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--CHAPTER NUMBER--
1. सृष्टि उत्पत्ति एवं धर्मोत्पत्ति विषय
2. संस्कार एवं ब्रह्मचर्याश्रम विषय
3. समावर्तन, विवाह एवं पञ्चयज्ञविधान-विधान
4. गृह्स्थान्तर्गत आजीविका एवं व्रत विषय
5. गृहस्थान्तर्गत-भक्ष्याभक्ष्य-देहशुद्धि-द्रव्यशुद्धि-स्त्रीधर्म विषय
6. वानप्रस्थ-सन्यासधर्म विषय
7. राजधर्म विषय
8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
9. राज धर्मान्तर्गत व्यवहार निर्णय
10. चातुर्वर्ण्य धर्मान्तर्गत वैश्य शुद्र के धर्म एवं चातुर्वर्ण्य धर्म का उपसंहार
11. प्रायश्चित विषय
12. कर्मफल विधान एवं निःश्रेयस कर्मों का वर्णन
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8. राजधर्मान्तर्गत व्यवहार-निर्णय
बहुत्वं परिगृह्णीयात्साक्षिद्वैधे नराधिपः ।समेषु तु गुणोत्कृष्टान्गुणिद्वैधे द्विजोत्तमान् ।।8/73
समक्षदर्शनात्साक्ष्यं श्रवणाच्चैव सिध्यति ।तत्र सत्यं ब्रुवन्साक्षी धर्मार्थाभ्यां न हीयते ।।8/74
साक्षी दृष्टश्रुतादन्यद्विब्रुवन्नार्यसंसदि ।अवाङ्नरकं अभ्येति प्रेत्य स्वर्गाच्च हीयते ।।8/75
यत्रानिबद्धोऽपीक्षेत शृणुयाद्वापि किं चन ।पृष्टस्तत्रापि तद्ब्रूयाद्यथादृष्टं यथाश्रुतम् ।।8/76
एकोऽलुब्धस्तु साक्षी स्याद्बह्व्यः शुच्योऽपि न स्त्रियः ।स्त्रीबुद्धेरस्थिरत्वात्तु दोषैश्चान्येऽपि ये वृताः ।।8/77