सूत्र :अस्तेयप्रतिष्ठायां सर्वरत्नोपस्थानम् ॥॥2/37
सूत्र संख्या :37
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - अस्तेयप्रतिष्ठायां। सर्वरत्रोपस्थानम्।
पदा० - (अस्तेयप्रतिष्ठायां) अस्तेय के सिद्ध होजाने पर (सर्वरत्रोपस्थानम्) चारो दिशाओं मे होनेवाले रत्रादि सम्पूर्ण पदार्थ स्वयमेव प्राप्त होजाते हैं।।
व्याख्या :
भाष्य - जिस योगी का अस्तेय प्रतिष्ठित=सिद्ध होगया है उसके पास संसार के सम्पूर्ण पदार्थ उपस्थित हो जाते हैं।।
भाव यह है कि अस्तेय की प्रतिष्ठा होने से योगी विश्वासर्ह हो जाता है और विश्वासर्ह होने के कारण उसको संकल्पमात्र से ही सम्पूर्ण पदार्थों की प्राप्ति हो जाती है, जब इंसप्रकार सिद्धास्तेय योगी के पास देशदेशान्तरों के रत्नादि सम्पूर्ण पदार्थ संकल्पमात्र से उपस्थित होजायँ तब जानना चाहिये कि अस्तेय प्रतिष्ठत अर्थात् सिद्ध होगया, यह उसकी सिद्धि का चिन्ह है।।
सं० - अब ब्रहाचर्य्य की सिद्धि का चिन्ह कथन करते हैं:-