DARSHAN
दर्शन शास्त्र : योग दर्शन
 
Language

Darshan

Shlok

सूत्र :वितर्का हिंसादयः कृतकारितानुमोदिता लोभक्रोधमोहापूर्वका मृदुमध्य अधिमात्रा दुःखाज्ञानानन्तफला इति प्रतिप्रक्षभावनम् ॥॥2/34
सूत्र संख्या :34

व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द

अर्थ : पद० - वितर्काः । हिंसादय:। कृतकारितानुमोदिता:। लोभ क्रोधमोह-पूर्वका:। मृदुमध्याधिमात्रा: । दुःखाज्ञानानन्तफला:। इति। प्रतिपक्षभावनम्। पदा० - (लोभक्रोधमोहपूर्वका:) लोभ, क्रोध तथा मोह से होने वाले (कृतकारितानुमोदिता:) कृत, कारिता तथा अनुमोदित भेद से तीन प्रकार के (मृदुमध्याधिमात्रा:) मृदु, मध्य, अधिमात्र धर्मवाले (हिंसादय:) हिंसा, मिथ्याभाषण, स्तेय, आदि का नाम (वितर्का:) वितर्क और यह सब (दुःखाज्ञानानन्तफला:) असीम दुःख तथा आान के देनेवाले हैं, इस विचार का नाम (प्रतिपक्षीभावनं) प्रतिपक्षभावन है।।

व्याख्या :
भाष्य - हिंसा, मिथ्याभाषण, स्तेय आदि का नाम “वितर्क” है और यह हिंसा आदि कृत, कारित तथा अनुमोदित भेद से तीन प्रकार के हैं, जो स्वयं किये जायं वह “कृते” जो अन्य से कराये जायं वह “कारित” ओर जो साधु २ ठीक २, इस प्रकार की अनुमति से किये जायं उनको “अनुमोदित” कहते हैं, यह तीनों प्रकार के हिंसादिकर्म लोभ मोह तथा क्रोध से उत्पन्न होते हैं।। मांस चर्मादि की तृष्णा का नाम “लोभ” इसने मेरा अपकार किया मैं भी इसक अपकार करूं, इस प्रकार अपकार करने की इच्दा से उत्पन्न हुई कत्र्तव्याकत्र्तव्यविवेक को नाश करने वाली द्वेषात्मक तामस चित्तवृत्ति का नाम “क्रोध” और यज्ञादि में पशु आदि के मारने से धर्म होता है, ऐसे मिथ्याज्ञान का नाम “मोह” है।। यह लोभ मोहादिक तीनों कारण भी मृदु, मध्य, अधिमात्र इस भेद से एक २ तीन २ प्रकार का है और मृदु, मध्यादि भेद भी मृदु, मघ्य, अधिमात्र, इस भेद से एक २ तीन २ प्रकार की है, यह सब मिलकर २७ होते हैं, इस प्रकार लोभ आदि कारणों के २७ भेद होने से हिंसादि वितर्को के ८१ भेद हैं अर्थात् कृत, कारित, अनुमोदित, भेद से तीन, और फिर लोभ, मोह, क्रोधजन्य होने के कारण एक २ के तीन २ भेद होने ९, फिर मृदु, मध्य, अधिमात्र, इस प्रकार लोभदि के तीन २ भेद होने से २७, और मृदु आदि तीनों के भी मृदुमृदु, मघ्यमृदु, अधिमात्रमृदु, इस प्रकार तीन २ भेद होने से हिंसा आदि के ८१ भेद हैं।। जो पुरूष इनको करता है, वह अनन्तकाल तक दुःखमय संसार तथा अन्धतम को प्राप्त होत है और किसी प्रकार भी दुःखों से नहीं छूट सकता, जैसाकि वेदादि शास्त्रों में कहा है कि:- असूर्या नाम ते लोका अन्धेन तमसाऽऽवृता:। ताँस्ते प्रेत्याभिगच्छन्तियेकेचात्महनोजना:।। यजु० ४०१२ अर्थ - वह पुरूष अनन्तकाल तक अंधतम तथा दुःखमय लोकों को प्राप्त होते है जो हिंसा करते हैं।। समूलो वा एष परिशुष्यति योऽनृतमभिधदित। प्रश्र० ६। १ अर्थ - वह पुरूष वंशसहित शुष्क हो जाता है जो मिथ्याभाषण करता है।। स्तेनोहिरण्यस्य सुरांपिँश्व गुरोस्तल्पमावसन्त्रब्रह्महाचैते पतन्तिचत्वाच: पंचमश्वारँस्वैः। छा० ४। ९। ९ अर्थ - धन का चुराने वाला, मदिरा का पीने वाला, गुरू की स्त्री से गमन करने वाला, वेदवेत्ता ऋषि को मारनेवालो, और इनका संगी, यह पांचों नीचगति को प्राप्त होते हैं, इस प्रकार के विचार का नाम “प्रतिपक्षभावन” है।। तात्पर्य्य यह है कि हिंसा आदि वितर्क कृत, कारित, अनुमोदित तथा मृदु, मध्य, अधिमात्र, भेद भिन्न - भिन्न लोभादि से जन्य होने के कारण ८१ प्रकार के हैं, यह सब मेरे अनिष्ट के करने वाले हैं इनका फल अनन्तदुःख तथा अनन्त अज्ञान है, इसलिये मुझ दुःखभीरू यमनियमों के अनुष्ठाता योगी को इनका कदापि सेवन नहीं करना चाहियें, इस प्रकार चिन्तन की प्रतिपक्षभावन कहते है, इसके करने से योगी को उक्त हिंसा आदि वितर्को में द्वेष उत्पन्न होता है और द्वेष के उत्पन्न होने से उनके सम्पादन करने की इच्छा निवृत्त होजाती है और यम नियमों के अनुष्ठान द्वारा योगी का चित्त निर्मल होकर सिद्धि को प्राप्त होता है जिसक फल कैवल्य है, इसलिय यमनियमों के अनुष्ठानकाल में हिंसा आदि वितर्को के उपस्थित होने पर योगी को प्रतिपक्षभावन करना आवश्यक है।। यहां इतना स्मरण रहे कि सूत्र में “हिंसादयः” पदसे वितर्कों का स्वरूप “कृतकारितानुमोदिता:” पद से प्रकार तथा “लोभक्रोधमाहेपूर्वका:” पद से कारण, “मृदुमध्याधिमात्रा:” पद से धर्म और “दुःखाज्ञानानन्तफला:” पद से फल का कथन किया है, यहां फलचिन्तन का नाम ही प्रतिपक्षभावन है।। जिस प्रकार पापोत्पत्ति द्वारा वितर्कों का फल दुःख है इसी प्रकार तमोगुण के अधिक हो जाने से पूर्वपादोक्त चार प्रकार का अज्ञान भी फल है और यह दोनों फल बीजांकुर की भांति अनुवत्र्तमान होने से अनन्त हैं, अतएव “दुःखाज्ञानान्तफला:” कथन किया गया है।। सं० - अक अनुष्ठान द्वारा प्राप्त हुई यम, नियमों की सिद्धि का चिन्ह निरूपण करते हैं:-

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: fwrite(): write of 34 bytes failed with errno=122 Disk quota exceeded

Filename: drivers/Session_files_driver.php

Line Number: 263

Backtrace:

A PHP Error was encountered

Severity: Warning

Message: session_write_close(): Failed to write session data using user defined save handler. (session.save_path: /home2/aryamantavya/public_html/darshan/system//cache)

Filename: Unknown

Line Number: 0

Backtrace: