सूत्र :अपरिग्रहस्थैर्ये जन्मकथंता संबोधः ॥॥2/39
सूत्र संख्या :39
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - अपरिग्रहस्थैय्र्ये। जन्मकथंतासंबोध:।
पदा० - (अपरिग्रहस्थैय्र्ये) अपरिग्रह सिद्ध होने पर (जन्मकथंतासंबोध:) जन्म के कथंभाव का ज्ञान होता है।।
व्याख्या :
भाष्य - मनुष्यजन्म किस प्रकार सफल होसकता है और इसकेलिये किस प्रकार के योगक्षेम की आवश्यकता है, वा थी, वा होगी, इस प्रकार के ज्ञान का नाम “जन्मकथंतासंबोध” है, जिस योगी का अपरिग्रह सिद्ध हो जाता है उसको जन्मकथंतासंबोध की प्राप्ति होती है यही अपरिग्रह का चिन्ह है।।
सं० - अब वाह्म शौच की सिद्धि का चिन्ह कथन करते हैं:-