कवि और कबीर का भेद – रामपाल के पाखंड का खंडन।

।। ओ३म ।।

अग्निनाग्निः समिध्यते कविर्गृहपतिर्युवा।
हव्यवावाड्जुह्वास्यः।।

(ऋग्वेद 1.12.6)

प्रथमाश्रम में अपने में ज्ञान को समिद्ध करते हुए हम द्वितीयाश्रम में उत्तम गृहपति बने। वानप्रस्थ बनकर यज्ञो का वहन करते हुए तुरियाश्रम में ज्ञान का प्रसार करने वाले बने।

नमस्ते मित्रो – आज का विषय

कवि और कबीर का भेद – रामपाल के पाखंड का खंडन।

वेदो में प्रयुक्त कवि शब्द एक अलंकार है – किसी प्राणी का नाम नहीं, क्योंकि विद्याओ के सूक्ष्म तत्वों के दृष्टा, को कवि कहते हैं – इस कारण ये अलंकार ऋषियों के लिए भी प्रयुक्त होता है और समस्त विद्या (वेदो का ज्ञान) देने वाला ईश्वर भी अलंकार रूप से कवि नाम पुकारा जा सकता है।

क्योंकि ये एक अलंकार है इससे किसी व्यक्ति प्राणी का नाम समझना एक भूल है – विसंगति है – मगर बहुत से रामपालिये चेले चपाटे अपनी मूर्खता में ये काम करने से भी बाज़ नहीं आते उन्हें कुछ शास्त्रोक्त प्रमाण दिए जाते हैं –

कवि शब्द की व्युत्पत्ति : कविः शब्द ‘कु-शब्दे’ (अदादि) धातु से ‘अच इ:’ (उणादि 4.139) सूत्र से ‘इ:’ प्रत्यय लगने से बनता है। इसकी निरुक्ति है :

‘क्रांतदर्शनाः क्रांतप्रज्ञा वा विद्वांसः (ऋ० द० ऋ० भू०)

“कविः क्रांतदर्शनो भवति” (निरुक्त 12.13)

इस प्रकार विद्याओ के सूक्ष्म तत्वों का दृष्टा, बहुश्रुत ऋषि व्यक्ति कवि होता है।

इसे “अनुचान” भी इस प्रसंग में कहा है [2.129] ब्राह्मणो में भी कवि के इस अर्थ पर प्रकाश डाला है –

“ये वा अनूचानास्ते कवयः” (ऐ० 2.2)

“एते वै काव्यो यदृश्यः” (श० 1.4.2.8)

“ये विद्वांसस्ते कवयः” (7.2.2.4)

शुश्रुवांसो वै कवयः (तै० 3.2.2.3)

अतः इन प्रमाणों से सिद्ध हुआ की वेदो में प्रयुक्त “कवि” शब्द एक अलंकार है – जहाँ जहाँ भी जिस जिस वेद मन्त्र में कवि शब्द प्रयुक्त हुआ है उसका अर्थ अलंकार से ही लेना उचित होगा, बाकी मूढ़ लोगो को बुद्धि तो खुद “कबीर” भी ना दे पाये देखिये कबीर ने अपने ग्रंथो में क्या लिखा है :

कबीर जी परमात्मा को सर्वव्यापक मानते हैं। कबीर जी के कुछ वचन देखे :

स्वयं संत कबीर दास जी ने भी ईश्वर को सर्वव्यापक माना है। (गुरु ग्रन्थ पृष्ठ 855)

कहु कबीर मेरे माधवा तू सरब बिआपी ॥
सरब बिआपी = सर्वव्यापी
कबीर जी कह रहे हैं की हे मेरे परमात्मा तू सर्वव्यापी है।

तुम समसरि नाही दइआलु मोहि समसरि पापी॥

तुम्हारे सामान कोई दयालु नहीं है, और मेरे सामान कोई पापी नहीं है।

कबीर जी ब्रह्म का अर्थ परमात्मा लेते है काल नहीं
कबीरा मनु सीतलु भइआ पाइआ ब्रहम गिआनु ॥ (गुरु ग्रन्थ पृष्ठ 1373)

