सूत्र :जातिदेशकालसमयानवच्छिन्नाः सार्वभौमामहाव्रतम् ॥॥2/31
सूत्र संख्या :31
व्याख्याकार : स्वामी दर्शनानन्द
अर्थ : पद० - जातिदेशकालसमययानवच्छिन्न्:। सार्वभौमा:। महाव्रतम्।
पदा० - (जातिदेशकालसमययानवच्छिन्न:) जाति, देश, काल तथा समय से असंकुचित और (सार्वभौमा:) जाति आदि उक्त पूर्व भूमियों में व्याभिचार रहित यमों का नाम (महाव्रतम्) महाव्रत है।।
व्याख्या :
भाष्य - मत्स्यातिरिक्तं न हनिष्यामि=मत्स्यजाति के अतिरिक्त और किसी जाति का हनन न करूंगा, गुरूकुल न हनिष्यामि=गुरूकुल में किसी को न मारूँगा, पूर्णमास्यां न हनिष्यामि=पूर्णमासी के दिन न मारूंगा; केनचिदकारितो वा न हनिष्यामि=प्रेरणा तथा साधु=ठीक २ ऐसी अनुमति के बिना न मारूंगा; इस प्रकार अहिंसा में जाति आदि के द्वारा होने वाले संकोचच का नाम “अवच्छेद” और कभी कहीं किसी प्रकार से भी किसी का हनन न करूंगा, इस प्रकार अहिंसा में जाति आदि के द्वारा होनेवाले अंसकोच का नाम “अनवच्छेद” है जैसे अहिंसा में जाति आदि के द्वारा अवच्छेद तथा अनवच्छेद का प्रकार कथन किया है वैसे ही सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य्य और अपरिग्रह में भी जानना चाहिये।।
जो यम उक्त जाति आदि के द्वारा संकुचित नहीं और जाति, देश, काल तथा समयरूप भूमियों में निरन्तर अनुष्ठान किये जाते हैं अर्थात् उक्त भूमियों में जिनके अनुष्ठान का कदापि व्यभिचार नहीं होता उनको “महाव्रत” कहते हैं, यही महाव्रत योगियों को योग सिद्धि के लिये अनुष्ठेय है।।
सं० - अब नियमों का निरूपण करते हैं:-