सूत्र :अहिंसाप्रतिष्ठायं तत्सन्निधौ वैरत्याघः ॥॥2/35
सूत्र संख्या :35
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - अहिंसाप्रतिष्ठायां। तत्सन्निधो। वैरत्याग:।
पदा० -(अहिंसाप्रतिष्ठायां) अहिंसा के सिद्ध होने पर (तत्सन्निधौ) उस योगी के समीपवर्ती (वैरत्याग:) विरोधी जीवों को भी विरोध निवृत्त होजाता है।।
व्याख्या :
भाष्य - जिस योगी का महाव्रतरूप अहिंसा यम सिद्ध होगया है उसके समीपर रहनेवाले विरोधी जीव भी विरोध का परित्याग कर देते हैं अर्थात् जब योगी के समीप उपस्थित हुए विरोधशील जीव भी परस्पर विरोध न करें और मित्रभाव को प्राप्त हो जावें तब अहिंसा को सिद्ध हुआ जानना चाहिये, यह उसकी सिद्धि का चिन्ह है।।
सं० - अब सत्य की सिद्धि का चिन्ह कथन करते हैं:-