ब्रहम बिंदु ते सभ उतपाती ॥१॥

सभी की उत्पत्ति ब्रह्म अर्थात ईश्वर से होती है। (गुरु ग्रन्थ पृष्ठ 324)

अब जब कबीर जी भी ईश्वर अर्थात ब्रह्म से सभी की उत्पत्ति मानते हैं ऐसा लिखते भी हैं तब ये रामपाल और उसके चेले कबीर जैसे संत की वाणी को झूठा क्यों सिद्ध करते फिरते हैं की कबीर परमात्मा हैं ?

क्या ये धूर्तता और ढोंग पाखंड नहीं ?

क्या कबीर जैसे संत की वाणी को दूषित करना और संत कबीर को ईश्वर कहना क्या संत कबीर के शब्दों और दोहो का अपमान नहीं ?

आशा है सभ्य समाज इस लेख के माध्यम से रामपालिये और उसके चेलो के पाखंड का विरोध करेंगे और बुद्धिमान व्यक्ति इस पोस्ट के माध्यम से अपने विचार रखेंगे।

लौटो वेदो की और।

नमस्ते

8 thoughts on “कवि और कबीर का भेद – रामपाल के पाखंड का खंडन।”

    1. तो सही क्या है आप बता दें
      यदि गलत कुछ लिखा है तो उसका खंडन करने

      हम सत्य को ग्रहण करने में सदा उद्यत रहते हैं

    1. इसी वेबसाइट पर इससे सम्बंधित अनेकों लेख उपलब्ध हैं कृपया वो पढ़ें

  1. बाबा रामपाल पाखंड खंडनी क्रमशः 1, 2 ,3 और 4 से कुछ चुनौतीपूर्ण प्रश्न।

    रामपाल और उसके मुर्ख चेलो से पूछ रहे हैं कि

    १. रामपाल से नाम दान लिए हुए, उसकी शरण में आये हुए, उसके आश्रम में रहते हुए उसके चेले कि काल के दूतों से रामपाल रक्षा क्यूँ नहीं कर पाया?

    २. क्या रामपाल स्वयं अपनी रक्षा काल के दूतों से करने में समर्थ हैं? बुढ़ापा तो उसके बालों से, उसके चेहरे कि झुरियों से स्पष्ट दीखता हैं, किसी भी दिन उसकी मृत्यु हो सकती हैं।

    ३. अगर रामपाल काल से अपनी रक्षा करने में समर्थ हैं तब तो उसे काल से डरने कि कोई आवश्यकता नहीं होनी चाहिये, मगर रामपाल तो इतना बड़ा डरपोक हैं कि अपने साथ अंगरक्षक रखता हैं, एक और अपने आपको कबीर परमेश्वर का अवतार बताता हैं दूसरी और डरपोक नेताओं के समान बंदूकों ने साये में रहता हैं। जो अपनी रक्षा स्वयं करने में असक्षम हैं वह तुम्हारी क्या रक्षा करेगा मूर्खों?

    ४. अगर रामपाल के इस दावें में दम हैं तो रामपाल सार्वजानिक रूप से उड़ कर दिखाये और बिजली कि नंगी तार को पकड़ कर दिखाये ? अगर नहीं दिखा पाया तो उसका क्या हश्र होना चाहिये पाठक स्वयं जानते हैं।

    ५. रामपाल जी कहते हैं कबीर साहब ने मरी गाय ज़िंदा कर दी, स्वामी रामानन्दजी का कटा गला जोड़ दिया आदि. कभी कहते हैं इस दास के रूप मैं कबीर परमात्मा आये हैं, कभी अपने को कबीर साहिब का ख़ास भक्त बताते हैं. क्या रामपाल जी एक मरी मक्खी ज़िंदाकर सकते हैं?

