सूत्र :सत्यप्रतिष्थायं क्रियाफलाश्रयत्वम् ॥॥2/36
सूत्र संख्या :36
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - सत्यप्रतिष्ठायां। कियाफलाश्रयत्वम् ।
पदा० - (सत्यप्रतिष्ठायां) सत्य के सिद्ध होने पर (क्रियाफलाश्रयत्वम्) योगी की वाणी किया तथा फल का आश्रय होजाती है।।
व्याख्या :
भाष्य - धर्म का नाम “क्रिया” और सुख का नाम “फल” है, जिस योगी को सत्य सिद्ध होगया है यदि वह अधार्मिक पुरूष को भी अपनी वाणी से “धामिको मच”=तू धार्मिक होजा, ऐसा कह दे तो वह धार्मिक होजाता है और दुःखी को “सुखीभव”=तू सुखी होजा, इस प्रकार कहदे तो वह उसके कथनानुसार आचारण करने से निश्चय सुखी हो जाता है, इसी का क्रिया तथा फल का आश्रय होना कहते हैं।।
भाव यह है कि जब योगी की वाणी व्यर्थ न जाय किन्तु जो कथन करे वह हो जाये तब जानो कि सत्य सिद्ध हुआ, यह सत्य सिद्धि का चिन्ह है।
सं० - अब अस्तेयसिद्धि का चिन्ह कथन करते हैं:-