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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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CHAPTER HEADING
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
व्यवहारों अर्थात मुकद्दमों के निर्णय के लिए राजा का न्यायसभा में प्रवेश
1
न्यायसभा में मुकद्दमों को देखे
2
अठारह प्रकार के मुकद्दमे
3 To 8
राजा के अभाव में मुकद्दमों के निर्णय के लिए मुख्य न्यायाधीश विद्वान की नियुक्ति
9
मुख्य न्यायाधीश तीन विद्वानों के साथ मिलकर न्याय करे
10
ब्रह्मसभा (न्यायसभा) की परिभाषा
11
मुकद्दमों के निर्णय में धर्म की रक्षा की प्रेरणा
12
न्यायसभा में सत्य ही बोले और न्याय ही करे
13
अन्याय करने वाले सभासद मृतकवत है
14
मारा हुआ धर्म मारने वाले को ही नष्ट कर देता है
15
धर्महन्ता वृषल कहाता है
16
धर्म ही परजन्मों में साथ रहता है
17
अन्याय से सब सभासदों की निन्दा
18
राजा यथायोग्य व्यवहार से पापी नहीं कहलाता
19
शुद्र धर्मप्रवक्ता न हो
20 To 24
निर्णय में हावभावों से मन की पहचान
25 To 26
बालधन की रक्षा
27
वन्ध्यादी के धन की रक्षा
28 To 33
राजा द्वारा सुरक्षित धन की चोरी करने पर दण्ड
34 To 36
गड़े हुए धन का स्वामी ब्राह्मण
37 To 41
कर्तव्यों में संलग्न व्यक्ति सबके प्रिय
42
राजा या राजपुरुष विवादों को न बढाये
43
अनुमान प्रमाण से निर्णय में सहायता
44 To 46
ऋण का न्याय
47 To 51
ऋणदाता से ऋण के लेखादि प्रमाणों का मांगना
52
मुकद्दमों में अप्रमाणिक व्यक्ति
53 To 60
साक्षी कौन हो
61 To 63
साक्षी कौन नहीं हो सकते
64 To 67
विशेष प्रसंगों में साक्षी विशेष
68
ऐकान्तिक अपराधों में सभी साक्षी मान्य है
69 To 71
बलात्कार आदि कार्यों में सभी साक्षी हो सकते है
72
साक्ष्यों में निश्चय
73 To 77
स्वाभाविक साक्ष्य ही ग्राह्य है
78
साक्ष्य लेने की विधि
79 To 83
साक्षी, आत्मा के विरुद्ध साक्ष्य न दे
84 To 108
साक्षी में शपथ दिलाने का कथन
109 To 116
झूठी गवाही वाले मुकद्दमे पर पुनर्विचार
117
असत्य साक्ष्य के आधार
118
असत्य साक्ष्य में दोषानुसार दण्डव्यवस्था
119 To 124
दण्ड देते समय विचारणीय बाते
125 To 130
लेने-देने के व्यवहार में काम आने वाले बाट और मुद्राए
131
तोल के पहले मापक वसरेणु की परिभाषा
132
लिक्षा, राजसर्षप और गौरसर्षप की परिभाषा
133
मध्ययव, कृष्णल, माष और सुवर्ण की परिभाषा
134
पल, धरण, रौप्यमाषक की परिभाषा
135
रौप्यधरण, राजतपुराण, कार्षापण की परिभाषा
136
रौप्यशतमान, निष्क की परिभाषा
137
पूर्व, मध्यम, उत्तम-साहसों की परिभाषा
138 To 139
ऋण पर ब्याज का विधान
140 To 142
लाभ वाली गिरवी पर ब्याज नहीं
143
धरोहर सम्बन्धी व्यवस्थाये (उन पर ऋण ब्याज आदि की व्यवस्था)
144 To 150
दुगुने से अधिक मूलधन न लेने का आदेश
151 To 152
कौन-कौन से ब्याज न ले
