ञान ,गमन ,प्राप्ति | प्राय सभी सभ्य देशो में जब कभी किसी के घर अतिथि आता है तो उसके स्वागत करने के लिए ग्रह पति घर से बहार आते हुए कुछ गति करता है ,उससे मधुर वाणी में बोलता है | फिर उसका जल से स्वागत करता है , फिर उसके लिए कुछ अन्य सामग्री प्रस्तुत करता है ,यह जानने के लिए की प्रिय अतिथि इन सत्कारो से प्रसन्न है या नही गृहपति की आँखे भी उसकी ओर टकटकी लगाये होती है | गौघ्न का अर्थ हुआ – गौ: प्राप्यते दीयते यस्मै स गौघ्न: अर्थत जिसके लिए गौदान दी जाती है , वह गौघ्न कहलाता है |
डा. अम्बेडकर- हिन्दू चाहे ब्राह्मण हो या अब्राह्मण ,न केवल मासाहारी थे अपितु गौमासाहार भी थे |
प.शिवपूजन सिंह जी -ये बात आपकी भ्रम है , वेदों में गौ मॉस भक्षण का विधान की बात जाने दीजिये मॉस भक्षण भी नही है |
डा. अम्बेडकर – मनु ने भी गौ हत्या पर कोई कानून नही बनाया बल्कि विशेष अवसरों पर उसने गौ मॉस भक्षण को उचित ठहराया है |
प.शिवपूजन सिंह जी – मनु स्मृति में कही भी मॉसभक्षण का विधान नही है ओर जो है वो प्रक्षिप्त है | आपने भी इस बात का कोई प्रमाण नही दिया की मनु ने कहा पर गौ मॉस भक्षण उचित ठहराया है | मनु (५/५१) के अनुसार मॉस खाने वाला ,पकाने वाला ,क्रय ,विक्रय करने वाला इन सबको घातक कहा है |
ये उपरोक्त खंडन के कुछ अंश थे इसमें पूर्व पक्ष अम्बेडकर का अछूत कौन ओर कैसे से था |
अब इस लेख का अगला अंश दूसरी पोस्ट में प्रसारित किया जाएगा जिसमे शिवपूजन सिंह जी द्वारा अम्बेडकर जी की शुद्र कौन पुस्तक के खंडन का कुछ अंश होगा |
बहुत सुंदर व्याख्या विप्रवर गोह्न शब्द का उचित विश्लेषण , इसे कहते है करारा जबाब ,
प.शिव पूजन कुशवाह जी की वेद विद्वत्ता निश्चित ही सराहनिय है , पर क्या आज बाबासाहेब जी की ख्याति जो विश्वविख्यात हो गई है उसे रोकने में कुश्वाहजी कामयाब हुए नजर आते है…??
निश्चित ही इस का उत्तर ‘नही’ है . क्या कारण है हम बाबासाहब अंबेडकरजी को ‘symbol of knowledge ‘ इस ख्याति को रोक न सके .., उनके द्वारा निर्धारीत संविधान के अन्य देशो में अपनाये गए affermetive action परिणाम को रोक न पाये.
आर्य समाज द्वारा ‘ज़ात पात तोडक मण्डल’ इस नियोजित संभाषण में ‘यह मेरा हिन्दूओ के सामने अंतिम व्याख्यान है..’ इस शब्द की लाइन को न हटाने का हठ . क्या कारण है की आर्य समाजिष्ट उनसे सहमत न हुए .
आर्य समाजी अपने आप को ‘आर्य’कहते थे जबकि हिन्दू शब्द को अरब की गाली समझते थे.
मुझे यह लगता है की यह क्रमिक असमानता का आघात हमारे अंदर पूर्वग्रह दूषित भावनाओ का संचार करता गया है ,हमारे सनातन ,वैदिक मानसिकता के कारण कहि ना कहि हमने अपना बुद्धि विवेक बेच खाया है.
are janab vedik sanatan ke kaaran aaj desh me khushi se ji rahe ho … jaakar dekho jaha jaha muslim bahul sankhya desh me hai waha kya haal hai hindu kaa.. udaharn jammu kashmir , kairana, kerala,,, ityaadi… yahi aap muslim desh me hote to aapko bolne ki aajadi nahi hoti.. yaha raam ko koi kuch bol deta hai kuch nhai hota.. yahi par paigambar muhmad ko kuch bol do dekho kyaa ho jaata hai… aapko katal kar diya jaayega… aaap amabedkarwaadi ho aap yah baat nahi samjh sakte… samvidhaan nirmaan ke samay yogdaan ke kaaran ve famous ho gaye.. waise femous to kanhaiya bhi ho gaya .. gurmehar bhi umar khaalid bhi… are kuch bhi bol do to famous ho jaaoge… isse koi fark nahi padta …