    6. रामपाल जी कहते हैं कबीर साहिब उनको अपने लोक में ले गए, वहां उन्होंने देखा परमात्मा का रूप करोड़ों सूर्य की तरह था. रामपाल जी करोड़ों सूर्य के प्रकाश को देखने की सामर्थ रखते हैं. क्या वह केवल एक सूर्य जिसका १/२ अरबवें हिस्से का 52%पृथ्वी में आता है लगातार तीस मिनट तक देख सकते हैं.

    7. रामपाल जी अपने को तत्त्व ज्ञानी कहते हैं, तत्त्व ज्ञानी का अर्थ है जिसने यथार्थ सत्य अनुभूत कर लिया है, जिसे बोध हो गया है, जो त्रिकालज्ञं है. क्या वह कुछ घंटे या कुछ दिन बाद होने वाली कोई विशेष घटना की घोषणा और प्रसारण कर सकते हैं.
    क्या रामपाल जी नहीं मरंगे? यदि मरंगे तो क्या मरेगा और क्या ज़िंदा रहेगा?
    परमात्मा कबीर हैं और वह साकार हैं तो वह रामपाल जी के अन्दर कैसे आ गए?

    ८. रामपाल जी कहते हैं आश्रम में किसी भक्त से कोई पैसा नहीं लिया जाता फिर प्रतिदिन दस हजार से अधिक लोगों के भोजन, नास्ते का खर्चा, आना जाना और साधना टीवी का खर्चा आदि जो प्रति माह लगभग चार से पांच करोड़ का है कहाँ से आता है, क्या इस आय पर आयकर दिया जाता है?

    रामपाल के मुर्ख चेलो को यह सब पढ़कर भी अक्ल नहीं आयेगी तो कभी नहीं आ सकती।

    हम अंत में ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि ईश्वर इन मूर्खों को सद्बुद्धि दे जो चमत्कार जैसे अन्धविश्वास के कारण अपने श्रेष्ठ जीवन का नाश करने पर तुले हुए हैं।

    आशा है आप निष्पक्ष बर्ताव करेंगें. यदि आप श्री रामपाल जी को सही दिशा देने के बजाय केवल दूसरे की आस्था पर कुठाराघात करेंगे तो अशांति को ही जन्म देंगें.

    हम उनसे एक ही बात कहेगे

    रामपाल ने तुम्हे बनाया मुर्ख, उससा ढोंगी न कोय

    अंधों अपनी आँख खोल लो, काल से बचा न कोय

  2. संत कबीरदास इश्वर के निराकार स्वरुप को मानते थे और उन्होंने एक पंथ चलाया जिसका नाम कबीरपंथ है और जहा तक मैंने पढ़ा है की इस पंथ को स्वतंत्र रखा यानी जिसके मर्जी हो वो इस पंथ में शामिल हो सकता है ! लेकिन इनके चेलों ने हमारे ग्रंथो के श्लोक का गलत अर्थ निकलकर हमारे सनातन के लोगो को भटका रहा है ! अब ये कबीरपंथी अपने पंथ को धर्म में परिवर्तन करना चाहता है , इसमें हमें कोई ऐतराज नहीं है यदि इस पंथ में शक्ति है तो अपने ग्रन्थ वीजक द्वारा अपने पंथ का प्रचार क्यों नहीं करते , मुझे लगता है इनके दूकान में ग्राहक कम आ रहा है , इसलिए अब दुसरे धर्मों के श्लोकों के अर्थों में बदलाव कर अपनी पंथ का विस्तार करना चाहते है ! आज अगर कबीरदास जीवित होते तो शायद वो भी पछताते की मैंने तो इश्वर की प्रार्थना के लिए इश्वर के निराकार रूप को अपनाने कहा था लेकिन उनके चेले -चपातियों ने उन्हें ही परब्रह्म बना दिया ! मैंने उनके कई सारे दोहे पढ़े है जिनमे खुद कबीर जी राम , कृष्णा का गुणगान कर रहे है !

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