शंका निवारण :
पूर्वपक्षी : क्या ईश्वर के हाथ पाँव आदि अवयव हैं ?
उत्तरपक्षी : ये शंका आपको क्यों हुई ?
पूर्वपक्षी : क्योंकि बिना हाथ पाँव आदि अवयव ईश्वर ने ये सृष्टि कैसे रची होगी ? कैसे पालन और प्रलय करेगा ?
उत्तरपक्षी : अच्छा चलिए में आपसे एक सवाल पूछता हु – क्या आप आत्मा रूह जीव को मानते हैं ?
पूर्वपक्षी : जी हाँ – में आत्मा को मानता हु – सभी मनुष्य पशु आदि के शरीर में है – पर ये मेरे सवाल का जवाब तो नहीं – मेरे पूछे सवाल से इस जवाब का क्या ताल्लुक ? कृपया सीधा जवाब दीजिये।
उत्तरपक्षी : भाई साहब कुछ जवाब खोजने पड़ते हैं – खैर चलिए ये बताये शरीर में हाथ पाँव आदि अवयव होते हैं क्योंकि जीव को इनसे ही सभी काम करने होते हैं – पर जो आत्मा होती है उसके अपने हाथ पाँव भी होते हैं क्या ?
पूर्वपक्षी : नहीं होते।
उत्तरपक्षी : क्यों नहीं होते ?
पूर्वपक्षी : #$*&)_*&(*#$*$()
(सर खुजाते हुए – कोई जवाब नहीं – चुप)
उत्तरपक्षी : जब एक आत्मा जो सर्वशक्तिमान ईश्वर के अधीन है – बिना हाथ पाँव अवयव आदि के – मेरे इस शरीर में विद्यमान रहकर – शरीर को चला सकती है – तो ईश्वर जो सर्वशक्तिमान है – वो ये सृष्टि का निर्धारण उत्पत्ति प्रलय सञ्चालन वो भी बिना हाथ पाँव आदि अवयव क्यों नहीं कर सकता ? इसमें आपको कैसे शंका ? कमाल के ज्ञानी हो आप ?
पूर्वपक्षी : #$*&)_*&(*#$*$()
(चुपचाप गुमसुम चले गए)
यह विश्व ही विश्वरूप रूप परमात्मा है । क्षर है रुप मिठास सु अक्षर नाम धरो है कंद । भगवान श्रीकृष्ण अष्टम अवतार हैं । इन्होंने ही नवम् बुद्धावतार नारायण भगवान श्री माया नंद चैतन्य हैं। इन्होंने केंद्रीय अध्यात्म विज्ञान शाला औंकारेश्वर में स्थापित की है। भगवतगीता में उल्लेखित दिव्यचक्षु पर उपदेश देकर प्रत्यक्ष विश्वरूप परमात्मा का यथार्थ दर्शन कराया है ।आज भी प्रत्यक्ष में विश्वरूप परमात्मा का यथार्थ दर्शन औंकारेश्वर विज्ञान शाला में यह कार्य निरंतर हो रहा है । सादर नर्मदेहर ।
ईश्वर तो कण कण में व्याप्त है उनका अवतार कैसे हो सकता है?
यह विश्व ही विश्वरूप रूप परमात्मा है । क्षर है रुप मिठास सु अक्षर नाम धरो है कंद । भगवान श्रीकृष्ण अष्टम अवतार हैं । इन्होंने ही नवम् बुद्धावतार नारायण भगवान श्री माया नंद चैतन्य हैं। इन्होंने केंद्रीय अध्यात्म विज्ञान शाला औंकारेश्वर में स्थापित की है। भगवतगीता में उल्लेखित दिव्यचक्षु पर उपदेश देकर प्रत्यक्ष विश्वरूप परमात्मा का यथार्थ दर्शन कराया है ।आज भी प्रत्यक्ष में विश्वरूप परमात्मा का यथार्थ दर्शन औंकारेश्वर जिला खनंडवा (म.प्र) विज्ञान शाला में यह कार्य निरंतर हो रहा है । सादर नर्मदेहर ।
ईश्वर तो कण कण में व्याप्त है उनका अवतार कैसे हो सकता है?
हो सकता है वेद और कुरान उस एक ईश्वर ने ही भेजे हो उस धरती पर क्योकी दोनों ग्रन्थो में सिर्फ एक को पूजने की बात कही गयी है
ओर आप के 33 प्रकार के देवी देवता वही हो जिन्हें कुरान में फरिश्ते कहा गया है
33 koti kya hai wo to bataya gaya hai
wo farsihte kahan se ho gaye
aur farishte kitne hein ye to quran men kahene naheen bataya gay a
🙂