153
पुनः ऋणपत्रादि लेखन
154 To 156
समुद्रयानों का किरायाभाड़ा-निर्धारण
157
जमानती सम्बन्धी विधान
158 To 162
आठ प्रकार के व्यक्तियों से लेन-देन अप्राणिक है
163
शास्त्र और नियम विरुद्ध लेन-देन अप्रमाणिक
164 To 165
कुटुम्बार्थ लिए गये धन को कुटुम्बी लौटाए
166 To 167
बलात कराई गई सब बाते अमान्य
168 To 178
(२) धरोहर रखने के विवाद का निर्णय
179 To 196
(३)तृतीय विवाद ‘अस्वामिविक्रय’ का निर्णय
197 To 205
(४) चतुर्थ विवाद ‘सामूहिक व्यापार’ का निर्णय
206 To 211
(५) पञ्चम विवाद ‘दिए पदार्थ को न लौटाना’ का निर्णय
212 To 213
(६)षष्ट विवाद ‘वेतन आदान’ का निर्णय
214 To 217
(७) सप्तम विवाद ‘प्रतिज्ञा विरुद्धता’ का निर्णय
218 To 221
(८) अष्टम विवाद ‘क्रय-विक्रय’ का निर्णय
222 To 228
(९) नवम विवाद ‘पालक-स्वामी’ का निर्णय
229 To 244
(१०) सीमा-सम्बन्धी विवाद और उसका निर्णय
245 To 264
(११) दुष्ट या कटुवाक्य बोलने-सम्बन्धी विवाद और उसका निर्णय
265 To 277
(१२) दण्ड से घायल करने या मारने सम्बन्धी-विवाद और उसका निर्णय
278 To 300
चोरों के निग्रह से राष्ट्र की वृद्धि
301 To 302
चोरों से प्रजा की रक्षा श्रेष्ठ कर्तव्य है
303 To 306
प्रजा की रक्षा किये बिना कर लेने वाला राजा पापी होता है
307 To 313
चोर की स्वयं प्रायश्चित की विधि
314 To 315
दोषी को दण्ड न देने से राजा पापभागी होता है
316
पापियों के संग से पाप
317
राजाओं से दण्ड प्राप्त करके निर्दोषता
318
विभिन्न चोरियों की दण्ड-व्यवस्था
319 To 331
साहस और चोरी का लक्षण
332 To 333
डाकू, चोरों के अंगों का छेदन
334
माता-पिता, आचार्य आदि सभी राजा द्वारा दण्डनीय हैं
335
अपराध करने पर राजा को साधारण जन से सहस्त्रगुणा दण्ड हो
336
उच्च वर्ण के व्यक्तियों को अधिक दण्ड दें
337 To 343
साहसी व्यक्ति चोर से अधिक पापी
344 To 345
डाकू को दण्ड न देने वाल राजा विनाश को प्राप्त करता है
346
मित्र या धन के कारण साहसी को क्षमा न करें
347
विद्रोह काम में द्विजातियों को शस्त्र-धारण का आदेश
348 To 349
आततायी को मारने में अपराध नहीं
350 To 351
स्त्रीसंग्रहण की परिभाषा
352 To 371
दम्भपूर्वक व्यभिचार में प्रवृत होने पर स्त्री को दण्ड
372
वर्णानुसार दण्डव्यवस्था
373 To 385
पांच महाअपराधियों को वश में करने वाला राजा इंद्र के समान प्रभावी
386 To 387
ऋत्विज और यजमान द्वारा एक दुसरे को त्यागने पर दण्ड
388
माता-पिता-स्त्री-पुत्र को छोड़ने पर दण्ड
389 To 395
धोबी और जुलाहे की व्यवस्था
396 To 397
व्यापार में शुल्क एवं वस्तुओं के भावों का निर्धारण
398 To 402
तुला एवं मापकों की छह महीने में परीक्षा
403
नौका-व्यवहार में किराया आदि की व्यवस्थाए
404 To 409
वैश्य और शुद्र से उनके कर्म कराए
410 To 412
शुद्र से दासता कराए
413 To 414
सात प्रकार के शुद्र दास
415 To 420