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आर्ष-शोध-संस्थान
(आर्ष-कन्या-गुरुकुल)
परिचय एवं उपलब्धियां
”देवस्य पश्य काव्यं न ममार न जीर्यति।“ (अथर्व. 10/8/32)
वैदिक धर्म संसार का प्राचीनतम धर्म है। (सा प्रथमा संस्कृतिर्विश्ववारा- यजु.7/14) यह अत्यन्त वैज्ञानिक, सुव्यवस्थित एवं सुरक्षित मानव जीवन की पद्धति को बतानेवाला है। यह वैदिक धर्म परमात्मा द्वारा मनुष्य को मिले वेदज्ञान पर आधारित है। इसलिए वैदिक धर्म की रक्षा भी वेदों से जुड़ी हुई है।
यद्यपि इस संस्कृति एवं धर्म का उत्पत्तिस्थान भारत है; परन्तु विदेशियों के आक्रमणों से तथा अनेक राजनैतिक एवं सामाजिक कारणों से इस धर्म का स्वरूप ही बदल गया है। धर्माचरण, एकेश्वरोपासना, सत्यान्वेषण, निराडम्बर जीवन पद्धति के स्थान पर अधर्माचरण, विविध जड़पूजा, हिंसा, अन्धविश्वास, आडम्बर एवं अमानवीय जीवन पद्धतियों से वैदिक धर्म (हिन्दुत्व) अनेक भागों में बंटकर विनाश की स्थिति में पहुंच गया है।
अशान्ति, अज्ञान, अन्याय, अत्याचार, भ्रष्टाचार आदि से विनाश की ओर जाती हुई इस मानव-जाति को बचाकर शान्ति प्रदान करनेवाला एक ही उपाय है- वैदिक-धर्म का पुनरुज्जीवन। इस वैदिक-पद्धति से जीवन बिताना ही सभी समस्याओं का समाधान है। इसके लिए सांगोपांग (=छह वेदांगों तथा छह उपांगों सहित) वेदाध्ययन ही एकमात्र साधन है, अन्य कोई मार्ग नहीं है।
इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए लगभग नौ वर्ष पर्यन्त बोईनपल्ली आर्य समाज में अत्यन्त निष्ठा एवं परिश्रम से आचार्याओं को तैयार करके उनके नेतृत्व में संवत् 2055 वि. में शिवरात्रि के दिन, तदनुसार 19/2/1999 ई. को अलियाबाद ग्राम में आर्ष-शोध-संस्थान नाम से एक कन्या गुरुकुल का शिलान्यास किया गया। स्वल्प समय में ही न्यूनतम आवासीय निर्माणकार्य को पूरा करके संवत् 2057 वि. में दीपावली के दिन, तदनुसार 27/10/2000 ई. को नए भवन में अध्ययन-अध्यापन प्रारम्भ हुआ।
इस संस्थान/गुरुकुल में महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा सत्यार्थ प्रकाश आदि पुस्तकों में निर्दिष्ट पाठविधि के अनुसार आर्ष पद्धति से अध्यापन होता है। इससे अल्पकाल में ही पाणिनीय-व्याकरण, निरुक्त, षडदर्शन तथा अन्य वेद-वेदांगादि विषयों की पारंगत विदुषी एवं आदर्श महिलाएं तैयार हो सकें। वैदिक विद्वानों की निरन्तर होती जा रही कमी को यथासम्भव पूरा किया जा सके। वैदिक एवं ऋषियों की विद्या का देश-विदेश में व्यापक प्रचार-प्रसार हो सके तथा प्राचीन वैदिक-ग्रन्थों के विभिन्न भाषाओं में प्रामाणिक भाष्य हो सकें।
आर्ष-शोध-संस्थान
इस आर्ष-शोध-संस्थान में-
1. शुद्ध वायु और प्रकाश से युक्त, एक सुरक्षित प्रहरी-दीवार के बीच में निर्मित तीन मंजिल का छात्रावास भवन अध्ययन छात्राओं के लिए सुविधाजनक है।
2. आठ पंखुड़ियों से युक्त सुन्दर पुष्प के आकार में गायत्री यज्ञशाला है, जिसमें प्रतिदिन प्रातः सायं यज्ञ होता है।
3. फल और छाया से युक्त घने वृक्ष हैं।
4. पानी देनेवाले दो नलकूप गुरुकुल में परनी की आवश्यकता की पूर्ति के याथ-साथ हरीयाली बनाए रखते हैं।
5. आधुनिक सुविधाओं से युक्त अतिथिशाला है।
6. अध्ययन एवं अनुसंधान के लिए शोध-पुस्तकालय है।
7. दुग्धादि की आवश्यकता की पूर्ति के लिए सुन्दर गोशाला है।
8. आधुनिक संसाधनों एवं निर्माण की व्यवस्थाएं छात्राओं के अध्ययन को सरल बना देती हैं।
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सरदार भगत सिहँ के आस्तिक या नास्तिक होने पर लेख लिखिए जिस से संका का समाधान हो सके कि वे नास्तिक थे या आस्तिक ?उनका वो लेख “मै नास्तिक क्युँ हुँ ” उसका रहस्य भी समझ नही आता है उसमे उन्होने स्वयं स्वीकार किया है कि वे नास्तिक है |इस संका का समाधान कीजिए
Namste Deepak Ji,
Dharmveer Jigyasu ji ki pustak “Hutatma Bhagat singh” padhen
aapki shanka ka samadhan ho jayega dhanywad
Ved Mantra Uchaaran ki koi MP3 bataye… jisse hum log sahi se mantra Uchaanra seekh sake.
aap sanstha ke vidwanon se is bare men charcha kar sakte hein
Rishwa Ji
Namaste mera nam shrirang sudrik hai aur mein pimpri arya samaj pune se juda hu mujh ko arsha shodh sansthan aur arsha kanya gurukul ka pura pata chahiye tha with pincode aur mein arsha paddhati se veda evam sanskrit ka adhyayan kar raha hu isi pariprekshya mein shodh pustakalaya aur yaha ke vidwanon ki jankari chahiye krupaya information dene ki krupa kare mera mobile number hain 09011350747
सभी की जानकारी तो नही है
एक गुरुकुल माउंट आबू में है और एक कन्या गुरुकुल शिवगंज में है